भारतीय कुस्ती के इतिहास मे एक से बढकर एक गुरू हुये है। इन्ही मे से एक है पहलवान गुरू श्री श्यामलाल जी जिन्होने अपनी मेहनत से और कम सुविधाओ के बावजूद बतौर पहलवान अपना डंका लम्बे समय तक बजवाया था । कुस्ती छोडने के बाद अखाडा खोल कर बतौर गुरू भी श्री श्यामलाल जी अपना योगदान देने से कभी पीछे नही हटे। समय के साथ गुरू श्यामलाल ने जीवन के हर मोड पर अपने आप को बखुबी साबित किया है।
श्री शयामलाल जी का जन्म सन् 1935 में दिल्ली के निकट घिटोरनी गॉव (जो अब दिल्ली मे समा चुका है।) मे हुआ था । वह एक एसा दौर था जिसमे भरपूर दंगल हुआ करते थे । उन दिनो श्री श्यामलाल अपने पिता मुन्शीराम के साथ बचपन के दिनो मे कई बार दंगल देखने जाया करते थे । कई बार श्यामलाल ने घर वालो को बिना बताये कुस्ती भी लडी । जब श्यामलाल की मॉ श्रीमती गंगा देवी को इस बात का पता चला तो अपने हिस्सें का दूध भी श्यामलाल को दे दिया । लगातार श्यामलाल का खेल के प्रति समर्पण बढता जा रहा था । शयामलाल की लगातार कुस्ती के प्रति बढ रही रूची को देखकर श्यामलाल के पिता मुन्शीराम ने श्यामलाल को गुरू तिलक अखाडा मे छोडदिया , अब तो दंगल लडना श्यामलाल की दिनचर्या मे शामिल हो गया था ।
श्यामलाल का साधारण किसान परीवार मे जन्म हुआ था बढती जिम्मेदारीयो को देखते हुये अब श्यामलाल नौकरी करना चहाते थे । कहते है समय की गति कभी नही रूकती धीरे धीरे वह समय आया जब श्यामलाल के द्वारा नियमित किया गया अभ्यास श्यामलाल के जीवन मे नया सबेरा लेकर आया और श्यामलाल दिल्ली पुलिस मे भर्ती हो गये । अब तो श्यामलाल की खुशी का कोई ठिकाना नही था । श्यामलाल को नौकरी मिल गई थी जो श्यामलाल का सपना हुआ करती थी ।
श्यामलाल जी स्पोर्ट कोटे से दिल्ली पुलिस मे भर्ती हुये थे । वह दिन आया जब दिल्ली पुलिस की और से श्यामलाल को कुस्ती लडने का मौका मिला श्यामलाल ने भी अपना हक बखुबी अदा किया पहली ही बार मे स्वर्ण पदक जीतकर दिल्ली पुलिस की झोली मे डाल दिया देखते ही देखते कई स्वर्ण पदक श्यामलाल जी ने जीतकर दिल्ली पुलिस को दिये थे । गुरू श्यामलाल अपने पैरो पर खडे हो चुके थे और लगातार आगे बढ रहे थे तो घर वालो ने श्यामलाल की शादी कैलाशो देवी के साथ मे कर दी थी । जीवन के हर मोड पर गुरू श्यामलाल को श्रीमती कैलाशो देवी का साथा मिलता रहा ।
श्यामलाल के परीवार वाले बताते है कि गुंरू हनुमान के श्ष्यि पहलवान श्री रामधन को एक दंगल मे श्यामलाल ने बराबरी पर रोक दिया था । क्योकि रामधन जी कुस्ती के मास्टर माने जाते थे । उनके साथ बराबरी की कुस्ती लडना श्यामलाल को खरा सोना साबित करता था । अब तो श्यामलाल की ख्याती चारो और बडी तेजी से फैलने लगी थी । दंगलो मे श्यामलाल का डंका बजने लगा था । श्यामलाल रात मे उठ उठ कर मेहनत करने लगे थे ताकि और बेहतर परीणाम सामने आ सके क्योकि श्यामलाल स्वयं मानने लगे थे कि इस उचाई तक आना इतना मुशकिल काम नही था लेकिन इस उचाई पर टिके रहना ज्यादा मुश्किल दिखाई दे रहा है। इसलिये श्यामलाल पहले से कही अधिक मेहनत करने लगे थे ।
श्यामलाल जी के परीवार वाले बताया करते एक बार की बात है। दनकौर मे जबरदस्त दंगंल हुआ करता था । दंगल मे हिस्सा लेने श्यामलाल भी चला गया । जनता की मॉग पर उस समय के दिग्गज पहलवान श्री बिसम्भर रेलवे के साथ श्यामलाल के हाथ मिलवा दिये गये । उस समय राष्टीय स्तर के साथ साथ अर्न्तराष्टीय स्तर पर बिसम्भर पहलवान का डंका बजा करता था तो कई लोगो ने बिसम्भर पहलवान के साथ मे कुस्ती ना लडने की बात श्यामलाल को कही यह एक एसी कुस्ती थी जिसमे श्यामलाल के पास खोने को कुछ नही था लेकिन पाने को बहुत कुछ था । वही हुआ जो लोगो ने नही सोचा था । श्याम लाल ने बिसम्भर के सामने अपनी जीत से कुस्ती जगत मे तहलका मचा दिया था ।
अब तो श्यामलाल पहलवान को बडा उलटफेर करने वाला पहलवान माना जाने लगा था । श्यामलाल पहलवान ने कई सारे देश के नाम चीन पहलवानो के साथ कडे मुकाबले लडे पहलवान श्री श्यामलाल को लम्बे समय तक कुस्ती लडने के लिये भी याद किया जाता है। श्यामलाल के परिवार वाले अकसर एक और घटना का जिकर किया करते है। सर्दीयो के दिन हुआ करते थे रोहतक के निकट भलोट गॉव मे दंगल था जहॉ पर श्यामलाल की कुस्ती जगरूप सिंह राठी अर्जुन अवार्डी के साथ हुई थी । इस कश्मकश कुस्ती मे विजय श्री श्यामलाल के हाथ लगी तो लोगो ने उपर उठाकर श्यामलाल को अखाडे का चक्कर लगवाया था । बाद मे श्री श्यामलाल जी ने अपना अखाडा खोल लिया और अपनी सेवाये कुस्ती के विकास मे देने लगे । श्री श्यामलाल जी के अखाडे से अनेक बच्चो ने निकलकर सरकारी नौकरीयो को प्राप्त किया है।
भगवान की दया से श्यामलाल जी के पास मे दो बेटी और तीन बेटे है। श्यामलाल जी के छः पोतो मे से संजु और जित्तु ने पहलवानी की अब संजु हरियाणा पुलिस मे अपनी सेवाये देता है। दूसरी और जित्तू पहलवान आपने दादा कि विराशत को आगे बढा रहा है। जीतू भी अपने दादा की तर्ज पर शानदार कुस्ती लडने के लिये जाना जाता है। नेशनल मे भी कई बार मेडल जीत्तु जीत चुका है।
सत्ताईस फरवरी 2010 को कुस्ती के शानदार गुरू श्री श्यामलाल जी का स्वर्गवास हो गया था । लेकिन श्यामलाल जी आज भी लोगो के दिलो मे जिन्दा है। श्यामलाल जी की विचारधारा आज भी लोगो के दिलो मे जिन्दा है। उनकी विरासत को उनका पोता जीतू पहलवान बखुबी सम्भाल रहा है। कुस्ती से जीवन के आखिरी क्षणो तक गुरू जी श्यामलाल का अटूट लगाव रहा । गॉव घिटोरनी मे हर वर्ष गुरू श्यामलाल जी की याद मे दंगल का आयोजन किया जाता है।
Note- यह लेख गुरू श्यामलाल के पोते संजू पहलवान से हुई बात चीत पर आधारित है।
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत