Tuesday, July 28, 2020

खेल भी जीवन मे जरूरी : संजय ढाका



पहलवान संजय ढाका का जन्म रोहतक जिले के गॉव सुडाना मे 12-02-1978 मे हुआ था । संजय ढाका के पिता का नाम श्री सूरजभान व मॉ का नाम दयाकौर था। संजय ढाका के पिता श्री सूरज भान एक किसान थे। खेती करना ही जीवन यापन का मुख्य श्रोत था । सुडाना गॉव के कैप्टन चान्दरूप की उस समय ख्याती चारो ओर फैल रही थी । संजय ढाका का परिवार  कैप्टन चॉन्दरूप के परिवार का ही एक हिस्सा था  जो आगे चलकर संजय के लिये वरदान साबित हुआ । कैप्टन सहाब ने देश के लिये अनेको पहलवान तैयार किये थे उन्हे कुस्ती सम्राट के नाम से जाना जाता था । कैप्टन सहाब का दिल्ली आजादपुर मे अखाडा था जो पहलवानो को तैयार करने का ठिकाना माना जाता था । 
वह एक एसा दौर था जब गॉव सुडाना से लेकर आस पास के गॉवो मे किसी न किसी दिन दंगल हुआ करते थे दंगल मे केप्टन चॉन्द रूप के शिष्य पहलवान अकसर अपना लोहा मनवाया करेते , संजय ढाका भी अपने पिता श्री सूरजभान के साथ मे कुस्ती देखने के लिये जाया करते । यही से बालक संजय ढाका के मन मे खेल के अकुर अपनी जडे मजबूत करने लगे थे ।
 बात गर्मी के उन दिनो की है जब बच्चो की छुट्टी पड चुकी थी कैप्टन सहाब गॉव सुडाना मे आये हुये थे ।  गॉव सुडाना मे कैप्टन चान्दरूप अपने घर आये हुये थे श्री सूरजभान कैप्टन सहाब श्री चान्दरूप को अपने साथ घर ले गया जहॉ पर बालक संजय के उपर कुस्ती सम्राट चान्दरूप की नजर पडी कैप्टन  सहाब बालक संजय को अपने साथ दिल्ली लेजाने के लिये कहने लगे तब दया कौर व श्री सूरजभान ने कैप्टन चान्दरूप की हॉ मे हॉ मिलाई और संजय कुस्ती सम्राट चॉन्दरूप जी के साथ दिल्ली आ गया।   
कैप्टन सहाब के बेटे श्री रणबीर सिंह ढाका साई मे कोच नियुक्त हुये थे । रणबीर सिंह को इन्दौर मे भेजा गया तो कैप्टन सहाब ने संजय को रणबीर के साथ इन्दौर भेज दिया  था । केप्टन सहाब ने संजय ढाका की जिम्मेदारी अपने बेटे रणबीर सिंह ढाका के कन्धो पर टेक दी थी । समय के साथ साथ श्री रणबीर सिंह ढाका ने अपनी जिम्मेदारी बखुबी निभाई समय बीतता जा रहा था संजय बडा हो रहा था । समय के साथ रणबीर सिंह ढाका का तबादला सोनिपत के C.R.Z SCHOOL (साई सेंटर) सोनीपत मे हो गया । श्री रणबीर सिंह ढाका के साथ मे संजय ढाका भी सोनिपत आ गया  और फिर कभी पीछे मुडकर नही देखा ।  साल 2001 मे संजय पहलवान ने भारत केसरी का खिताब अपने नाम किया , यही नही हरियाणा केसरी की उपाधी भी अपने नाम की अब नौकरी की बात करे तो श्री संजय ढाका ने पंजाब पुलिस मे नौकरी की बाद मे पंजाब पुलिस की नौकरी छोडकर बी एस एफ मे भर्ती  हो गये । साल 2005 मे सुजाता के साथ संजय ढाका की सादी हो गई । वर्तमान मे श्री संजय ढाका बी0 एस0 एफ0 मे कुस्ती कोच के पद पर कार्यरत है। संजय ढाका  के पास दो बच्चे है। एक बेटा जो कक्षा नौ मे पढता है। और एक बेटी है जो कक्षा छः मे पढती है। 











इण्टर नेशनल स्तर पर उपलब्धियां
1994 (यू0 एस0 ए0 ) मे वर्ल्ड रेशलिगं चैम्पियनशिप मे हिस्सा लिया ।
1999 (स्वीडन) मे वर्ल्ड पुलिस फायर गेम्स मे हिस्सा लिया ।
नेशनल स्तर पर उपलब्धियां
जुनियर नेशनल 1996 सिलवर
जुनियर नेशनल 1997 ब्रोन्ज
सीनियर नेशनल 1996 ब्रोन्ज
सीनियर नेशनल 1997 ब्रोन्ज
फेडरेशन कप 2000 ब्रोन्ज
फेडरेशन कप 2003 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स स्तर पर उपलब्धियां
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 1997 गोल्ड
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 1998 गोल्ड
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2002 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2005 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2006 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2009 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2010 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2012 ब्रोन्ज



















श्री संजय ढाका कहते है कि गुरू जी कैप्टन चान्दरूप जी का आर्शिवाद हमेशा मिलता रहा है। मेरी पहलवानी की यदि बात करे तो गुरू जी कैप्टन चॉन्दरूप के बेटे रणबीर सिंह ढाका का और ओमप्रकाश दहिया का योगदान मेरी पहलवानी मे रहा है। सोनिपत के C.R.Z SCHOOL (साई सेंटर)  मे  श्री ओमप्रकाश दहिया जी मुझे मिले थे ।  फिर क्या था लगातार मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता रहा ।  गुरू और शिष्य की परम्परा हमारे देश मे सदियो पुरानी है। लेकिन आज के दौर मे यह परम्परा अपने आप मे खोती जा रही है। जो चिन्ता का विषय है। संजय ढाका कहते है कि हमारे दौर मे गुरूओ के सामने उनकी बात को काटने की हिम्मत नही होती थी । केवल उनकी बात को सुनकर  आज्ञा का पालन करना प्राथमिकता मे होता था । 
श्री ओमप्रकाश दहिया जी कहते थे कि जिस प्रकार जीने के लिये दो वक्त की रोटी और हवा पानी जरूरी है। उसी प्रकार मजबूत और सभ्य समाज के लिये खेल जरूरी है।इन कुस्ती के महान गुरूवो ने मुझे सिखाया ,  अपने पास रखा और काबिल बनाया , मै आज जो भी हू गुरू केप्टन चॉन्दरूप के बेटे कुस्ती कोच श्री रणबीर सिंह ढाका जी और कुस्ती कोच श्री ओमप्रकाश दहिया जी की वजह से हू । मेरे जीवन का एक हिस्सा कुस्ती के इन शानदार गुरूओ के साथ बीता है जो मेरे लिये सौभाग्य की बात है। सब कुछ एसा लगता है। जैसे कल की बात हो , लेकिन बीता हुआ समय वापिश लौटकर नही आता इसलिये अपने समय का सदउपयोग करना चाहिये । क्योकि समय अमूल्य है समय की कोई कीमत नही होती ।   



4 comments:

  1. Bhai ji aap jaise bhaiyo pe hmesha proud feel krenge hm dil se salute h aapko Bhai ji

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  2. Thanks ravinder Shamli aap sports ke liye apna time de rhe ho I proud of you

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