Saturday, January 18, 2020

खेल हमारी संस्कृति का हिस्सा :- राहुल सूरमा

          पहलवान श्री राहुल सूरमा का जन्म दिल्ली से सटे शाहदरा  मे सन् 06-10-1988 को हुआ था , राहुल सूरमा के पिता श्री विरेन्द्र सूरमा भी पहलवानी किया करते थे ।  पिता को देखकर ही राहुल सूरमा ने पहलवान बनने की अपने मन मे पक्की ठान लयी थी। पहलवान राहुल सूरमा की मॉ ऋतु सूरमा भी अपने बेटे राहुल सूरमा के लिये अपने हाथे से डाईट तैयार करती थी । धीरे - धीरे समय बीता तो राहुल मास्टर चन्दगीराम जी के अखाडे मे चले गये और वही पर अपनी पहलवानी को नई धार दी , पहलवानी के साथ - साथ राहुल सूरमा मे समाज सेवा भी कूट - कूट कर भरी थी । जब भी किसी खिलाडी को वे दुखी देखते तो स्वम् भी दुखी हों उठते थे । उनकी यही आदत उन्हे औरो से अलग खडा करती थी । 
       साल 2000 के बाद मे राहुल सूरमा पहलवान स्टेडियम मे जाकर कुस्ती का अभ्यास करने लगे । उनकी मेहत रंग लाई , राहुल की मेहनत का ही नतिजा था कि उन्होने बाल केसरी , भारत कुमार , पंजाब केसरी , रूस्तमे हिन्द , के खिताब अपने नाम किये , यही नही जूनियर नेशनल मे ब्रोन्ज तथा आल इण्डिया यूनिवर्सिटी मे भी दो मेडल एक सिलवर , एक ब्रोन्ज  राहुल सूरमा पहलवान के नाम है। साल 2012 मे चोट लगने पर डाक्टर के कहने पर राहुल सूरमा को खेल छोडना पडा , लेकिन दूर ना हो सके और किसी न किसी रूप मे आज भी खेल से जुडे है। राहुल सूरमा पहलवान ने युवा खेल प्रोहत्साहन संघ की भी स्थापना की है। जिसका उद्देश्य भविष्य मे  खिलाडियो की समस्याओ को दूर करना व मदद करना होगा । राहुल सूरमा पहलवान का कहना है कि हम लोग जो दंगल कराते है उसका उद्देशय नये बच्चो मे खेल के प्रति आकृषण पैदा करना है। जिससे युवा बच्चे खेल से जुडे और उनका स्वास्थय अच्छा रहे । हम जो भी कर रहे है। यह एक मात्र पडाव है। मंजिल अभी दूर है। समाज सेवा से बडी कोई सेवा नही है। समाज सेवा कही भी किसी भी क्षेत्र मे की जा  सकती है। 

 
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत