रविन्द्र शामली - अमित जी 19, 20, 21 जनवरी 2019 मे आपके अखाडे मे जो आयोजन हो रहा है। क्या क्या तैयारी हो रही है ?
अमित ढाका - आयोजन को सफल बनाने के उदृदेश्य से बहुत सारी तैयारी की जा रही है। अधिकतर कार्य हमने अपने स्तर पर पूरा कर लिया है। जो बाकी है उसे भी जल्द पूरा करलेगे ।
रविन्द्र शामली - क्या कभी बचपन मे सोचा था कि मै द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप अखाडे का संचालक बनूगां ?
अमित ढाका - नही कभी नही सोचा एसा मैने , मै अपने दादा जी का हाथ बटाया करता था । दादा जी और पिताजी के बाद एकदम से सारी जिम्मेदारीयॉ मेरे कन्धो पर आ गई ।
रविन्द्र शामली - अखाडे मे किन बुनियादी सुविधाओ की जरूरत है ?
अमित ढाका - वैसे तो कई बुनियादी सुविधाओ की दरकार है। धीरे धीरे हम अपने दम पर ज्यादा से ज्यादा
सुविधाये अपने बच्चो को दे रहे है । हम अपने आप कमाते भी है , और अपने अखाडे पर लगाते भी है।
रविन्द्र शामली - विरासत मे मिली अखाडे की कुर्सी का दायित्व निभाना कितना मुश्किल था ?
अमित ढाका - मेरे लिये यह सब बहुत मुश्किल था । दादा जी ने और पिताजी ने इस अखाडे को अपने पशीने से सीचा था । सच कहू तो यह अखाडा उनके जीवन भर के काम और नाम की पृष्ठभूमि था । मेरे लिये गलती करने का कोई मौका ही नही था । मै नही चहाता था कि मै कोई गलती करू और लोग कहे कि दादा और पिताजी ने जो नाम कमाया था वो पोते ने खत्म कर दिया । मेरा मुख्य लक्ष्य रहा , इस विरासत पर खरा उतरना और इस विरासत को आगे बढाना ।
रविन्द्र शामली - आज के अमित ढाका और जब जिम्मेदारीयॉ आप पर नही थी उस अमित ढाका मे क्या अन्तर महसूस करतें है ?
अमित ढाका - जब जिम्मेदारीयॉ नही थी तो खूब मौज मस्ती किया करते थे । अब तो काम से ही फुर्सत नही होती । सच तो ये है जो समय बीत गया वो तो आ ही नही सकता । संसार का नियम है आगे बढते जाना ही है।
रविन्द्र शामली - वास्तविकता भी है। यदि आज मै आपको अमित ढाका नही , गुरू अमित ढाका कहू तो क्या कहोगे ?
अमित ढाका - कभी कभी आपकी इस तरह की बातो से मुझे डर सा लगता है। (हसते हुये ) गुरू जी तो कैप्टन सहाब ही थे वे ही रहेगे , हम तो जब भी सेवक थे आज भी सेवक बनकर ही अपनी सेवा देने मे विश्वास रखते है।
रविन्द्र शामली - अमित भाई जीवन मे उतार चढाव हर किसी के सामने आते है। श्री राम को भी बनवास भोगना पडा था । आपने भी बहुत बडे भारी उतार चढाव जीवन मे देखे है , फिर भी वो कौन सी बात है। जिसे सोचकर ही दिल खुश हो जाता है ?
अमित ढाका - मेरे लिये तो गर्व की बात यही है कि मैने अपने दादा जी के परिवार मे जन्म लिया । पिताजी के संघर्षो को देखा ,कुस्ती सम्राट दादा जी चॉदरूप के साथ समय बिताया यह भी सौभाग्य है हमारा ।
रविन्द्र शामली - अखाडे मे कैप्टन सहाब से जुडी वस्तुओ का संग्राहल्य होना तो चहिये , आप क्या कहोगे ?
अमित ढाका - बिलकुल होगा रविन्द्र भाई आप चिन्ता ना करे ये वादा है आपसे मेरा बिलकुल होगा ।
रविन्द्र शामली - आपके अखाडे का भारत तो दूर दुनिया मे नाम है। बहुत समय से आप सेवाये दे रहे है। अखाडे से जुडी कौन सी विषय वस्तु है जो दिल दुखा जाती है ?
अमित ढाका - जब किसी बच्चे पर बहुत मेहनत की जाती है और वो बच्चा अखाडा छोडकर किसी लालच मे दूसरे अखाडे मे चला जाता है। तो एसी घटनाये दिल दुखा जाती है। हालाकि अब इन बातो का हम पर ज्यादा असर नही होता । लगता है ये तो होता ही रहता है।
रविन्द्र शामली - क्या अच्छा लगता है ?
अमित ढाका - समाज के लिये आने वाली नश्लो के लिये कुछ अच्छा कर गुजरना ।
रविन्द्र शामली - खाने मे क्या पसंद है ?
अमित ढाका - बहुत सारे कार्य करने के लिये बहुत सारी उर्जा की जरूरत होती है। मै सूखी मेवा , दूध , दही , फल , और बहुत सारा जूस पसंद करता हू ।
रविन्द्र शामली - जूश बहुत सारा मतलब कितना ?
अमित ढाका - दिन मे चार लीटर ।
यह थे श्री अमित ढाका जी , जो कुस्ती कोच श्री रणबीर सिंह ढाका के बेटे व कुस्ती सम्राट द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप जी के पोते है। वर्तमान मे श्री अमित ढाका जी कुस्ती सम्राट कैप्टन चॉदरूप द्रोणाचार्य अखाडा के संचालक है।
साक्षातकार कर्ता
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत