आज मै आपको रूबरू कराऊगॉ पहलवान धर्मेंद्र दलाल से पहलवान जी मेरे गोति भाई भी है। लेकिन बडे दिनो से मै उन पर नही लिख पाया था । आज लिख रहा हू जानते है पहलवान जी के बारे मे -
धर्मेंद्र दलाल
चौधरी धर्मेंद्र दलाल का जन्म हरियाणा के ग्राम मण्डोठि मे छारा के पास सन 1984 मे हुआ था । पहलवान धर्मेंद्र दलाल के पिता का नाम चौधरी सुबे सिंह और माता का नाम चन्द्री देवी है। हरियाणा का यह क्षेत्र जहॉ पर धर्मेंद्र दलाल का जन्म हुआ वहॉ पर कुस्ती का शौक बहुत पुराना है। धर्मेंद्र पहलवान का बडा भाई सोनू पहलवान भी बहुत बडा पहलवान रहा है। (सोनू पहलवान जी पर मै बाद मे अलग से प्रकाश डालूगॉ )
कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण
धर्मेंद्र दलाल अपने बडे भाई सोनू की पहलवानी से प्रभावित होकर ही कुस्ती के क्षेत्र मे आये थे । सोनू पहलवान गुरू द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप के अखाडे जो आजादपुर मे स्थित है मे अभ्यास किया करते थे । पन्द्रह वर्ष की आयु मे धर्मेद्र दलाल अपने भाई सोनू के पास गुरू कैप्टन चॉदरूप अखाडा मे चले गये । यही से धर्मेंद्र दलाल का कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण हुआ ।
पिता सुबे सिंह की वजह से मिलती रही प्रेरणा
धर्मेंद्र दलाल पहलवान पुराने दिनो को याद कर बताते है कि मै अपने भाई हिन्द केसरी सोनू के साथ पहलवान बनने के रास्ते पर चल पडा था । पहलवानी मे खर्च बहुत आता है। जब एक किसान परिवार को दो - दो पहलवानो का खर्च उठाना पडे तो मुशकिल दौर को आप बखुबी समझ सकते है। मुझे याद है। मेरा पिताजी हम दोनो भईयो के लिये रोजाना तीन तीन बसें बदलकर अखाडे मे दूध लेकर आते थे , गर्मी हो या बरसात पिताजी हमेशा अपनी डयूटी पर डटे रहे । कई बार पिताजी बारिश मे भीगते हुये आते थे । समय गुजर गया लेकिन लगता है कि कल की बाते है।
द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप से जुडी यादे
धर्मेंद्र कहते है कि गुरू जी जो अखाडे मे नया लडका आता था ,उसे गाली बहुत देते थे । जब कोई गलती करता तो लठ भी मारते थे कोई चू चपट तक नही करता था । गुरू जी पहचान लेते थे कि कौन पहलवान बन सकता है। नियम और अनुशासन गुरू जी का बहुत सक्त रहता था । उस दौर मे क्रीकेट मैच का बडा चलन होता था । यदि गुरू जी को पता चल गया कि लडके मैच देख रहे है। तो कमरे मे घुसकर मारते थे । मुझे याद है , मै जब कई मेडल जीत चुका था तब भी अखाडे से बहार पैर रखता हुआ डरा करता था , कि कही गुरू जी ना आ जाये । एसा अनुशासन होता था । अब जमाना बदल रहा है , कोई गुरू की सुनने को तैयार नही यही कारण है कि लडके मार्ग भटक कर पिछड जाते है। पहलवान नही बन पाते ।
बीमारी के दिनो मे भी चॉदरूप ने धर्मेंद्र दलाल को दिया था आशिर्वाद
यह बाते कैप्टन चॉदरूप जी की बीमारी के दिनो की है। कैप्टन सहाब के पास उनके कई सारे शिष्य उनका हाल चाल जानने के लिये आये हुये थे । धर्मेंद्र दलाल भी उनके पास बैठे थे तब चॉदरूप जी ने कहा था कि मेरा शिष्य धर्मेंद्र एसा शिष्य रहा है। जिसने कभी भी मुझे किसी काम को मना नही किया । कभी किसी काम से मुह नही चुराया , कभी जीवन मे मना करना तो सीखा ही नही । गुरू जी ने अपने पास बुला आशिर्वाद दिया था। धमेन्द्र दलाल बताते है कि हम गुरू जी को सहाब जी कहा करते थे । गुरू जी से जुडी हर एक बात आज भी याद है। लेकिन संसार का नियम है कि बीता हुआ समय वापिश नही आ सकता ।
उपलब्धियॉ
पहलवान धर्मेन्द्र दलाल ने भारत मे केवल एक बार हुये ग्रीको रोमन के टाईटल रूस्तमे हिन्द मे हिस्सा लिया था , उस समय फाईनल मे धमेन्द्र दलाल का मुकबला जार्जिया के पहलवान से हुआ और धमेन्द्र दलाल ने विजय हासिल की तथा रूस्तमे हिन्द का मुकाबला अपने नाम किया था । पहलवान धमेन्द्र दलाल ने 40 से ज्यादा बार भारत का प्रतिनिधित्व विदेशो मे किया । अनेको मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। कोमनवेल्थ मे 1 गोल्ड, 2 सिलवर , 1 ब्रोन्ज और एशिया चैम्पियनशिप मे सिलवर के साथ साथ अनेको मेडल पहलवान ने अपने नाम किये है।
अर्जुन अवार्ड से जुडी यादे
पहलवान धर्मेन्द्र दलाल बताते है कि जब मुझे अर्जुन अवार्ड के मिलने की घोषणा हुई तब मुझे और मेरे चहाने वालो को बडी खुशी हुई , मै अपने गुरू कैप्टन चॉदरूप के पास गया और उन्हे मैने बताया कि मुझे अर्जुन अवार्ड मिल रहा है। जिस दिन अर्जुन अवार्ड मिलेगा उस दिन मेरे साथ चलना है। उस समय प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे । साल 2013 था । लेकिन गुरू जी बीमार थे , गुरू जी ने कहा कि मै बीमार हु बेटा मै तेरे साथ नही जा सकता, तू आज सबसे पहले मेरे पास आया मेरे लिये यही बहुत बडी बात है। गुरू जी ने आगे कहा की तुझे अब जो सबसे प्यारा लगता हो उसे अपने साथ जे जाना । धर्मेंद्र कहते है कि मेरे पिता का स्वर्गवास हो चुका था । मैने अपनी मॉ को ले जाने का फैसला लिया जब राष्ट्रपति द्वारा मुझे अर्जुन अवार्ड दिया जा रहा था , मॉ की ऑखे खुशी मे भर आई थी।
दलाल खाप से एक मात्र अर्जुन अवार्डी है धर्मेंद्र पहलवान
बहुत कम लोग जानते होगे कि धर्मेंद्र पहलवान दलाल गोत्र से और दलाल खाप से एक मात्र खिलाडी है जो अर्जुन अवार्डी है। दलाल खाप से धमेन्द्र को छोडदे तो कोई दूसरा अर्जुन अवार्डी इस खाप मे नही है। मै सामाजिक संगठनो को धर्मेद्र दलाल के लिये ही नही सभी खिलाडियो के लिये कहना चहाता हू कि इन लोगो को समय समय पर सम्मानित करना चाहिये । जिससे आने वाली पीढि इनका अनुसरण कर सके ।
डाईट के उपर धर्मेंद्र दलाल के विचार
पुराने दिनो को याद कर धर्मेंद्र कहते है कि हमारे समय मे हम तो केवल दूध ,घी ,बदाम, मुनाक्का, फल, जूस, दाल जैसी सामान्य चीजो का ही अनुशरण करते थे । अब जमाना बदल रहा है। लोग एक दम से मेडल प्राप्त करना चहाते है। जबकि जल्द बाजी हानीकारक ही होती है।
नये पहलवानो को धर्मेंद्र दलाल के सुझाव
यदि किसी को पहलवान बनना है तो अपने कोच , अपने गुरू का आदर करना सीखना होगा , उनके बताये रास्ते पर चलना होगा । उनके द्वारा बोली गई कडवी बातो का मलाल नही करना चाहिये । इनके बताये गये जो भी वर्क आउट है। उन्हें फोलो करना होगा । तब आपको सफलता मिलेगी , अन्यथा नही । छः फुट 2 ईच लम्बे और सौ किलो से ज्यादा वजन के धर्मेंद्र दलाल पहलवान की शादी 2008 मे शशि कान्ता के साथ हो चुकी है। पहलवान जी के पास एक बेटी पायल और एक बेटा है जिसका नाम सचिन है। पहलवान जी सादगी से रहना पसंद करते है , मिलनसार व्यक्तिव उनकी उपलब्धियो मे चार चॉद लगा देता है। पहलवान जी पहले फ्री स्टाईल की कुस्ती लडा करते थे बाद मे कमर दर्द की वजह से गुरू चॉद रूप के कहने पर ग्रीको रोमन मे लडने लगे । धर्मेंद्र दलाल आज देश के नामवर पहलवानो मे से एक है।
धर्मेंद्र दलाल अखाडे का करते है संचालन
वर्तमान मे पहलवान धर्मेंद्र दलाल अपने बडे भाई सोनू हिन्द केसरी के नाम से अखाडे का संचालन करते है। धर्मेंद्र चहाते है। कि युवा वर्ग को एक एसा माहोल मिले जिससे वे सही मार्ग पर चलकर देश प्रदेश का नाम रोशन कर सके ।
याद आ जाते है पुराने दिन
धर्मेंद्र दलाल कहते है कि जब आज भी कभी गुरू जी कैप्टन चॉदरूप के अखाडे मे जाता हू तो वर्तमान संचालक भी अमित ढाका (गुरू जी के पोते ) की और से बहुत आदर सत्कार मिलता है। सभी पुरानी यादे ताजा हो जाती है। धमेन्द्र कहते है की मै तो गर्व करता हू की हमे गुरू के साथ समय बीताने का मौका मिला, उनसे कुछ सीखने का मौका मिला वह दौर भी सुनहरी दौर था ।
Date 08-03-2019
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत
धर्मेंद्र दलाल
चौधरी धर्मेंद्र दलाल का जन्म हरियाणा के ग्राम मण्डोठि मे छारा के पास सन 1984 मे हुआ था । पहलवान धर्मेंद्र दलाल के पिता का नाम चौधरी सुबे सिंह और माता का नाम चन्द्री देवी है। हरियाणा का यह क्षेत्र जहॉ पर धर्मेंद्र दलाल का जन्म हुआ वहॉ पर कुस्ती का शौक बहुत पुराना है। धर्मेंद्र पहलवान का बडा भाई सोनू पहलवान भी बहुत बडा पहलवान रहा है। (सोनू पहलवान जी पर मै बाद मे अलग से प्रकाश डालूगॉ )
कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण
धर्मेंद्र दलाल अपने बडे भाई सोनू की पहलवानी से प्रभावित होकर ही कुस्ती के क्षेत्र मे आये थे । सोनू पहलवान गुरू द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप के अखाडे जो आजादपुर मे स्थित है मे अभ्यास किया करते थे । पन्द्रह वर्ष की आयु मे धर्मेद्र दलाल अपने भाई सोनू के पास गुरू कैप्टन चॉदरूप अखाडा मे चले गये । यही से धर्मेंद्र दलाल का कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण हुआ ।
पिता सुबे सिंह की वजह से मिलती रही प्रेरणा
धर्मेंद्र दलाल पहलवान पुराने दिनो को याद कर बताते है कि मै अपने भाई हिन्द केसरी सोनू के साथ पहलवान बनने के रास्ते पर चल पडा था । पहलवानी मे खर्च बहुत आता है। जब एक किसान परिवार को दो - दो पहलवानो का खर्च उठाना पडे तो मुशकिल दौर को आप बखुबी समझ सकते है। मुझे याद है। मेरा पिताजी हम दोनो भईयो के लिये रोजाना तीन तीन बसें बदलकर अखाडे मे दूध लेकर आते थे , गर्मी हो या बरसात पिताजी हमेशा अपनी डयूटी पर डटे रहे । कई बार पिताजी बारिश मे भीगते हुये आते थे । समय गुजर गया लेकिन लगता है कि कल की बाते है।
द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप से जुडी यादे
धर्मेंद्र कहते है कि गुरू जी जो अखाडे मे नया लडका आता था ,उसे गाली बहुत देते थे । जब कोई गलती करता तो लठ भी मारते थे कोई चू चपट तक नही करता था । गुरू जी पहचान लेते थे कि कौन पहलवान बन सकता है। नियम और अनुशासन गुरू जी का बहुत सक्त रहता था । उस दौर मे क्रीकेट मैच का बडा चलन होता था । यदि गुरू जी को पता चल गया कि लडके मैच देख रहे है। तो कमरे मे घुसकर मारते थे । मुझे याद है , मै जब कई मेडल जीत चुका था तब भी अखाडे से बहार पैर रखता हुआ डरा करता था , कि कही गुरू जी ना आ जाये । एसा अनुशासन होता था । अब जमाना बदल रहा है , कोई गुरू की सुनने को तैयार नही यही कारण है कि लडके मार्ग भटक कर पिछड जाते है। पहलवान नही बन पाते ।
बीमारी के दिनो मे भी चॉदरूप ने धर्मेंद्र दलाल को दिया था आशिर्वाद
यह बाते कैप्टन चॉदरूप जी की बीमारी के दिनो की है। कैप्टन सहाब के पास उनके कई सारे शिष्य उनका हाल चाल जानने के लिये आये हुये थे । धर्मेंद्र दलाल भी उनके पास बैठे थे तब चॉदरूप जी ने कहा था कि मेरा शिष्य धर्मेंद्र एसा शिष्य रहा है। जिसने कभी भी मुझे किसी काम को मना नही किया । कभी किसी काम से मुह नही चुराया , कभी जीवन मे मना करना तो सीखा ही नही । गुरू जी ने अपने पास बुला आशिर्वाद दिया था। धमेन्द्र दलाल बताते है कि हम गुरू जी को सहाब जी कहा करते थे । गुरू जी से जुडी हर एक बात आज भी याद है। लेकिन संसार का नियम है कि बीता हुआ समय वापिश नही आ सकता ।
उपलब्धियॉ
पहलवान धर्मेन्द्र दलाल ने भारत मे केवल एक बार हुये ग्रीको रोमन के टाईटल रूस्तमे हिन्द मे हिस्सा लिया था , उस समय फाईनल मे धमेन्द्र दलाल का मुकबला जार्जिया के पहलवान से हुआ और धमेन्द्र दलाल ने विजय हासिल की तथा रूस्तमे हिन्द का मुकाबला अपने नाम किया था । पहलवान धमेन्द्र दलाल ने 40 से ज्यादा बार भारत का प्रतिनिधित्व विदेशो मे किया । अनेको मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। कोमनवेल्थ मे 1 गोल्ड, 2 सिलवर , 1 ब्रोन्ज और एशिया चैम्पियनशिप मे सिलवर के साथ साथ अनेको मेडल पहलवान ने अपने नाम किये है।
अर्जुन अवार्ड से जुडी यादे
पहलवान धर्मेन्द्र दलाल बताते है कि जब मुझे अर्जुन अवार्ड के मिलने की घोषणा हुई तब मुझे और मेरे चहाने वालो को बडी खुशी हुई , मै अपने गुरू कैप्टन चॉदरूप के पास गया और उन्हे मैने बताया कि मुझे अर्जुन अवार्ड मिल रहा है। जिस दिन अर्जुन अवार्ड मिलेगा उस दिन मेरे साथ चलना है। उस समय प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे । साल 2013 था । लेकिन गुरू जी बीमार थे , गुरू जी ने कहा कि मै बीमार हु बेटा मै तेरे साथ नही जा सकता, तू आज सबसे पहले मेरे पास आया मेरे लिये यही बहुत बडी बात है। गुरू जी ने आगे कहा की तुझे अब जो सबसे प्यारा लगता हो उसे अपने साथ जे जाना । धर्मेंद्र कहते है कि मेरे पिता का स्वर्गवास हो चुका था । मैने अपनी मॉ को ले जाने का फैसला लिया जब राष्ट्रपति द्वारा मुझे अर्जुन अवार्ड दिया जा रहा था , मॉ की ऑखे खुशी मे भर आई थी।
दलाल खाप से एक मात्र अर्जुन अवार्डी है धर्मेंद्र पहलवान
बहुत कम लोग जानते होगे कि धर्मेंद्र पहलवान दलाल गोत्र से और दलाल खाप से एक मात्र खिलाडी है जो अर्जुन अवार्डी है। दलाल खाप से धमेन्द्र को छोडदे तो कोई दूसरा अर्जुन अवार्डी इस खाप मे नही है। मै सामाजिक संगठनो को धर्मेद्र दलाल के लिये ही नही सभी खिलाडियो के लिये कहना चहाता हू कि इन लोगो को समय समय पर सम्मानित करना चाहिये । जिससे आने वाली पीढि इनका अनुसरण कर सके ।
डाईट के उपर धर्मेंद्र दलाल के विचार
पुराने दिनो को याद कर धर्मेंद्र कहते है कि हमारे समय मे हम तो केवल दूध ,घी ,बदाम, मुनाक्का, फल, जूस, दाल जैसी सामान्य चीजो का ही अनुशरण करते थे । अब जमाना बदल रहा है। लोग एक दम से मेडल प्राप्त करना चहाते है। जबकि जल्द बाजी हानीकारक ही होती है।
नये पहलवानो को धर्मेंद्र दलाल के सुझाव
यदि किसी को पहलवान बनना है तो अपने कोच , अपने गुरू का आदर करना सीखना होगा , उनके बताये रास्ते पर चलना होगा । उनके द्वारा बोली गई कडवी बातो का मलाल नही करना चाहिये । इनके बताये गये जो भी वर्क आउट है। उन्हें फोलो करना होगा । तब आपको सफलता मिलेगी , अन्यथा नही । छः फुट 2 ईच लम्बे और सौ किलो से ज्यादा वजन के धर्मेंद्र दलाल पहलवान की शादी 2008 मे शशि कान्ता के साथ हो चुकी है। पहलवान जी के पास एक बेटी पायल और एक बेटा है जिसका नाम सचिन है। पहलवान जी सादगी से रहना पसंद करते है , मिलनसार व्यक्तिव उनकी उपलब्धियो मे चार चॉद लगा देता है। पहलवान जी पहले फ्री स्टाईल की कुस्ती लडा करते थे बाद मे कमर दर्द की वजह से गुरू चॉद रूप के कहने पर ग्रीको रोमन मे लडने लगे । धर्मेंद्र दलाल आज देश के नामवर पहलवानो मे से एक है।
धर्मेंद्र दलाल अखाडे का करते है संचालन
वर्तमान मे पहलवान धर्मेंद्र दलाल अपने बडे भाई सोनू हिन्द केसरी के नाम से अखाडे का संचालन करते है। धर्मेंद्र चहाते है। कि युवा वर्ग को एक एसा माहोल मिले जिससे वे सही मार्ग पर चलकर देश प्रदेश का नाम रोशन कर सके ।
याद आ जाते है पुराने दिन
धर्मेंद्र दलाल कहते है कि जब आज भी कभी गुरू जी कैप्टन चॉदरूप के अखाडे मे जाता हू तो वर्तमान संचालक भी अमित ढाका (गुरू जी के पोते ) की और से बहुत आदर सत्कार मिलता है। सभी पुरानी यादे ताजा हो जाती है। धमेन्द्र कहते है की मै तो गर्व करता हू की हमे गुरू के साथ समय बीताने का मौका मिला, उनसे कुछ सीखने का मौका मिला वह दौर भी सुनहरी दौर था ।
Date 08-03-2019
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत