Thursday, June 18, 2020

स्वास्थ्य के लिये व्यायाम जरूरी : पुनीत इस्सर

श्री पुनीत इस्सर किसी पहचान के मोहताज नही है। फिटनेश की बात करे तो आज भी श्री पुनीत इस्सर युवाओ के लिये किसी प्रेरणा श्रोत से कम नही है। बी0 आर0 चोपडा के महाभारत मे दुर्योधन का किरदार निभाकर  श्री पुनीत इस्सर ने बडी उपल्ब्धि पाई थी।
रविन्द्र शामली (कुस्ती जगत)
सेना मे भर्ती होना था बचपन का सपना 
मेरे परिवार के कई लोग भारतीय सेना मे कार्यरत थे , मै भी सोचा करता था कि सेना मे भर्ती होकर देश की सेवा करनी है। मैने एन0डी0ए0 का टेस्ट दिया , उसे पास भी कर लिया , फिर इण्टरव्यू देकर घर आ गया । अभी जोईनिगं मे करीब छः से सात महीने का समय था । इसी बीच मैने सोचा की एक्टिगं का कोर्स कर लेता हू । मै एक्टिगं का कोर्स करने लगा फिर मेरा  एक्टिग करने मे ही मन लगने लगा तो अभिनय से जुड गया । 
जब 24 साल का था तब सोच लिया था उम्र के मामले मे आगे नही बढुगां
चौबीस साल की उम्र से ही मैने मार्शल आर्ट , कुगं फू  और कसरत करना सुरू कर दिया था । जिसे मैने कभी नही छोडा आज भी मै चौबीस साल का ही अनुभव करता हू । मै मानता हू कि उम्र तो सिंर्फ नम्बर गेम की तरह है। जैसा सोचोगे वैसा ही महसूस करोगे और दिखोगे । 
हिंदुस्तान मे एक गलत प्रथा है कि दण्ड  बैठक जवानी मे पेलनी चाहिये 
मै जहॉ भी जाता हू अपने चहाने वालो को एक ही बात कहता हू , कि जो सोच हम बनाये हुये है कि जवानी मे जिम जाना है। दण्ड बैठक लगानी है लेकिन जैसे ही 35 - 40 साल के पार हुये तो छोड देते है। यह गलत है। मै तो मानता हू सरासर गलत है। क्योकि जब गाडी नई होती है तो उसे सर्विश की ज्यादा जरूरत नही होती लेकिन जैसे ही गाडी पुरानी होती है तो उसे सर्विश की ज्यादा जरूरत होती है। हमारा शरीर भी गाडी के ही समान है। इसलिये 35-40 साल के बाद शरीर को कसरत करने की आदत डालिये । स्वस्थ रहने के लिये व्यायाम बहुत जरूरी है सौ बिमारी की एक दवा है कसरत ।
मेरे पिताजी श्री सुदेश इस्सर फिल्म डायरेक्टर थे जिनसे बहुत कुछ सीखा 
मेरे पिताजी ने एक फिल्म बनाई थी प्रेम जिसमे राज बब्बर और अनीता राज को ब्रेक दिया गया था । इसी फिल्म मे जगजीत सिंह को म्यूजिक डायरेक्टर का ब्रेक मिला था । उस फिल्म मे एक गीत था  " होटो से छू लो तुम मेरे गीत अमर कर दो " यह मेरे पिताजी की फिल्म का गीत था । मा कसम बदला लूगॉ , आखरी मुकाबला , भाई का दुश्मन भाई , ज्वाला , काली बस्ती , फरेबी , सौदा  जैसी कई सारी फिल्मो का निर्देशन मेरे पिताजी ने किया । पिताजी से समय समय पर मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता रहा। 
मेरी पहली फिल्म थी कुली 
एक्टिगं का कोर्स करने के बाद वही पर बतौर प्रोफेसर लम्बे समय तक मैने पढाया भी , इसके बाद मुझे कुली फिल्म मिली थी। कुली फिल्म मे अमिताभ बच्चन का चोटिल होना एक हादसा था । मेरे और अमिताभ बच्चन के बीच एक फाईट शीन फिल्माया जा रहा था , जिसमे अमित जी चोटिल हो गये थे यह एक हादसा था जिसमे मेरी कोई गलती नही थी । स्वयं अमित जी ने भी कई बार अपने साक्षात्कारो मे भी कहा था कि पुनीत की कोई गलती नही थी। लेकिन इस घटना का मेरे कैरियर पर बुरा प्रभाव पडा , कई साल तक मेरे पास काम न के बराबर था ।जबकि मै खुद अमित जी का फैन था । 
 मै जो वास्त्व मे था वह धुल गया था 
मै वास्तव मे स्पीच डिक्शन का प्रोफेसर था । मार्शल आर्ट मे गोल्ड मेडलिस्ट था । काबिल एक्टर था , लेकिन वो सब धुल गया और सामने ये आया कि बन्दा 6 फिट 3 ईच का है। अच्छी बोडी है। मार्शल आर्ट करता है। यह तो फाईटर है। रियल मे मुझे कुछ लोगो ने विलन बना दिया । इस इमेज से  मेरे लिये बहार निकलना बहुत मुश्किल काम था । मुझे जिस तरह के रोल चाहिये थे वो नही मिल रहे थें । 
फिल्मो मे मन नही लग रहा था
कुली मे हुये हादसे के बाद मैने उस समय पुराना मन्दिर फिल्म की थी जो सौ सप्ताह चली थी , लेकिन बी ग्रेड थी इस तरह की फिल्मो से ख्याती नही मिल सकती । शक्ति सामन्त की पालेखान की मैने जैकी श्राफ के साथ उसमे मेरा अच्छा रोल था लेकिन वो नही चली । मै किसी को दोष नही देता , सायद मै भविषय के लिये ओर मजबूत हो रहा था । 
बी0 आर0 चोपडा सहाब के महाभारत का मिलना 
मुझे एक दिन पता चला कि चोपडा सहाब टेलिविजन सीरीज बना रहे है। महाभारत के नाम से , मुझे लगा कि ये सही रहेगा क्यो ना चोपडा सहाब से मिला जाये । मै चोपडा सहाब के पास गया । चोपडा सहाब ने मुझे देखकर कहा कि बहुत अच्छी बॉडी है। जाओ तुम्हे भीम बना दिया । मैने विनम्रता के साथ कहा कि सर मैने महाभारत पढा है। आप मुझे दुर्योधन का रोल दे दो । चोपडा सहाब बोले नही तुम तो फाईटर हो भीम का रोल करो । मैने मैथली शरण गुप्त जी का जयध्रत वध जो मुझे मुजबानी याद था वो सुनाया चोपडा जी को तब जाकर राही मासूम सहाब , पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी और चोपडा सहाब के कान खडे हुये और मुझे दुर्योधन का रोल मिला  ।
महाभारत के लिये जी जान से की थी तैयारी 
मेरे अपने शोध के दौरान पढ़े गए ग्रंथ मुख्यतः वेद व्यास की महाभारत , भास की उरुभंगश् दुर्योधन के दृष्टिकोण से लिखित , रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी कर्ण के दृष्टिकोण से लिखित और शिवाजी सावंत की श्मृत्युंजयश् को पढ़ा। हालांकिए यह चरित्र महाभारत की महिला नायिका द्रौपदी के चीरहरण के लिए विख्यात है। इन तैयारियो के बाद तब बी0 आर0 चोपडा के महाभारत मे दुर्योधन के किरदार को जिया था । 
संवाद अदायगी के दौरान किसी पात्र को जीना ही कलाकारी 
संवादो को याद करना और बोलना बडी बात नही होती , बडी बात होती है उस पात्र को जीना । संवाद स्पष्ट सुनाई देने चाहिये । हर कलाकार का अपना एक फन होता है। उस फन के माध्यम से लोगो के रोगंटे खडे करना कलाकारी होती है। संवाद अदायगी के दौरान हाथो का इस्तेमाल , ऑखो का इस्तेमाल कलाकारी को धार दे जाता है।  कई लोग कहते है कि हठ और गुस्सा आप किरदार के बहार भी करते है आम जीवन मे या नही ? 
 मै उत्तर देना चहाता हू । नही .....नही..... नही..... मै एक एसा  कलाकार हू  जो किसी भी किरदार को बडी आतमीयता से जीता है। 
कसरत के लिये समय निकालने मे कभी समस्या नही हुई 
कई लोग कहते है कि आप कसरत के लिये समय कैसे निकाल लेते है। मै कहता हू कि जब हम काम करते है तो सॉस भी तो लेते है। रोजाना भोजन भी तो करते है। फिर कसरत क्यो नही कर सकते , जैसे जीने के लिये सॉस लेने की जरूरत है। भोजन करने की जरूरत है। पानी पीने की जरूरत है। वैसे ही जीने के लिये कसरत जरूरी है। मेरे लिये तो कसरत जीवन का हिस्सा है। आप सब पढने वालो को भी कहता हू कि आप भी कसरत को जीवन का हिस्सा बनाओ । 
60 की उम्र मे घटा दिया था 22 किलो वजन  
जब मैने महाभारत किया तो मेरा उस समय 96 किलो वजन था टोटल मसलस , बाद मे 122 - 124 किलो के आस पास हो गया था ।  मुझे रावण की रामायण जो स्टेज प्रोगराम था मे रावण का रोल करना था। दूसरे स्टेज शो मे दुर्योधन का रोल करना था तब मुझे लगा कि मेरा वजन ज्यादा हैं । तब  मैने कडी मेहनत की और 23 किलो वजन कम किया । एक बार फिर यही कहना चाहुगॉ कि यदि स्वस्थ रहना है तो अपने आपको  को व्ययाम से दूर मत होने दो । मै इस उम्र मे भी रोजाना 3 से 4 घंटे व्ययाम करता हू। 
भगवान का शुक्र है आज भी लोग याद करते है
चोपडा सहाब ने महाभारत को छोटे परदे के लिये बनाया जरूर था लेकिन उनकी  तैयारियॉ बडे परदे की ही थी । उस समय ज्यादा तकनीक हमारे पास नही होती थी  लेकिन फिर भी जोरदार सफलता महाभारत ने पाई और महाभारत के किरदार अमर हो गये । एसे धारावाहिक कभी कभी बन पाते है।

Monday, June 15, 2020

घुंघट से बॉडीबिल्डिंग तक - प्रिया सिंह


स्वस्थ शरीर के लिये व्ययाम का विशेष महत्व रहा है। व्ययाम करने से शरीर मजबूत आकर्षक और सुडोल दिखाई देता है। प्रतिरोध व्यायाम का उपयोग करके शरीर मांसलता को नियंत्रित एवं विकसित करना शरीर सौष्ठव कहलाता है। अर्थात बॉडीबिल्डिंग कहलाता है। बॉडीबिल्डिंग की बात करे तो इस खेल मे पुरूषो की अधिकता रही है। वर्तमान मे भारतीय महिलाये भी इस खेल मे अपना लोहा मनवा रही है। आयरन लेडी के नाम से विख्यात प्रिया सिंह (बॉडीबिल्डिंग खिलाडी) जो राजिस्थान के बिकानेर से निकलकर पूरे राजिस्थान का नाम रोशन कर रही है। जानते है, प्रिया सिहं से उनके संघर्षो की कहानी ।
रविन्द्र शामली (कुस्ती जगत)

बचपन मे नही सोचा था कि बॉडीबिल्डर  बन जाऊंगी
प्रिया सिंह कहती है कि बचपन मे उन्होने कभी नही सोचा था कि  बॉडीबिल्डर बनूगी एक आम लडकी की भॉति स्कूल जाना और घर आकर घर का काम करना दिनचर्या मे शामिल रहता था । ज्यादातर समय स्कूली पढाई  मे ही बीत जाता था , डर रहता था कि कही नम्बर कम ना आ जाये । इसलिये मै पढाई पर ज्यादा ही ध्यान देती थी।
बॉडीबिल्डिंग की ओर पहला कदम 
बात उन दिनो कि है , मै पढाई के बाद अपने को फिट रखने के लिये जिम जाने लगी थी । हालाकि जिम जाने से पहले मै जिम के बारे मे कुछ ज्यादा नही जानती थी । जिम गई तो जिम जीवन का हिस्सा बन गया ।  धीरे धीरे जिम जाना मेरी दिन चर्या मे शामिल हो गया था  । कुछ दिनो के बाद मैने जिम  ट्रेनर की नौकरी करली  उस समय मुझे मात्र 10000 रू0 महीना मिलते थे । मै खुश थी क्योकि अब जिम जाने का खर्च भी नही देना होता था और 10000 रू0 मिलने भी लगे थे ।
जब लिया बॉडीबिल्डिंग करने का  फैसला 
मै जिम के अन्दर बहुत ही कडी मेहनत किया करती थी । कई सारे लोग मेरी मेहनत को देखते हुये मुझे बॉडीबिल्डिंग करने के लिये प्रेरित किया करते थे । लेकिन मै इन बातो को अनसुना करती रही  कुछ दिनो के बाद मुझे दिल्ली मे एक बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता देखने जाने का मौका मिला प्रतियोगिता मे महिलाओ और पुरूषो बॉडीबिल्डर्स ने  हिस्सा लिया था । स्टेज पर महिला बॉडीबिल्डर्स को भी खूब तालिया और मान सम्मान मिल रहा था । मुझे लगा कि मै यह सब कर सकती हू । स्टेज पर उस समय  बॉडीबिल्डर्स को देख मैने बॉडीबिल्डिंग करने का  फैसला कर लिया था ।
आर्थिक समस्या से पार पाना आसान नही था । 
मैने बॉडीबिल्डिंग करने का फैसला तो कर लिया था लेकिन मै तो सिर्फ 10000 रू0 कमाती थी । मैने सुना था कि खिलाडी की डाईट पर 35 से 40 हजार का खर्च आ जाता है। मैने अपनी समस्या ऑर्गेनाइजर को बताई , तब कई हाथ मदद के लिये मेरी ओर बढे कोच हेमन्त टोगंरिया की मदद और आगे बढने की उनकी  प्रेरणा से कभी पीछे मुडकर नही देखा ।
घुंघट से निकल बिकनी  पहनना मेरे लिये बहुत मुश्किल था  
मै बीकानेर पली बडी हुई , हमारे यहा पर औरतो का परदे मे रहना पसंद किया जाता था । लोग पुराने ख्यालात के साथ ही जीना चहाते थे दूसरी और मै राजिस्थान के लिये  बॉडीबिल्डिंग करना चहाती थी । मेडल जीतना चहाती थी। मै सोचती थी कि देश प्रदेश के लिये कुछ करू जिसे लोग याद करे । यही से मेरा असली संघर्ष शुरू हुआ था ।
जब पहली बार स्टेज पर उतरी 
मै जब पहली बार बॉडीबिल्डिंग करने के लिये स्टेज पर उतरी तो बहुत देंर तक तालिया बजी थी । इतनी तालिया बजी थी जिसकी मुझे उम्मीद भी नही थी। जब लोगो को  पता चला कि मै राजिस्थान से हू तब कई सारे लोग आश्चर्य से मेरे पास आते ,  सैल्फी लेते और कहते अच्छा जी आप राजिस्थान से हो , यह सब इसलिये हो रहा था  क्योकि राजिस्थान से कोई भी महिला बॉडीबिल्डर नही आती थी । क्योकि हमारे यहॉ की पृष्ठभूमि एसी है जहॉ महिलाओ को घूघंट की आड से बहार नही निकलने दिया जाता था ।
मेडल जीतने के बाद हौसला बढता गया 
जब मैने पहली बार बॉडीबिल्डिंग मे मेडल जीता तब मेरी खुश का ठिकाना नही था । मीडिया का मुझे बहुत साथ मिला था । जिसका सकारात्मक असर यह हुआ कि  मै लगातार साल 2018 मे इसके बाद साल 2019 और 2020 मे राजिस्थान की ओर से खेलते हुये मिस राजिस्थान बनी थी। संग्राम क्लासिक प्रतियोगिता मे 4 पोजिशन रही थी । आल इण्डिया स्तर पर मै टोप 20 महिला बॉडी बिल्डरो  मे स्थान बनाने मे कामयाब रही हू। मुझे खुशी है कि मै एक खिलाडी हू ।  
 जब आलोचको को भी देना पडा था जबाब
एक समय एसा भी था जब कई रूढी वादी लोग मुझे कहते थे कि तुम हमारी और प्रदेश की इज्जत खराब कर रही हो । परदे मे रहा करो ,  तब मैने इन लोगो को कहा था कि मै प्रदेश की और से बॉडीबिल्डिंग मे हिस्सा लेती हू । अब सूट सिलवार मे तो मसलस नही दिखये जा सकते , देश की दूसरी महिला खिलाडी है , वे भी कास्टयूम पहनती है। हालाकि बाद मे लोगो का रवैया बदला और कहा गया कि प्रिया सिंह राजिस्थान की शान है। अपने यहा के अखबारो मे भी मैने पढा तब जाकर  लगा कि चलो कुछ तो सोच बदली है।
लोग दूसरे खेल मे जाने की देते थे सलाह 
कई बार लोग मुझे  दूसरे खेल मे हाथ आजमाने की सलाह देते थे , लेकिन मै फैसला कर चुकी थी की अब बॉडीबिल्डिंग ही करनी है।
सफलता का मूल मन्त्र 
एक्सरसाइज , डाइट और आराम इन तीन चीजों को प्रिया सिंह  किसी भी खेल के लिये सफलता का मूल मन्त्र मानती है। इनमे से किसी एक में भी अगर कमी हो तो असर पूरे शरीर पर पड़ता है । बॉडी वेट के प्रतिकिलो पर दो से ढाई ग्राम प्रोटीन और आठ घंटे की नींद अच्छे शरीर की बेसिक जरूरत बताती  है।
लगातार की गयी मेहनत रंग लाती है। 
प्रिया सिंह कहती है कि किसी भी खेल मे लगातार की गयी मेहनत अपना रंग दिखाती है। अपने बारे मे प्रिया सिंह कहती है कि मै कॉम्पिटिशन से कई महीने पहले  6 - 6 घंटे वर्कआउट करती हू । जब कॉम्पिटिशन नही होता तो 1 से 2 घंटे मे भी काम चल जाता है। हर महीने डाईट पर 30000 से 35000 तक का खर्च आ जाता है।

भविष्य की योजना
भविष्य की योजना के बारे मे प्रिया सिंह कहती है कि अब एक ही सपना बचा हुआ है , कि मै दूसरे देशो मे जाकर देश के लिये बॉडीबिल्डिंग मे मेडल जीतकर लाऊ ।  

मान सम्मान 
1- राजिस्थान की पहली महिला बॉडीबिल्डिंग खिलाडी होने का गौरव प्राप्त है।
2-राजिस्थान की महिला फिटनेश आईकन होने का गौरव प्राप्त है।
3- राजिस्थान गौरव अवार्ड
4- राजधानी गौरव अवार्ड
5- नारी शक्ति अवार्ड
6- पिकं रत्न अवार्ड
7- नेशनल अर्थ केयर अवार्ड