Saturday, March 30, 2019

गुरू भीम पहलवान पर विशेष



गुरू भीम पहलवान की कर्म भूमि किशन गढ महरोल्ली 

दिल्ली के किशन गढ महरोल्ली मे सन् 1951 को भीम पहलवान का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम रतन सिंह पहलवान और माता का नाम रामदेई था । जब भीम पहलवान जी का जन्म हुआ तब उनके डील डोल को देखकर ही पिता रतन सिंह ने अपने बेटे का नाम भीम रखने का फैसला किया था । रतन सिंह भी अपने समय के एक प्रतिष्ठित पहलवान रहे है। रतन सिंह के बेटे भीम ने अपने नाम के अनुरूप कार्य किया एक तरह से कह सकते है। जैसा नाम वैसा काम,



भीम जी की नशो मे कुस्ती बचपन से ही कूट- कूट कर भरी पडी थी 

श्री भीम जी की नशो मे कुस्ती बचपन से ही कूट- कूट कर भरी पडी थी । तथा भारत केसरी , हिन्द केसरी के साथ अनेको प्रतिस्पर्धाओ मे मेडल जीतकर अपना लोहा मनवाया । पहलवान भीम जी को उनके जानने वाले उन्हे आज भी कुस्ती का दिवाना कहते है।  पहलवान जी ने दिल्ली टूरीज्म डपलामेन्ट कारपोरेशन मे नौकरी की लेकिन कुस्ती के लिये समय निकालना कभी ना भूले लगातार कुस्ती के प्रति अटूट लगाव के कारण ही पहलवान भीम जी ने 1968 मे दिल्ली देहात बाल व्यायामशाला की स्थापना की और बच्चो को कुस्ती सिखाने लगे  ।


भीम पहलवान की बडे दंगलो मे होती थी बडी भुमिका

भीम पहलवान वो पहलवान थे जिनहोने खेल को बहुत कुछ दिया उन्होने बहुत संघर्ष खेल को  आगे बढाने के लिये किया जीवन के आखिरी दौर तक वह संघर्ष जारी रहा बडे दंगलो मे पहलवान जी की बडी भूमिका लम्बे समय तक चलती रही उन्होने अनेको भरत केसरी , हिन्द केसरी दंगलो का आयोजन कराया और अनेको दंगलो मे समय समय पर सहयोग करते रहे । अपने इन्ही कार्यो की बदौलत भीम पहलवान को आज भी याद किया जाता है।

भीम पहलवान को जीव जनतुओ से था अटूट लगाव

 भीम पहलवान को जीव जनतुओ से अटूट लगाव रहा पहलवान जी जब अखाडे मे होते तो कई सारे कुत्ते बिल्ली कौवे तक अखाडे  मे  आ जाते थे , पहलवान जी उन्हे दूध पिलाया करते । ये प्राणी उनकी गाडी तक पहचान लेते थे और गाडी के पीछे दौड पडते पहलवान जी कई बार तो इन्हे  अपनी गाडी मे बैठा लेते थे ।

कमेंट्री के बादशाह थे भीम पहलवान 

कुस्ती के दंगलो मे भीम पहलवान जी कमेंट्री भी किया करते थे , उनका बोलने का ढंग इतना प्राभावी था कि क्या कहने आज भी कई लोग भीम पहलवान को याद कर कहते है। कि पहलवान जी  जैसी कमेंट्री आज तक सुनने को नही मिली


कुस्ती के दीवाने थे भीम पहलवान 

भीम पहलवान जी कुस्ती से जुडे कार्यो को करने मे अपने निजि कार्यो को भी छोड देते थे । उनकी लग्नशीलता को देखकर उनके करीबी भीम पहलवान जी को कुस्ती का दीवाना कहते थे । क्योकि कई बार तो पहलवान जी अपनी सारी तनखा को पहलवानो पर ही खर्च कर देते थे ।

श्री भीम पहलवान की पत्नी श्रीमति सरस्वती महलावत को करीब से  जानिये

श्रीमति सरस्वती महलावत का जन्म दिल्ली के ही सहीपुर गॉव मे सन् 1955 मे हुआ था । पिता उमराव सिंह व मॉ चन्द्रावती के लाड प्यार से पली बडी हुई सरस्वती  का जैसा नाम वैसा ही काम भी रहा ।  सरस्वती जी बचपन से ही पढाई लिखाई मे बेहद होनहार थी । उनकी पढाई और ज्ञान कौशल के चलते होम मिनिस्टरी मे नौकरी मिली बाद मे वे टीचिगं लाईन मे आ गई और महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सर्वश्रेष्ट टीचर के अवार्ड से सम्मानित किया गया। यहॉ तक तो ठीक था लेकिन जब जरूरत पडी तो कुस्ती के क्षेत्र मे अपने आप को उन्होने बखुबी स्थापित ही नही किया बल्की अपने पति  की विरासत को आगे बढाने के लिये लगातार संघर्ष भी किया जो आज तक जारी है। सरस्वती जी बताती है कि अभी हमारे पास मे 50 बाई 50 फिट मिट्टी का अखाडा है। उसी मे पहलवान ट्रेनिगं लेते है तथा बडे दंगल का आयोजन हम बहुत पहले से ही करते आ रहे है। अब बेटे मोहित के कन्धो पर जिम्मेदारी है। जिसे वो बखूबी निभा रहा है।


1981मे बन्धे शादी के बन्धन मे 

1981 मे पहलवान भीम जी की शादी सरस्वती महलावत के साथ हुई । सरस्वती महलावत जी होम मिनिस्टरी मे नौकरी करती थी । उस समय सरस्वती महलावत जी के पास M.A MED , कमर्शियल आर्ट डिग्री के अलावा कई डिग्रीया थी । सरस्वती जी ने बाद मे होम मिनिस्टरी की नौकरी छोडकर टीचिगं लाईन की नौकरी सुरू की पहलवान भीम जी के साथ रहते - रहते कब सरस्वती जी को कुस्ती से लगाव हो गया उन्हे पता ही ना चला । भीम पहलवान जी को कुस्ती से इतना लगाव था कि अपनी सारी तनखा कई बार वे अपने पहलवानो पर ही खर्च कर देते थे । सरस्वती जी पुराने दिनो को याद कर बताती है कि मै कई बार सोचती थी की पहलवान जी को कुस्ती के प्रति कितना लगाव है। वे कई बार घर परिवार के कार्यो को छोड कुस्ती के कार्यो को महत्व देते थे । सरस्वती जी आगे कहती है कि मैने भी पहलवान जी की भावनाओ को समझने मे देर ना लगाई और उनके कार्यो मे अपना हाथ बटाने लगी मैने उनके कार्यो का कभी विरोध नही किया ।


भीम पहलवान जी को दो बेटे हुये रोहित और मोहित , लेकिन पहलवान जी की इच्छा थी की एक बेटी भी हो पहलवान जी के घर मे एक बेटी का जन्म भी हुआ । भीम पहलवान जी अपनी बेटी को बेटो से भी ज्यादा दुलार करते थे । बेटी का नाम रचिता रखा लेकिन घर मे प्यार से भावना नाम लेकर पहलवान जी अपनी बेटी को पुकारा करते थे । भीम पहलवान जी के बेटे रोहित का स्वर्गवास हो चुका है।



मोहित खुद का बिजनेश करता है। और बेटी रचिता डॉक्टर है। साल 2000 मे वो घटना घटी जो नही घटनी चाहिये थी । भीम पहलवान जी का एक ऐक्सीडेन्ट मे स्वर्गवास हो गया था।  भीम पहलवान जी की पत्नी श्रीमती सरस्वती महलावत जी के लिये यह घटना बहुत बडे दुख के पहाड के समान थी। इसके बाद सरस्वती महलावत जी ने अपने आप को सम्भाला और अपने पति की जो आधी अधुरी पडी योजनाये थी उनमे  जान फूकने का काम किया । कुछ ही समय के बाद मे जिस पृष्ठ भूमि पर भीम पहलवान जी काम किया करते थे उसी पृष्ठ भूमि पर आकर श्रीमती सरस्वती महलावत जी ने कार्य करना सुरू कर दिया ।

श्रीमती सरस्वती महलावत जी ने अखाडे की बागडोर सम्भाली 

अपने पति के अखाडे की बागडोर को भी अपने हाथो मे ले संचालन करना सुरू कर दिया । श्रीमती सरस्वती महलावत जी देश की एक मात्र एसी महिला है जो कुस्ती के क्षेत्र मे वो योगदान दे रही है।  जिस योगदान की बुनियाद पर श्रीमति सरस्वती जी करोडो महिलाओ और पुरूषो के लिये प्रेरणा का र्श्रोत बन चुकी है। श्रीमती सरस्वती महलावत जी दिल्ली देहात बाल व्यायामशाला की संचालिका रहते हुये अखाडे को नई उचाईयॉ देने मे कभी पीछे नही हटी और समाज व देश के सामने श्रीमती सरस्वती महलावत ने अपने आप को कई क्षेत्रो मे साबित किया  । जिसे कभी नकारा नही जा सकता है।
                                          अखाडें मे श्री मोहित भीम पहलवान (किगं)

दिल्ली देहात बाल व्यायामशाला के वर्तमान संचालक है, श्री मोहित भीम पहलवान (किगं)

पहलवान भीम जी का लडका मोहित किंग भी अखाडे को अपनी सेवाये देता है। अखाडें पिता के बताये रास्ते पर चलकर मोहित अपने अखाडे को नई  दिशा देने का कार्य कर रहे है। ताकि अपनी विरासत को सहेजकर रखा जा सके , इस विरासत को यहा तक एक जो मंजिल मिली  है। उसमे गुरू भीम पहलवान जी जिन्हें कुस्ती रत्न के नाम से भी जाना जाता है। उनका बडा योगदान रहा है।


श्री मोहित भीम पहलवान (किगं)का समर्पण भाव

कई कुस्ती के प्रति समर्पण भाव ही तो  हैं , कि मोहित भीम पहलवान (संचालक दिल्ली देहात बाल व्यामशाला ) अपने अखाडे के कई बच्चो का खर्च तक उठाते है। इसके लिये मोहित  भीम पहलवान उन बच्चो को चुनते है। जो रोजाना अखाडे मे अभ्यास करते है। गैर हाजिर नही रहते । इससे बच्चो मे प्रतिस्पर्धा बढती है।


श्री मोहित भीम पहलवान (किगं)का दंगलो मे रहता है विशेष सहयोग 

दिल्ली के दंगलो से मोहित भीम पहलवान किंग का पुराना नाता  रहा है। आज भी दंगलो मे गुरू भीम पहलवान की तर्ज पर मोहित पहलवान जी का सहयोग रहता है। मोहित भीम पहलवान कहते है। कि हम तो खेल के लिये तन मन धन से मेहनत करते है। फल की इच्छा नही करते ।


श्री मोहित भीम पहलवान (किगं) से जुडी कुछ बाते 

श्री मोहित भीम पहलवान (किगं ) का जन्म  14-11-1986 को दिल्ली मे हुआ था । पिता भीम पहलवान और माता श्रीमती सरस्वती देवी ने श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )  को उच्च संस्कार देने मे कोई कमी नही छोडी , यही कारण है की श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )  के अन्दर समाज सेवा की भावना कूट कूट कर भरी है। मोहित की बहन का कहना है कि मोहित जैसा भाई  ढूढने से नही किस्मत से मिलता है। श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )  ने अपनी मेहनत और अपने उच्च कार्यो की बदौलत समाज मे एक नई  पहचान बनाई है। साल 2009 मे श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )  की शादी हो चुकी है।  श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )  बजरंग बली के भक्त है। दिल्ली देहात बाल व्यायामशाला अखाडे के संचालन के अलावा समाज सेवा मे श्री मोहित भीम पहलवान (किगं )जी सदा समर्पित रहते है।


रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत

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Saturday, March 16, 2019

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य से हुई बातचीत के मुख्य अंश।


रविन्द्र शामली-:  गुरू हनुमान जी के 119 वे जन्म दिन पर 15 मार्च 2019 को जो यह आयोजन हुआ है। इसका श्रेय  आाप किसे देगे सर 

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -: इस आयोजन का श्रेय जाता है गुरू हनुमान जी को ।  उनके आशिर्वाद से ही यह सब सम्भव हुआ है। उन्ही की वजह से इतने लोग बहुत दूर दूर से आये है, आपना काम छोडकर आये है। 

रविन्द्र शामली- आज के दौर मे खेल कितना बदल गया सर ?

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -:  बदलाव समय की मागं होती है। खेल मे टैक्निक बहुत आ गई है। पढाई बहुत जरूरी हो गई । इसलिये हमे अपने आप को  समय के साथ बदलना होगा और आगे बढना होगा । खेल के क्षेत्र मे आगे बढने के लिये हम लगातार प्रयासरत है। 

रविन्द्र शामली-: सर इस बार भारत केसरी टाईटल गद्दे पर करवाया गया पहले मिट्टी पर करवाया जाता था बदलाव के पीछे क्या सोच रही ?

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य - मै जब भी खेल के विषय पर सोचता हू तो यही सोचता हू कि खेल आगे कैसे बढे,  इस बार यह टाईटल गद्दे पर इसलिये करवाया गया कि इसका सीधा लाभ खिलाडियो को मिल सके क्योकि भविष्य मे जो भी मुकाबले बहार विदेशो मे होगे उनमे हमारे बच्चो को लाभ मिले । 

रविन्द्र शामली-: केन्द्रय मन्त्री श्री हर्षवर्धन जी के सामने आपने आज गुरू हनुमान जी के अखाडे की कई समस्याये उठाई और श्री हर्षवर्धन जी ने भी  बहुत ही सकारात्मक बात की है। आप को क्या लगता है ?

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -: उम्मीद है अच्छा ही होगा मन्त्री जी ने सकारात्मक बाते की है। हम यही चहाते है सुखद नतीजे निकले और समय के साथ -साथ गुरू हनुमान जी का नाम और संस्था और आगे बढे । 

रविन्द्र शामली- सर गुरू जी के नाम पर और कोई योजना आगे बढ रही है ? 

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -: हमने इस बार साल 2019 से गुरू हनुमान जी के नाम पर गुरू हनुमान खेल रत्न अवार्ड देना शुरू किया है। जिसमे गुरू हनुमान जी  के प्रतीक चिन्ह के साथ खिलाडी को एक लाख रूपये दिये जाते है। पहला गुरू हनुमान खेल रत्न अवार्ड  पहलवान सुशील कुमार को दिया है।  आगे कोशिश करेगे की दूसरे खेल के खिलाडियो को भी यह अवार्ड मिले । हरियाणा मे हमे जमीन का एक बडा हिस्सा किसानो की ओर से गुरू हनुमान जी के नाम पर मिल रहा है। जहाँ  पर हमारी योजना यह  है , कि गुरू हनुमान जी के नाम से एक एसा स्टेडियम स्कूल बने जिसमे हर सुविधा हो , हर खेल हो , एक छत के नीचे खिलाडी को सब सुविधा मिले । यदि यह योजना परवान चढी तो हम सायद उस समय तक ना रहे , लेकिन देश को सुखद परिणाम खेल के क्षेत्र मे भविष्य मे ज्यादा बेहतर मिलेगे । 

रविन्द्र शामली-: गुरू हनुमान अखाडा से जुडी कोई ऐसी बात सर जो आज भी आपको याद हो तो बताये ? 

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -: जब गुरू जी के अखाडे से एक से एक बडे पहलवान निकले और पहलवानो ने डंका विदेशो मे अपनी कुस्ती कला का बजाया , तो दूसरे देशो से लोग गुरू जी के अखाडे मे ये देखने के लिये आते थे कि वो कौन सी खान है दिल्ली मे जहॉ से एसे एसे पहलवान निकल कर आ रहे है। विदेशी सोचते थे कि पता नही कौनसी सुविधा है यहॉ पर,  जिसके बल पर परचम लहरा रहे है।  ये भी एक याद है और भी बहुत सारी यादे है बताऊगां फिर कभी । 

रविन्द्र शामली-:  अगली बार जब भी कोई बडा आयोजन गुरू हनुमान जी की संस्था की और से होगा तो क्या बदलाव देखने को मिल सकता है सर ? 

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -:  हो सकता है आपको पुरूषो के साथ साथ महीलाओ की कुस्ती भी देखने को मिले ।

रविन्द्र शामली- खिलाडियो के लिये कोई संदेश ?

श्री राजसिंह द्रोणाचार्य -:  मै तो खिलाडी  बच्चो के लिये यही कहुगा कि यदि आपको खिलाडी बनना है, आगे बढना है तो अनुशासित बनना पडेगा ,  यदि आप अनुशासित नही है। तो आप उतना आगे नही जा सकते जितने के आप हकदार हो 


साक्षातकार कर्ता 
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत 

Thursday, March 14, 2019

गुरू हनुमान पर विशेष


 गुरू हनुमान का असली नाम था विजयपाल 




विजयपाल का जन्म 15 मार्च सन् 1901 मे राजिस्थान के झुंझुनूं जिले की चिडावा तहसील मे एक किसान परीवार मे हुआ था । विजयपाल को बचपन से ही कुस्ती का बेहद शौक था । लेकिन पस्थितियॉ अनुकूल नही थी । फिर भी रोजाना कसरत कारना विजयपाल की दिनचर्या मे शामिल था ।


नौकरी की खोज मे आये थे दिल्ली

 विजयपाल जब कुछ बडे हुये तो दिल्ली आ गये और दिल्ली की बिडला मिल मे नौकरी करने लगे थे। विजयपाल का नौकारी से बचा हुआ समय बिडला व्यायामशाला मे ही बीतने लगा,  इन्ही बातो से प्रभावित होकर के0के0 बिडला ने बिडला मिल की व्यायामशाला विजयपाल को दान मे दी । अब विजयपाल के कदम जमीन पर कहॉ पडने वाले थे , विजयपाल को रात मे भी नीदं ना आती रात के तीन बजते ही बिडला व्यायामशाला के अखाडे पर खडे हो तेल की मालिश करने के बाद विजय पाल दण्ड बैठक पेलने लगते ।



दिल्ली के युवा विजपाल से हो गये थे प्रभावित

विजयपाल से प्रभावित हो आस पास के लडके भी विजय पाल के पास आने लगे विजय पाल की कुस्ती के प्रति दीवानगी को देख के0के0 बिडला समेत कई लोग विजय पाल को  हनुमान कहने लगे थे ।  देखते ही देखते विजयपाल का नाम ही हनुमान पड गया , समय के साथ - साथ अखाडे मे पहलवानो की संख्या बढने लगी थी । विजयपाल को विजयपाल से हनुमान और हनुमान से गुरू हनुमान बनते देर ना लगी । इस बिडला व्यायामशाला की स्थापना तो बहुत पहले हो चुकी थी लेकिन 1920 मे गुरू हनुमान ने इस व्यायामशाला की बागडोर अपने हाथ मे ले ली थी । सन 1928 के बाद गुरू हनुमान का सारा समय पहलवानो को तैयार करने मे बीतने लगा । गुरू हनुमान ने इस अखाडे की मिट्टी मे अनेको योद्धा , राष्ट्रीय , अर्न्तराष्ट्रीय पहलवान तैयार किये ।



गुरू हनुमान जी अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे 

गुरू हनुमान जी अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे , अनुशासन हीनता उन्हे बिलकुल बरदास्त नही थी । एक बार की बात है। गुरू हनुमान जी को एक जगह जाना था गुरू जी अखाडे से चल दिये सभी पहलवान जानते थे कि गुरू जी कल तक आयेगे  लेकिन रस्ते मे से ही किसी कारण गुरू हनुमान वापिश आ गये अखाडे का एक नामचीन पहलवान फिल्म देखने चला गया था । गुरू जी को जब इस बात का पता चला तो गुरू जी सिनेमा हाल मे पहुच गये । जैसे ही नामचीन पहलवान सिनेमा घर से बहार निकला तो गुरू जी ने कई लठ मार दिये सब देखते रह गये एसे थे गुरू जी हनुमान उन्होंने कभी अनुशासन के मामले मे समझोता नही किया

अनुशासन बना पहलवानो के लिये संजीवनी 

गुरू हनुमान की लाठी और अनुशासन ने पहलवानो को एक एसा  माहोल  तैयार करके दिया , जिसके बलबू ते पर अनेको पहलवानो ने देश का नाम रोशन किया गुरू हनुमान उन महापुरूषो मे से है। जिन्होने  अपनी शादी नही कराई लेकिन असंख्य लोगो को उनके पैरो पर खडा कर उनके  घरो मे सहनाई बजवादी


गुरू हनुमान ने अपनी मेहनत से बनाई थी अपनी पहचान 

आज भी कागजो मे यह अखाडा बिडला व्यायामशाला के नाम से दर्ज है , लेकिन देश विदेशो और लोगो के दिलो मे गुरू हनुमान अखाडा के नाम से इस व्यायामशाला ने जगह बनाई है। यह सब गुरू हनुमान की  अपनी मेहनत का ही परिणाम है।


 गुरू हनुमान ने पहलवानो की नौकरी के लिये सरकार के सामने उठाई थी आवाज 

जब गुरू हनुमान ने देखा की पहलवान आखिर मे आर्थिक तंगी का शिकार हो जाते है तो इस समस्या को दूर करने के लिये गुरू हनुमान जी ने सरकार से सिफारिश भी की और परिणाम स्वरूप अच्छे पहलवानो को सरकारी नौकरीयॉ दी जाने लगी । गुरू हनुमान जी आजीवन कुवॉरे रहे । 24 मई 1999 मे गुरू हनुमान जी गंगा स्नान कर लौट रहे थे दुर्भाग्यवश मेरठ के निकट उनकी गाडी का टायर फट गया और गाडी एक पेड से टकरा गई । इसी हादसे मे गुरू हनुमान जी का स्वर्गवास हो गया। उस दिन कुस्ती का एक बडा अध्याय बन्द हो गया था। इस अखाडे के राज सिंह , ब्रहम प्रकाश , सरदार अजित सिंह , वेद प्रकाश , ओम प्रकाश , राजनारायण , रामधन , सूरज भान , सज्जन सिंह ,रामस्वरूप, ज्ञान प्रकाश जैसे पहलवानो को कभी नही भुलाया जा सकता है। गुरू जी हनुमान के द्वारा तैयार किये गये इन पहलवानो ने दुनिया मे अपना लोहा जो मनवाया है।


 अर्जुन अवार्ड प्राप्त करने वाले गुरू हनुमान के शिष्यो पर एक नजर -

 (1) मुख्त्यार सिहं (1967)
(2) सुदेश कुमार (1971)
(3) प्रेमनाथ (1972)
(4) सतपाल (1974)   
(5) जुगमेन्द्र (1980)
(6) करतार सिंह (1982)
(7) महाबीर सिहं (1985)
(8) सुभाष वर्मा (1987)
(9) राजेश कुमार  (1988
(10) अशोक कुमार (1999)
(11) नरेश कुमार (2000)
(12) रणधीर सिंह (2000)
(13) सुजीत मान (2002)
(14) अनुज चौधरी (2004)
(15) शौकिन्द्र तोमर (2005)
(16) सतबीर दहिया (2009)
(17) राजीव तोमर (2014)
(18) मंजीत छिल्लर (2015)

 पदम  श्री पुरूस्कार प्राप्त करने वाले गुरू हनुमान के शिष्यो पर एक नजर -

(1) स्वयं गुरू हनुमान (1983)
(2) सतपाल (1983)
(3) करतार सिंह (1986)



 गुरू हनुमान को प्राप्त होने वाले अन्य अर्न्तराष्ट्रीय पुरूस्कारो पर एक नजर -

1- डिप्लोमा आफ ऑनर (1980) फ्रासं मे गुरू हनुमान को डिप्लोमा ऑफ आनर से सम्मानित किया गया था।
2- लोर्ड बुद्धा अवार्ड (1981) जापान मे गुरू हनुमान को लोर्ड बुद्धा अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
3- कुस्ती खुदा अवार्ड (1981) पाकिस्तान मे गुरू हनुमान को कुस्ती का खुदा अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
4-मास्टर डिग्री ब्लैक बैल्ट (1991) जापान मे गुरू हनुमान को मास्टर डिग्री ब्लैक बैल्ट से सम्मानित किया गया था।
5-कुस्ती किगं अवार्ड (1991) अमेरिका मे गुरू हनुमान को कुस्ती किगं अवार्ड से सम्मानित किया गया था ।
6-अमर शहीद उधम सिंह अवार्ड (1991) मे गुरू हनुमान को इग्लैण्ड मे अमर शहीद उधम सिंह अवार्ड से सम्मानित किया गया था ।

                                          गुरू हनुमान  व रामधन पहलवान जी

गुरू हनुमान को राष्ट्र की ओर से मिले मान सम्मानो पर एक नजर ।  

(1) 1960 मे भारत के ग्रह मन्त्री ने गुरू हनुमान को राष्ट्र गुरू नामक सम्मान से सम्मानित किया था।
(2) 1982 मे राजिस्थान सरकार ने गुरू हनुमान को राजिस्थान श्री नामक सम्मान से सम्मानित किया ।
(3) 1989 मे बिहार सरकार ने गुरू हनुमान को भीष्म पितामह नामक सम्मान से सम्मानित किया ।
(4) 1991 मे महाराष्ट्र सरकार ने गुरू हनुमान को छत्रपति साहू जी महाराज नामक अवार्ड से सम्मानित किया ।
(5) 2014 मे राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरूस्कार प्राप्त हुआ जिसे द्रोणाचार्य महासिंहराव जी और बिडला मिल के प्रेजिडेन्ट रिसीव कर लेकर आये थे ।


कोच रामधन थे गुरू हनुमान की खोज

 कौन कितने पानी मे है गुरू हनुमान जल्द ही पहचान लेते थे । रामधन जी की कौचिगं का कहा जाता है कोई तोड नही था । रामधन पहलवान जी ने जीवन के आखिरी दिनो तक गुरू हनुमान के अखाडे मे अपना सहयोग दिया और कभी भी सहयोग देने से पीछे नही हटे ।



श्री महासिंहराव से था अटूट लगाव 

वर्तमान मे गुरू हनुमान अखाडा मे कोचिगं दे रहे द्रोणाचार्य महासिहं राव से गुरू जी हनुमान का अटूट लगाव रहा यही कारण है। की यही कारण है कि द्रोणाचार्य महासिंह राव के जीवन का बडा हिस्सा गुरू हनुमान अखाडा मे योगदान देने मे बीता है। महासिंह राव आज भी गुरू हनुमान के आगे सुबह सायं हाथ जोडना नही भूलते हहते है कि मेरा भगवान तो गुरू हनुमान ही है। जो भी हू उन्ही की दया से हू


नवीन मोर को बचपन मे ही बता दिया था कि बनेगा बडा पहलवान

बात उन दिनो की है जब नवीन छोटा बच्चा हुया करता था डाक्टर ने बुखार मे गलत इजेक्शन गला दिया तो पैर मे कमी आ गई थी बालक नवीन को गुरू हनुमान अखाडे मे इसलिये भेजा गया था कि पैर ठीक हो जाये और स्वास्थ्य बना  रहे । उस समय बालक नवीन को गुरू हनुमान के द्वारा भविष्य का बडा पहलवान बताया गया था । सब मजाक मे हंस दिये बाद मे गुरू हनुमान की बाणी सच साबित हुई


आज भी गुरू हनुमान अखाडे की मिट्टी कों अपने साथ ले जाते है लोग 

आज भी गुरू हनुमान लोगो के दिलो मे जिन्दा है। यहि कारण है कि लो दूर दराज से आकर इस अखाडे की मिट्टी को अपने साथ ले जाते है। कुछ लोगो का मानना है कि इस अखाडे मिट्टी मे आज भी गुरू हनुमान का आशिर्वाद छिपा हुआ है।

                                                     श्री राज सिंह कोच द्रोणाचार्य।

गुरू हनुमान अखाडा की कमेटी  

गुरु हनुमान अखाड़ा संचालक  -  श्री राज सिंह कोच द्रोणाचार्य।
महासचिव सह संचालक          -  श्री दिलबाग बाग्गे पहलवान जी।
कोषाध्यक्ष                               - श्री रमेश मोर पहलवान जी।
डिप्टी कमांडेंट टीम मैनेजर       - श्री चांद राम पहलवान
उपाध्यक्ष                                 - श्री नवीन मोर पहलवान भारत केसरी



कोचिंग स्टाफ 

श्री महा सिंह राव द्रोणाचार्य चीफ कोच (कोचिगं के बेताज बादशाह )
श्री संदीप राठी पहलवान (D.S.P CRPF) कोच
श्री चरणदास पहलवान , अंतरराष्ट्रीय कोच

रविन्द्र शामली
कुस्स्ती जगत 

Saturday, March 9, 2019

पहलवान सुरेन्द्र नाड पर विशेष


पहलवान सुरेन्द्र सिंह नाड देश मे एक बहुत बडा नाम है। पहलवान जी ने बहुत नाम कमाया है। पहलवान जी लम्बे चौडे शरीर के मालिक है। पहलवान जी के पिता का नाम दुलीचंद और माता का नाम श्रीमति इन्द्रावति देवी है। पहलवान जी का जन्म हरियाणा के भिवाणी जिला के गॉव खातीवास मे 03-07-1975 मे हुआ था । बाद मे जब दादरी जिला बना तो पहलवान जी का जन्म स्थान दादरी जिला मे आ गया था । पहलवान सुरेन्द्र नाड बचपन से ही अपने साथ के बच्चो मे अपने डील डोल व ताकत से अलग स्थान रखते थे । 

महन्त वेदनाथ जी की निगाह जब सुरेन्द्र सिंह पर पडी

एक समय की बात है। सुरेन्द्र जी भिवानी मे गये हुये थे वहा पर महन्त वेदनाथ जी की निगाह सुरेन्द्र सिंह पर पडी कहते है कि हीरे की परख जोहरी को ही होती है। महन्त वेदनाथ जी ने पहलवान जी के परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की और सुरेन्द्र नामक लडके को भविष्य का बडा पहलवान बताया सुरेन्द्र जी के परिवार ने महन्त वेदनाथ की बात मान ली महन्त वेदनाथ जी भिवाणी मे अपना अखाडा चलाया करते सुरेन्द्र सिंह महन्त वेदनाथ जी के अखाडे मे आ गया । 
 महन्त वेदनाथ कहा करते की मेरा चेला सुरेन्द्र खरा सोना है

अपनी जबरदस्त मेहनत और लग्न से सुरेन्द्र सिंह ने अपने गुरू महन्त वेदनाथ का दिल जीत लिया अक्षर महन्त वेदनाथ कहा करते की मेरा चेला सुरेन्द्र खरा सोना है, खरा सोना । वास्तव मे सुरेन्द्र सिंह खरा सोना ही साबित हुये । 
                                                      पहलवान जी के पिता  दुलीचंद 
प्रसिद्धि मिलने के बाद भी सुरेन्द्र ने नही बदला था गुरू 

जहॉ आज कल लोग थोडे से लालच और नाम के कारण अपने गुरूओ को बदल लेते है। वही पहलवान जी ने सदा अपने गुरू महन्त वेदनाथ का ही नाम रोशन करते रहे । कोई भी लोभ और लालच पहलवान जी को नही डिगा पाया अब वो समय आ गया जब पहलवान जी 18 साल के हो गये पहलवान जी का फोलादी बदन और मोटी नाड को लोग देखकर सुरेन्द्र को सुरेन्द्र नाड कहा करते धीरे धीरे उनके नाम के सामने नाड शब्द और जुड गया और कुछ ही समय मे पहलवान जी पूरे भारत देश मे सुरेन्द्र नाड के नाम से प्रसिद्ध हो गये । 


                                                                                                           उपलब्धि


-पहलवान जी 2 बार हिन्द केशरी बने ।

- पहलवान जी 2 बार इंटरनेशनल सिलवर मेडलिस्ट बने ।
- पहलवान जी 16 वार नेशनल मे मेडल प्राप्त करने मे सफल हुये ।
- पहलवान जी ने 19 बार आल इण्डिया पुलिस गेमस मे पदक प्राप्त किये ।


                                                                                          सुरेन्द्र न
ही करना चहाते थे शादी 

पहलवान सुरेन्द्र नाड जी का वनज 125 से 130 कीलो हुआ करता था पहलवान जी अपने दम खम की बदोलत 1998 मे इस्पेक्टर बने पहलवान जी की शादी के लिये बहुत सारे रिस्ते आया करते लेकिन पहलवान जी हरबार मना कर देते आखिर पहलवान जी की मॉ श्रीमति इन्द्रवती ने 2003 मे पहलवान जी को शादी के लिये बडी मुशकिल से मनाया । पहलवान जी की 2004 मे एकता देवी के साथ शादी हो गई , लेकिन पहलवान जी का कुस्ती के प्रति जनून कम ना हुआ। पहलवान जी ने 2014 तक अपनी ताकत का लोहा मनवाया पहलवान सुरेन्द्र नाड का गोड्डा टेकणा सबते खतनाक माना जाता था । पहलवान जी जब सिंगल पठ लगाते तो विरोधी को उठाकर सैकिन्डो मे जमीन पर ठोक देते थे । पहलवान जी ने अपने इस दॉव की बदोलत अच्छे अच्छे पट्ठो को अपने कुस्ती कैरियर के दौरान आसमान दिखाया । 

सुरेन्द्र नाड है शाकाहारी

पहलवान सुरेन्द्र नाड जी सदा शाकाहारी रहे आज भी शाकाहारी है। पहलवान जी रोजाना आठ कीलो दुध , आधी कीलो बदाम , पाईया घी , तीन लीटर जूस , चार पलेट सलाद , दो से तीन कीलो फलो का सेवन खेल के दिनो मे उनकी डाईट मे शामिल रहा । महन्त वेदनाथ जी का आशीर्वाद हमेसा पहलवान जी के साथ रहा । लम्बे समय तक पहलवान जी अपने नाम का डंका कुस्ती के क्षेत्र मे बजवाते रहे l पहलवान जी का मानना है कि जो सरकारो ने देश के हर गॉव गॉव जाकर शराब के ठेके खोलने का काम किया है। इससे युवा बर्बाद हुआ है। यदि सरकार इस तर्ज पर देश के हर गॉव गॉव जाकर अखाडे या खेल अकेडमी खोलने का काम करती तो आज हम अमेरिका और चीन को खेलो मे चुनोती दे रहे होते । 


सुरेन्द्र नाड जी का मानना है कि हमारे देश मे प्रतिभाओ की कमी नही 

सुरेन्द्र नाड जी का मानना है कि हमारे देश मे प्रतिभाओ की कमी नही है। कमी है संसाधनो की , कमी है उन प्रतिभाओ को निखारने की पहलवान सुरेन्द्र नाड जी का कहना है कि बहुत सारे प्रतिभlवान खिलाडीयो की प्रतिभl पैसे की कमी मे दम तोड देती है। जिसे पहलवान जी दुर्भांग्य पूर्ण मानते है। 



सुरेन्द्र नाड का युवाओ के लिये संदेश 

दोस्तो परेशानियां सभी के जीवन मे आती है। परेशानियों का सामना करना ही वास्तविक जीवन का आधार है। मेहनत करो फल जरूर मिलेगा बुरे कामो से दूर रहो । बुरे लोगो से भी दूर रहो । नशे के पास मत जाना नही तो नशा आपको र्बबाद करदेगा अपने बडो की सेवा करो सुबह साम परमात्मा को याद किया करो । -----------------
पहलवान जी ने कम संसाधनो और सुख सुविधाओ के बावजूद बडा संघर्ष किया है। कुस्ती जगत मे पहलवान जी सुरेन्द्र सिंह नाड जी जैसी शख्सियतो पर हर भारत वासी गर्व करता है। -


रविन्द्र शामली 
कुस्ती जगत 

Thursday, March 7, 2019

पहलवान धर्मेंद्र दलाल पर विशेष

आज मै आपको रूबरू कराऊगॉ पहलवान धर्मेंद्र दलाल से पहलवान जी मेरे गोति भाई भी है। लेकिन बडे दिनो से मै उन पर नही लिख पाया था । आज लिख रहा हू जानते है पहलवान जी के बारे मे -


 धर्मेंद्र  दलाल  

चौधरी धर्मेंद्र दलाल का जन्म हरियाणा के ग्राम मण्डोठि मे छारा के पास सन 1984 मे हुआ था । पहलवान धर्मेंद्र  दलाल के पिता का नाम चौधरी सुबे सिंह और माता का नाम चन्द्री  देवी है। हरियाणा का यह क्षेत्र जहॉ पर धर्मेंद्र  दलाल का जन्म हुआ वहॉ पर कुस्ती का शौक बहुत पुराना है। धर्मेंद्र  पहलवान का बडा भाई सोनू पहलवान भी बहुत बडा पहलवान  रहा है। (सोनू पहलवान जी पर मै बाद मे अलग से प्रकाश डालूगॉ )


कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण

धर्मेंद्र  दलाल अपने बडे भाई सोनू की पहलवानी से प्रभावित होकर ही कुस्ती के क्षेत्र मे आये थे । सोनू पहलवान गुरू द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप के अखाडे जो आजादपुर मे स्थित है मे अभ्यास किया करते थे । पन्द्रह वर्ष की आयु मे धर्मेद्र दलाल अपने भाई सोनू के पास गुरू कैप्टन चॉदरूप अखाडा मे चले गये । यही से धर्मेंद्र  दलाल का कुस्ती के क्षेत्र मे पदार्पण हुआ ।


पिता सुबे सिंह की वजह से मिलती रही प्रेरणा

धर्मेंद्र  दलाल पहलवान पुराने दिनो को याद कर बताते है कि मै अपने भाई हिन्द केसरी सोनू के साथ पहलवान बनने के रास्ते पर चल पडा था । पहलवानी मे खर्च बहुत आता है। जब एक किसान परिवार को दो - दो पहलवानो का खर्च उठाना पडे तो मुशकिल दौर को आप बखुबी समझ सकते है। मुझे याद है। मेरा पिताजी हम दोनो भईयो के लिये रोजाना तीन तीन बसें बदलकर  अखाडे मे दूध लेकर आते थे , गर्मी हो या बरसात पिताजी हमेशा अपनी डयूटी पर डटे रहे । कई बार पिताजी बारिश मे भीगते हुये आते थे । समय गुजर गया लेकिन लगता है कि कल की बाते है।


द्रोणाचार्य कैप्टन चॉदरूप से जुडी यादे

धर्मेंद्र कहते है कि गुरू जी जो अखाडे मे नया लडका आता था ,उसे गाली बहुत देते थे । जब कोई गलती करता तो लठ भी मारते थे कोई चू  चपट तक  नही करता था । गुरू जी पहचान लेते थे कि कौन पहलवान बन सकता है। नियम और अनुशासन गुरू जी का बहुत सक्त रहता था । उस दौर मे क्रीकेट मैच का बडा चलन होता था । यदि गुरू जी को पता चल गया कि लडके मैच देख रहे है। तो कमरे मे घुसकर मारते थे । मुझे याद है , मै जब कई मेडल जीत चुका था तब भी अखाडे से बहार पैर रखता हुआ डरा करता था , कि कही गुरू जी ना आ जाये । एसा अनुशासन होता था । अब जमाना बदल रहा है , कोई गुरू की सुनने को तैयार नही यही कारण है कि लडके मार्ग भटक कर पिछड जाते है। पहलवान नही बन पाते ।


बीमारी के दिनो मे भी चॉदरूप ने धर्मेंद्र  दलाल को दिया था आशिर्वाद

यह बाते कैप्टन चॉदरूप जी की बीमारी के दिनो की है। कैप्टन सहाब के पास उनके कई सारे शिष्य उनका हाल चाल जानने के लिये आये हुये थे । धर्मेंद्र  दलाल भी उनके पास बैठे थे तब चॉदरूप जी ने कहा था कि मेरा शिष्य धर्मेंद्र  एसा शिष्य रहा है। जिसने कभी भी मुझे किसी काम को मना नही किया ।  कभी किसी काम से मुह नही चुराया , कभी जीवन मे मना करना तो सीखा ही नही । गुरू जी ने अपने पास बुला आशिर्वाद दिया था। धमेन्द्र दलाल बताते है कि हम गुरू जी को सहाब जी कहा करते थे । गुरू जी से जुडी हर एक बात आज भी याद है। लेकिन संसार का नियम है कि बीता हुआ समय वापिश नही आ सकता ।


उपलब्धियॉ

पहलवान धर्मेन्द्र दलाल ने भारत  मे केवल एक बार हुये ग्रीको रोमन के टाईटल रूस्तमे हिन्द मे हिस्सा लिया था , उस समय फाईनल मे धमेन्द्र दलाल का मुकबला जार्जिया के पहलवान से हुआ और धमेन्द्र दलाल ने विजय हासिल की तथा रूस्तमे हिन्द का मुकाबला अपने नाम किया था । पहलवान धमेन्द्र दलाल ने 40 से ज्यादा बार भारत  का  प्रतिनिधित्व विदेशो मे किया । अनेको मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। कोमनवेल्थ मे 1 गोल्ड, 2 सिलवर , 1 ब्रोन्ज और एशिया चैम्पियनशिप मे सिलवर के साथ साथ अनेको मेडल पहलवान ने अपने नाम किये है।


अर्जुन अवार्ड से जुडी यादे

पहलवान धर्मेन्द्र दलाल बताते है कि जब मुझे अर्जुन अवार्ड के मिलने की घोषणा हुई तब मुझे और मेरे चहाने वालो को बडी खुशी हुई , मै  अपने गुरू कैप्टन चॉदरूप के पास गया और उन्हे मैने बताया कि मुझे अर्जुन अवार्ड मिल रहा है। जिस दिन अर्जुन अवार्ड मिलेगा उस दिन मेरे साथ चलना है। उस समय प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे । साल 2013 था । लेकिन गुरू जी बीमार थे , गुरू जी ने कहा कि मै बीमार हु बेटा मै तेरे साथ नही जा सकता,  तू आज सबसे पहले मेरे पास आया मेरे लिये यही बहुत बडी बात है। गुरू जी ने आगे कहा की तुझे अब जो सबसे प्यारा लगता हो उसे अपने साथ जे जाना । धर्मेंद्र  कहते है कि मेरे पिता का स्वर्गवास हो चुका था । मैने अपनी मॉ को ले जाने का फैसला लिया जब राष्ट्रपति द्वारा मुझे अर्जुन अवार्ड दिया जा रहा था , मॉ की ऑखे खुशी मे भर आई थी।


दलाल खाप से एक मात्र अर्जुन अवार्डी है धर्मेंद्र  पहलवान

बहुत कम लोग जानते होगे कि धर्मेंद्र  पहलवान दलाल गोत्र से और दलाल खाप से एक मात्र खिलाडी है जो अर्जुन अवार्डी है। दलाल खाप से धमेन्द्र को छोडदे तो कोई दूसरा अर्जुन अवार्डी इस खाप मे नही है। मै सामाजिक संगठनो को धर्मेद्र दलाल के लिये ही नही सभी खिलाडियो के लिये कहना चहाता हू कि इन लोगो को समय समय पर सम्मानित करना चाहिये । जिससे आने वाली पीढि इनका अनुसरण कर सके ।

डाईट के उपर धर्मेंद्र  दलाल के विचार

पुराने दिनो को याद कर धर्मेंद्र  कहते है कि हमारे समय मे हम तो  केवल दूध ,घी ,बदाम, मुनाक्का, फल, जूस, दाल जैसी सामान्य चीजो का ही अनुशरण करते थे । अब जमाना बदल रहा है। लोग एक दम से मेडल प्राप्त करना चहाते है। जबकि जल्द बाजी हानीकारक ही होती है।


नये पहलवानो को धर्मेंद्र  दलाल के सुझाव

यदि किसी को पहलवान बनना है तो अपने कोच , अपने गुरू का आदर करना सीखना होगा , उनके बताये रास्ते पर चलना होगा । उनके द्वारा बोली गई कडवी बातो का मलाल नही करना चाहिये । इनके बताये गये जो भी वर्क आउट है। उन्हें  फोलो करना होगा । तब आपको सफलता मिलेगी , अन्यथा नही  । छः फुट 2 ईच लम्बे और सौ किलो से ज्यादा वजन के धर्मेंद्र दलाल पहलवान की शादी 2008 मे शशि कान्ता के साथ हो चुकी है। पहलवान जी के पास एक बेटी पायल और एक बेटा है जिसका नाम सचिन है।  पहलवान जी सादगी से रहना पसंद करते है , मिलनसार व्यक्तिव उनकी उपलब्धियो मे चार चॉद लगा देता है। पहलवान जी पहले फ्री स्टाईल की कुस्ती लडा करते थे बाद मे कमर दर्द की वजह से गुरू चॉद रूप के कहने पर ग्रीको रोमन मे लडने लगे । धर्मेंद्र  दलाल आज देश के नामवर पहलवानो मे से एक है।


धर्मेंद्र दलाल अखाडे का करते है संचालन 

वर्तमान मे पहलवान धर्मेंद्र दलाल अपने बडे भाई सोनू हिन्द केसरी के नाम से अखाडे का संचालन करते है। धर्मेंद्र चहाते है। कि  युवा वर्ग को एक एसा माहोल मिले जिससे वे सही मार्ग पर चलकर देश प्रदेश का नाम रोशन कर सके ।

याद आ जाते है पुराने दिन 

धर्मेंद्र  दलाल कहते है कि जब आज भी कभी गुरू जी कैप्टन चॉदरूप के अखाडे मे जाता हू तो वर्तमान संचालक भी अमित ढाका (गुरू जी के पोते ) की और से बहुत आदर सत्कार मिलता है। सभी पुरानी यादे ताजा हो जाती है। धमेन्द्र कहते है की मै तो गर्व करता हू की हमे गुरू के साथ समय बीताने का मौका मिला,  उनसे कुछ सीखने का मौका मिला वह दौर भी सुनहरी दौर था ।

Date 08-03-2019
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत 

Sunday, March 3, 2019

चौधरी युधिष्ठिर पहलवान पर विशेष

चौधरी युधिष्ठिर पहलवान

पचैण्डा कला का इतिहास

उत्तर प्रदेश मे एक गॉव है। जिसको पचैण्डा कला के नाम से जाना जाता है। यह गॉव जिला मुजाफ्फरनगर के पास मे स्थित है। हजारो साल पुराने इस गॉव का इतिहास देखे तो यह गॉव महाभारत काल से अपना इतिहास समेटे हुये है। कहा जाता है कि यहॉ पर महाभारत काल मे भी कुस्ती का एक अखाडा हुआ करता था । उस अखाडे मे  पॉच हजार साल पहले पॉचो पाण्डव युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल सहदेव  भी आये थे । जिसके बाद से ही इस गॉव को पचैण्डा के नाम से जाना जाने लगा था ।


पहलवान युधिष्ठिर के परिवार पर एक नजर 

अपने इतिहास और गॉव से अपार लगाव होने के चलते इस गॉव के चौधरी धर्मबीर सिंह ने अपने पॉच बेटो के नाम महाभारत के पाण्डवो के नाम पर रख दिये थे । चौधरी धर्मबीर सिंह पूर्व प्रधान  ने अपने सबसे बडे बेटे का नाम अर्जुन , दूसरे बेटे का नाम भीम , तीसरे बेटे का नाम नकुल , चौथे बेटे का नाम शहदेव और पॉचवे बेटे का नाम युधिष्ठिर रखा था । चौधरी धर्मबीर सिंह ने अपनी सबसे बडी बेटी का नाम कामेश रख दिया था  । चौधरी धर्मबीर सिंह अपने तीन भाईयो मे से एक है। धर्मबीर सिंह के एक भाई का नाम अजब सिंह व दूसरे भाई का नाम मॉगेराम है। चौधरी धर्मबीर सिंह के पिता श्री रघुबीर सिंह भी अपने समय मे पहलवान रहे है।

चौधरी धर्मबीर की मॉ हुशयारी देवी भी पहलवान परिवार  से नाता रखती है। हुशयारी देवी मीरापुर दलपत ग्राम (जानसठ के निकट) के जाने माने पहलवान चौधरी मलखान सिंह की पुत्री थी ।


गुरू हनुमान अखाडे की शरण मे युधिष्ठिर 

चौधरी धर्मबीर सिंह के छोटे बेटे युधिष्ठिर साल 1995 मे गुरू हनुमान अखाडे मे पहलवानी सीखने के लिये गये । युधिष्ठिर के साथ भाई (चाचा मांगेराम का लडका ) अरूण भी गुरू हनुमान अखाडे मे रहकर पहलवानी किया करता था । युधिष्ठिर पहलवान नेशनल लड चुके थे । लेकिन युधिष्ठिर का कुछ दिन बाद गम्भीर ऐक्सिडेन्ट  हो गया था । जिससे उनकी पहलवानी प्रभावित होनी स्वभाविक थी ।


दो राहे पर युधिष्ठिर पहलवान 

कुछ ही दिन बीते थे कि  पहलवान युधिष्ठिर के भाई अरूण (मागेराम चाचा के लडके   ) की दो सूटरो ने गोलियॉ बरसाकर हत्या करदी थी उन दोनो सूटरो को गॉव वालो ने मौके पर पकडकर मार डाला था। लेकिन जिसने हत्या कराई थी। वह युधिष्ठिर के गॉव का ही एक व्यक्ति था । जो बाद मे मारा गया था । उस केस  मे पहलवान युधिष्ठर व पहलवान युधिष्ठर के अन्य भाईयो के खिलाफ नामजद रिपोर्ट हो गई । युधिष्ठिर को भी भाईयो के साथ जेल जाना पडा कोई पैरवी करने वाला ना होने के चलते पहलवान युधिष्ठिर जेल मे न्याय ना मिलने के कारण परेशान हो उठे थे । एक दिन जेल मे एक घटना घटी पहलवान युधिष्ठिर को सपने मे शिव शंकर भोले नाथ ने दर्शन दिये और कहा कि जेल से निकल युधिष्ठिर तुझे तो खेल के क्षेत्र मे बहुत कार्य करने है। सपने मे दिखाई दिये भोले नाथ से प्रभावित हो पेशी पर जाते वक्त भोला भाला पहलवान युधिष्ठिर पुलिस वालो से छूटकर भाग गया । यह खबर आग की तरह फैली जिसके परिणाम स्वरूप पहलवान युधिष्ठिर पर 50000 हजार रू0 का इनाम पुलिस की ओर से रख दिया गया जब यह खबर पहलवान युधिष्ठिर ने पढी तो पहलवान युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ । हालातो की मार ने युधिष्ठिर पर बदमाशी का ठप्पा जो लगा दिया था ।


पहलवान युधिष्ठिर का जेल मे सरेण्डर 

 युधिष्ठिर का जेल मे किरदार एक जमाने के सुपर स्टार धमेन्द्र की तरह था । धर्मेन्द्र सहाब कैमरे के सामने फिल्मो मे किरदार निभाते थे । किरदार मे सब कुछ नकली होता था , लेकिन युधिष्ठिर जो करता था वो सच होता था । युधिष्ठिर गुरू हनुमान के शिष्यो मे से एक है। जब पहलवान युधिष्ठिर के भाई जेल से बहार आये तब युधिष्ठिर ने आत्म समर्पण कर दिया । जब जेलर को किसी ने बताया की पहलवान जी बहुत खतरनाक आदमी है। यही कारण था कि युधिष्ठिर को बहुत कडी सिक्योरिटी मे रखा गया था । युधिष्ठिर यह सब देखकर आश्चर्यचकित था कि यह हो क्या रहा है। क्योकि युधिष्ठिर अपने को एक आम इन्सान मानता था जबकि अधिकरी लोगो की नजरो मे युधिष्ठिर एक हिस्टरी सीटर था । एक दिन पहलवान युधिष्ठिर ने जेलर से मिलने की इच्छा जताई । युधिष्ठिर की इच्छा को जेलर ने गम्भीरता से लिया और युधिष्ठिर से बात की,  युधिष्ठिर ने सारी बाते जेलर को बताई तथा अपने आपको आन्तकवदियो की तरह रखे जाने पर नाराजगी भी जताई । इसके बाद जेलर ने भी पहलवान के अन्दर के नरम दिल  इंसान को पहचान ने मे देर ना लगाई । पहलवान युधिष्ठिर से पूछा गया  कि कैसी जगह रहना चहाते हो , तो युधिष्ठिर ने एकान्त मे तनहाई की मांग की जिसे मान लिया गया । युधिष्ठिर को एकान्त मे तनहाई दे दी गई


असहाय के लिये जेल मे देवता बने युधिष्ठिर

जेल मे एक बाप और बेटा किसी केस मे बन्द थे  जेल मे बन्द हट्टे कट्टे युधिष्ठिर को हर कोई एक बार देखकर चलता था । कई बार किसी की  जब जेल मे नही सुनी जाती थी तो वो युधिष्ठिर से आश लगा लेता था । जेल मे बन्द युधिष्ठिर कई बार लोगो की समस्या को देख स्वम दुखी हो जाता था । एक दिन  जेल मे बन्द एक लडके ने युधिष्ठर के आकर पैर पकड लिये और रोने लगा , लडके ने कहा कि मेरा बाप यही पर बन्द है। डाक्टर ना तो सही से इलाज कर रहा और ना ही बहार इलाज करवाने के लिये लिखकर दे रहा है। लडके के पिता की उम्र 60 साल के आस पास   थी । बाप बेटे  की लाचारी को देखकर युधिष्ठिर ने खूब गुहार लगाई लेकिन आज शाम तक बहार इलाज की प्रमीशन देगे या कल शाम तक बहार इलाज के लिये प्रामीशन देगे जैसे आशवासन मिलते रहे । एक दिन बुढे बाप के बेटे ने युधिष्ठिर को जगाया और रोते हुये बताया की मेरा बाप मर गया पहलवान जी , युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ । अगले ही दिन युधिष्ठिर पहलवान की पेशी थी जैसे ही पुलिस कर्मी युधिष्ठिर को पेशी पर ले जाने लगे तो सामने से डाक्टर आ गया । युधिष्ठिर ने डाक्टर को धप्पड मार दिया और पूछा की उस बुढे व्यक्ति को जिन्दा करने की ओकात है जो तेरी वजह से मारा गया , लेकिन डाक्टर युधिष्ठिर को देख लेने की धमकी देने लगा ,  युधिष्ठिर ने डाक्टर को पकडकर लात घुस्सो से कुत्ते की तरह पीटा छूट छुटा हो गई डाक्टर ने एक मुकदमा युधिष्ठिर पर कर दिया । दूसरी और उस बृद्ध के बेटे ने अधिकारीयो के सामने युधिष्ठिर को साक्षात देवता बताया था ।

पहलवान युधिष्ठिर के जेल मे रिसर्च -ः 

पहलवान युधिष्ठिर जेल मे रहते हुये मानशिक तनाव से बचने के लिये अपने आपको व्यस्त रखते थे । पहलवान जी ने देखा की जेल मे कुछ मानशिक रोगी भी बन्द है। पहलवान जी ने इस विषय पर रिसर्च सुरू किया और पाया की ये लोग शहर मे लोगो को प्रेशान करते थे , लोगो ने शिकायत की तो पुलिस ने यहॉ बन्द कर दिया पहलवान जी इन लोगो को खाने की चीजे देने लगे फिर खेल के नाम पर इनसे पीटी कराने लगे , दौड  कराने लगे  ऐसा करने पर जो लोग मानसिक समस्या से जूझ रहे थे । उन्हे भूख  लगने लगी और थककर  नीदं आने लगी , कई लोग ठीक होने लगे । युधिष्ठिर के इस चमत्कार का जेल प्रशासन कायल हो गया । इस चमत्कार का ही असर था कि युधिष्ठिर को डी0 आई 0जी0 पाण्डे और जेलर ने जेल के अन्दर सम्मानित किया था ।


न्यायाल्य मे युधिष्ठिर ने स्वम करी थी अपनी बहस 

 जिस न्यायाल्य मे पहलवान युधिष्ठिर के मुकदमे की बहस चला करती वहॉ पर रमा जैन नाम की महिला जज हुआ करती थी । ये बाते साल 2013 की है। युधिष्ठिर ने अपने मुकदमे मे स्वम बहस करने की अनुमति मागी थी ,  युधिष्ठिर को इजाजत दी गई , भरी अदालत मे पहलवान युधिष्ठिर ने चीख चीखकर अपने हालतो और घटनाओ से जज को रूबरू करवाया साथ ही यह थी बताया कि मै कोई बदमास नही खिलाडी हू , मुझे जबरदस्ती बदमाश बनाया जा रहा है। मै बदमाश नही बनना चहाता । पुलिस से छूटकर भागने के सावल पर युधिष्ठिर का कहना था कि मै परिवार की पैरवी के लिये भागा था । आज सरेण्डर भी कर दिया है। जेल से छूटने के बाद युधिष्ठिर ने जज को अखाडा चलाने की बात कही थी। युधिष्ठिर आज भी अपनी बात पर कायम है। और अपने अखाडे और समाज सेवा को माध्यम बनाकर युवाओ का भविष्य बनाने मे जुटे है।


युधिष्ठिर का सच्चा प्यार

समय के साथ साथ जेल का अध्याय बन्द हो गया युधिष्ठिर पहलवान ने अपने अखाडे पर सकारात्मक कार्य सुरू कर दिया था । दूसरी और जेल मे युधिष्ठिर की चर्चा होती थी कई अधिकारी कहते  कि क्या शानदार लडका था । जेल मे रहते हुये भी जेल के अन्दर  कितना सुधार कर गया । एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की बेटी डा0 मोनिका सिंह (इण्टर कॉलिज मे लेकचरार) ने भी युधिष्ठिर की बहादुरी के कई किस्से सुन रखे थे । एक बार इत्फाक से डाक्टर मोनिका सिंह की मुलाकात पहलवान युधिष्ठिर से हुई ऑख मिली और दिल धडका , दोने के दिलो मे प्यार के अंकुर फूटने लगे , दूसरी और डा0 मोनिका सिंह के लिये कई इंजीनियर और डाक्टर के रिस्ते आया करते थे । लेकिन डाक्टर मोनिका सिंह ने सभी डाक्टर , इंजीनियरस के आये रिस्तो को कैंसिल कर दिया था  । क्योकि मोनिका सिंह युधिष्ठिर को पसंद करने लगी थी । युधिष्ठिर पहलवान ने डा0 मोनिका सिंह के साथ साल 2016 मे शादी कर ली थी। सायद युधिष्ठिर और मोनिका सिंह एक दूसरे के लिये ही बने थे । डाक्टर मोनिका सिंह का कहना था कि युधिष्ठिर जितने गुण किसी मे आसानी से नही मिलते । चौधरी युधिष्ठिर कहते है कि प्यार किया तो डरना क्या,  या तो किसी से प्यार ना करो , यदि करो तो तो फिर उससे शादी करो ।


युधिष्ठिर की पत्नी डाक्टर मोनिका सिंह  -

डाक्टर मोनिका सिंह का जन्म 30 जून सन् 1986 को बिजनोर जनपद मे श्री धर्म सिंह (डिप्टी एसपी)के घर मे हुआ था । डाक्टर मोनिका सिंह समाज सेवा के साथ साथ राजनिति मे भी सरोकार रखती है। डाक्टर मोनिका सिंह एक पढी लिखी महीला है। जो एम0 ए0 , बी0एड0, पी0एच0डी0 , और नैट पास है। डाक्टर मोनिका सिंह 2013 मे पी0सी0एस0 का प्री टेस्ट भी क्वालीफाई कर चुकी है।  यही नही डाक्टर मोनिका सिंह पढाई के क्षेत्र मे झण्डे गाडने के अलावा वॉलीवाल की राष्टीय चैम्पियन रह चुकी है। डाक्टर मोनिका सिंह को बचपन से ही राजनितिक लगाव रहा है। डाक्टर मोनिका सिहं शिक्षक नेता के रूप मे अपनी पहचान बनाने के साथ साथ 2014 मे एम0 एल0 सी0 का चुनाव लड चुकी है। वर्तमान मे मोनिका सिंह भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता है। अपने पति युधिष्ठिर के साथ साथ मोनिका सिंह का समाज सेवा मे बडा योगदान रहता है। यही नही मोनिका सिंह उत्तर प्रदेश मे महिला विंग अखिल भारतीय विमुक्त एवं घुमन्तु जाति वेलफेयर संघ की अध्यक्ष है और गॉव पचैण्डा कला मे शहीद बचन सिंह व स्वर्गीय अरूण पहलवान अखाडा की उपाध्यक्ष है। जानसठ इण्टर कॉलिज मे लेक्चरार है।


 डाक्टर मोनिका सिंह का सपना

डाक्टर मोनिका सिंह का सपना है कि देश से जातिवाद पूर्णतः समाप्त हो सभी को एक  सी समानता   समाज और कानून की नजरो मे प्राप्त हो । क्योकि जातिवाद  समाज की जडो को खोखला करने का काम करता है। यदि जातिवाद  समाप्त हो जाये तो देश और ज्यादा तरक्की कर सकता है।


पहलवान युधिष्ठिर और उनकी पत्नी डाक्टर मोनिका सिंह मे कूट कूट कर भरी है समाज सेवा 

ग्राम पचैण्डा कला मे पहलवान युधिष्ठिर की लग्न और परिश्रम से शहीद बचन सिंह व स्वर्गीय अरूण पहलवान नामक अखाडा उचाईया छू रहा है। इस अखाडे को इस उचाई पर ले जाने मे पहलवान युधिष्ठिर को बहुत पापड बेलने पडे है। अखाडा साई से अडोप हो चुका है। मैट, जिम , मिट्टी का अखाडा जैसी सभी सुविधाये मौजूद है। लडकियो के लिये अलग होस्टल पर काम चल रहा है। इस अखाडे के अध्यक्ष युधिष्ठिर के बडे भाई चौधरी अर्जुन पहलवान है। अखाडे का संचालन पहलवान जी युधिष्ठिर के चाचा श्री मांगेराम जी करते है। पहलवान युधिष्ठिर की पत्नी डा0 मोनिका सिंह इस अखाडा की उपाध्यक्ष है। जो समाज के उज्जवल भविष्य के लिये समाज सेवा मे लगातार प्रायत्नशील रहती है।


रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत