Tuesday, December 8, 2020

किसानो ने ऊन बाईपास किया जाम

 


 ऊन (शामली) पूरे देश मे सरकार और किसानो के बीच  मे तीन कानूनो को लेकर पिछले दिनो से गतिरोध जारी है। किसान नेताओ ने 08 दिसम्बर का बन्द बुलाया था । इस बन्द को लेकर किसान के साथ साथ व्यपारी भी काफी जोश मे दिखे । तीन अध्यादेशो के विरोध मे किसान जय जवान जय किसान का नारा बुलन्द करते हुये  सुबह 11 बजे से पहले ही कस्बा ऊन के बाईपास पर पहुच गये तथा सडक पर दरे बिछाकर पाईपास को जाम कर दिया । शुगर मिल मे इसी रास्ते से गन्ने के भरे ट्रक पहुचते है। जिसकी वजह से लम्बा जाम लग गया । 

किसानो के धरने मे शामिल श्री राममेहर प्रधान का कहना था कि सरकार हमारे उपर जबरदस्ती इन कानूनो को थोप रही है। सरकार इन कानूनो को वापिश ले किसान जाग चुका है वह अपना हक लेकर रहेगा ।   

कस्बा ऊन के पूर्व चैयरमैन अशोक कुमार का कहना था कि  किसान अपना हक मॉग रहा है किसान अपना हक लेकर रहेगा । 

लाला रामगोपाल गोयल भी धरने पर मौजूद थे उन्होने कहा कि यह आन्दोलन केवल किसान तक सीमित नही है। यह बहुत बडा आन्दोलन है। किसान बर्बाद हुआ तो हर छोटा व्यपारी और दुकानदार बर्बाद हो जायेगा । 

पवन सिंह आर्य (ट्रांसपोर्ट) का कहना था कि  हम इन काले कानूनो को रद करने की मॉग करते है हमे इससे कम कुछ भी मंजूर नही है। 

पप्पी ने कहा कि किसान जाग चुका है हम अपना भला बुरा समझते है। सरकार  अपने तीनो कानून  समाप्त करे  इसी मे सरकार की भलाई है और किसान की भी । 

सोनू टिकेत का कहना था कि  सरकार को अहंकार छोड किसान का हक दे देना चाहिये । 

नीरज पहलवान ने कहा कि सरकार को ये तीनो कानून वापिस लेने पडेगे यही समय की मॉग है। 

किसान  नीटू ने बताया कि सरकार इन कानूनो से हमारी कमर तोडना चहाती है चंद पूजीपति सरकार को किसानो के खिलाफ  बहकाकर अपनी रोटी सेकने का कार्य कर रहे है। 

किसान तेजपाल का कहना था कि सरकार हमारे किसानो की बात माने और जल्द से जल्द इन काले कानूनो को रद करे । 

इस मौके पर क्षेत्र के कई सौ किसानो ने चक्का जाम कर  तीन सरकारी कानूनो का विरोध किया । 

ll रविन्द्र शामली ll

Sunday, October 25, 2020

गॉव काकडा की पहचान कबड्डी -डॉ0 योगेश कुमार



कबड्डी खिलाडी बनने के लिये बचपन मे  देखा था सपना । 

मेरा जन्म एक किसान परिवार मे हुआ था । पिताजी खेती किसानी किया करते थे । मॉ और पिताजी की इच्छा थी कि पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊ , हमारे गॉव मे कबड्डी का युवाओ मे बडा जनून हुआ करता था । मै भी कबड्डी खेला करता था । मॉ बाप के सपनो की वजह से  मै पढाई के रास्ते पर आगे बढता चला गया लेकिन मै कबड्डी के खेल को  कभी  अपने से दूर नही कर पाया । 

इंटर यूनिवर्सिटी मे मिला था गोल्ड । 

यह खेल से जुडाव का ही नतिजा था कि हमने खेल मे भी मेहनत की थी और हमारी टीम को इंटर यूनिवर्सिटी मे गोल्ड मिला था । आगे बढने के लिये यह गोल्ड मेडल लगातार एक नई उर्जा प्रदान कर रहा था ।  

कबड्डी के खिलाड़ियों  पर की पी0एच0डी0 । 

मै वर्तमान समय मे मेरठ कॉलिज मेरठ मे एसोसिएट प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल एजुकेशन मे  मेरठ कॉलिज मेरठ मे कार्यरत हु । कबड्डी  मेरा बचपन से ही प्रिय खेल रहा है। शारीरिक शिक्षा में मैने  एम0 पी0 एड0 व बी0 पी0 एड0  किया हुआ है। तथा पीएचडी अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ियों पर की है ।

संघर्ष और सफर । 

मैंने खेल के साथ-साथ पढ़ाई पर भी समान ध्यान दिया पूर्व में मैं इंडो तिब्बतन बॉर्डर पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत रहा हूं उसके पश्चात जय भारत इंटर कॉलेज छपार में शारीरिक शिक्षा अध्यापक के रूप में कार्य किया तत्पश्चात युवराज दत्त महाविद्यालय लखीमपुर खीरी में शारीरिक शिक्षा प्रोफेसर के पद पर कार्य किया और वर्तमान में मेरठ कॉलेज मेरठ में प्रोफेसर सारी शिक्षा एवं खेल के पद पर कार्यरत हूं इसके अतिरिक्त कबड्डी में एन आई एस डिप्लोमा तथा योग में भी सर्टिफिकेट कोर्स किया है और अंतरराष्ट्रीय योग समिति से मान्यता प्राप्त योगा ट्रेनर   के रूप में पंजीकृत हूं कबड्डी एथलेटिक फुटबॉल बैडमिंटन योग एवं वेट ट्रेनिंग में स्पेशलाइजेशन है ।

खेल यूनिवर्सिटी की मॉग को लेकर मुख्यमन्त्री श्री योगी आदित्यनाथ से कर चुके है मुलाकात । 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाले खेल विश्वविद्यालय को खिलाड़ियों के क्षेत्र में बनवाने हेतु प्रयासरत रहा जिसके तारतम्य में में माननीय मुख्यमंत्री तक  से मुलाकात की तथा उसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना सलावा तहसील सरधना जिला मेरठ जो कि मुजफ्फरनगर लोकसभा का क्षेत्र है और खिलाड़ियों के क्षेत्र में आता है मैं स्थापना होगी 

ग्रामीण क्षेत्रो मे सुविधाओ के अभाव को लेकर है चिन्तित । 

ग्रामीण क्षेत्रो की बात करे तो नौकरी के लिये दौड करने तक के लिये सुविधा उपलब्ध नही  है। सडको पर बच्चे दौडते हुये दिखाई देते है। कई बार तेजी से आ रहे वहान का शिकार हो जाते है। जो चिन्ता का विषय है। कई गॉवो मे लोगो ने स्वयं अपने स्तर पर सुविधाये की है। जो बहुत अच्छी सोच का परिणाम मानी जा सकती है। क्षेत्र के सासंद , विधायक, प्रधान,  चैयरमैन भी इस विषय पर अपनी जिम्मेदारी से नही भाग सकेते है। कम से कम इस विष्य पर युवाओ के भविष्य के लिये इन लोगो को आगे आना चाहिये । 

अर्जुन और युधिष्ठिर पहलवान का परिवार  तारीफ का हकदार  । 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पचैण्डा कला निवासी युधिष्ठिर और अर्जुन पहलवान ने अपने गॉव मे क्षेत्र के युवाओ के लिये शानदार स्टेडियम का निर्माण कराया है। जहा पर बच्चे अभ्यास करते है। जो बहुत ही सराहनीय कार्य है। इस प्रकार की  सुविधा यूपी मे मुट्ठी भर गावो मे मिलती है। जहॉ मिलती है। वहॉ पर परिणाम सामने आते है। अर्जुन और युधिष्ठिर पहलवान जी दोनों जीवन में आए उतार-चढ़ाव के बावजूद भी अपने खेल प्रेम के कारण क्षेत्र के युवाओं के लिए बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं और वह कुश्ती खेल से बचपन से ही जुड़े हुए हैं यह उनके लगन का ही परिणाम है कि शहीद वचन सिंह अखाड़े को स्पोर्ट्स अथॉरिटी द्वारा मान्यता मिली हुई है वैसे तो लोग बहुत बुलंदियां छूते हैं लेकिन समाज के लिए कौन क्या कर रहा है यह सबसे महत्वपूर्ण होता है इसके लिए युधिष्ठिर अर्जुन पहलवान जी बधाई के पात्र हैं और मैं उनको शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। 

हरियाणा पंजाब के सामने यूपी फिसड्डी । 

एक समय देश के अन्दर खेलो मे पंजाब की तूती बोलती थी । वर्तमान समय मे हरियाणा की तूती बोलती है। उत्तर प्रदेश की बात तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे बहुत प्रतिभाये है। लेकिन यहा सरकारी तन्त्र इस विषय पर हरियाण की तर्ज पर सुविधाये नही दे पाता फिर भी कई सारे अर्जुन अवार्ड इस क्षेत्र ने देश को दिये है। 

होनहार बच्चो को खेल मे प्रमोट करने की जरूरत । 

जिस प्रकार से हम अपने बच्चो को शिक्षा दिलाने के लिये प्रतिबद्ध होते है। जबकि हर बच्चे को नौकरी नही मिल पाती है। उसी तर्ज पर बच्चो को खेल के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये । यदि बच्चा खेलो मे भाग्य आजमाना चहाता है तो उसे आगे बढने मे मदद करे  न कि निराश । 

साक्षत्कार कर्ता 

रविन्द्र शामली 

कुस्ती जगत 



Monday, August 3, 2020

गुरू श्यामलाल पर विशेष


            भारतीय कुस्ती के इतिहास मे एक से बढकर एक  गुरू हुये  है। इन्ही मे से एक है पहलवान गुरू श्री श्यामलाल जी जिन्होने अपनी मेहनत से  और कम सुविधाओ के बावजूद बतौर पहलवान अपना डंका लम्बे समय तक बजवाया था । कुस्ती छोडने के बाद अखाडा खोल कर बतौर गुरू भी श्री श्यामलाल जी अपना योगदान देने से कभी पीछे नही हटे। समय के साथ गुरू श्यामलाल ने जीवन के हर मोड पर अपने आप को बखुबी साबित किया है। 
श्री शयामलाल जी का जन्म  सन् 1935 में दिल्ली के निकट घिटोरनी गॉव (जो अब दिल्ली मे समा चुका है।) मे हुआ था । वह एक एसा दौर था जिसमे भरपूर दंगल हुआ करते थे । उन  दिनो श्री श्यामलाल अपने पिता मुन्शीराम के साथ बचपन के दिनो मे कई बार दंगल देखने जाया करते थे । कई बार श्यामलाल ने घर वालो को बिना बताये कुस्ती भी लडी । जब श्यामलाल की मॉ श्रीमती गंगा देवी को इस बात का पता चला तो अपने हिस्सें का दूध भी श्यामलाल को दे दिया । लगातार श्यामलाल का खेल के प्रति समर्पण बढता जा रहा था । शयामलाल की लगातार कुस्ती के प्रति बढ रही रूची को देखकर श्यामलाल के पिता मुन्शीराम ने श्यामलाल को गुरू तिलक अखाडा मे छोडदिया , अब तो दंगल लडना श्यामलाल की दिनचर्या मे शामिल हो गया था । 

        श्यामलाल का साधारण किसान परीवार मे जन्म हुआ था बढती जिम्मेदारीयो को देखते हुये अब श्यामलाल नौकरी करना चहाते थे ।  कहते है समय की गति कभी नही रूकती धीरे धीरे वह समय आया जब श्यामलाल के द्वारा नियमित किया गया अभ्यास श्यामलाल के जीवन मे नया सबेरा लेकर आया और श्यामलाल दिल्ली पुलिस मे भर्ती हो गये । अब तो श्यामलाल की खुशी का कोई ठिकाना नही था । श्यामलाल को नौकरी मिल गई थी जो श्यामलाल का सपना हुआ करती थी । 

        श्यामलाल जी स्पोर्ट कोटे से दिल्ली पुलिस मे भर्ती हुये थे । वह दिन आया जब दिल्ली पुलिस की और से श्यामलाल को कुस्ती लडने का मौका मिला श्यामलाल ने भी अपना हक बखुबी अदा किया पहली ही बार मे स्वर्ण पदक जीतकर  दिल्ली पुलिस की झोली मे डाल दिया देखते ही देखते कई स्वर्ण पदक श्यामलाल जी ने जीतकर दिल्ली पुलिस को दिये थे । गुरू श्यामलाल अपने पैरो पर खडे हो चुके थे और लगातार आगे बढ रहे थे तो घर वालो ने श्यामलाल की शादी कैलाशो देवी के साथ मे कर दी  थी । जीवन के हर मोड पर गुरू श्यामलाल को श्रीमती कैलाशो देवी का साथा मिलता रहा । 

        श्यामलाल के परीवार वाले बताते है कि गुंरू हनुमान के श्ष्यि पहलवान श्री रामधन को एक दंगल मे श्यामलाल ने बराबरी पर रोक दिया था । क्योकि रामधन जी कुस्ती के मास्टर माने जाते थे । उनके साथ बराबरी की कुस्ती लडना श्यामलाल को खरा सोना साबित करता था । अब तो श्यामलाल की ख्याती चारो और बडी तेजी से फैलने लगी  थी । दंगलो मे श्यामलाल का डंका बजने लगा था । श्यामलाल रात मे उठ उठ कर मेहनत करने लगे थे ताकि और बेहतर परीणाम सामने आ सके क्योकि श्यामलाल स्वयं मानने लगे थे  कि इस उचाई तक आना इतना मुशकिल काम नही था लेकिन इस उचाई पर टिके रहना ज्यादा मुश्किल दिखाई दे रहा है। इसलिये श्यामलाल पहले से कही अधिक मेहनत करने लगे थे । 

        श्यामलाल जी के परीवार वाले बताया करते एक बार की बात है। दनकौर मे जबरदस्त दंगंल हुआ करता था । दंगल मे हिस्सा लेने श्यामलाल भी चला गया । जनता की मॉग पर उस समय के दिग्गज पहलवान श्री बिसम्भर रेलवे के साथ श्यामलाल के हाथ मिलवा दिये गये । उस समय राष्टीय स्तर के साथ साथ अर्न्तराष्टीय स्तर पर बिसम्भर पहलवान का डंका बजा करता था तो कई लोगो ने बिसम्भर पहलवान  के साथ मे कुस्ती ना लडने की बात श्यामलाल को कही यह एक एसी कुस्ती थी जिसमे श्यामलाल के पास खोने को कुछ नही था लेकिन पाने को बहुत कुछ था । वही हुआ जो लोगो ने नही सोचा था । श्याम लाल ने बिसम्भर के सामने अपनी जीत से कुस्ती जगत मे तहलका मचा दिया था ।

        अब तो श्यामलाल पहलवान को बडा उलटफेर करने वाला पहलवान माना जाने लगा था । श्यामलाल पहलवान ने कई सारे देश के नाम  चीन पहलवानो के साथ कडे मुकाबले लडे  पहलवान श्री श्यामलाल को लम्बे समय तक कुस्ती लडने के लिये भी याद किया जाता है। श्यामलाल के परिवार वाले अकसर एक और घटना का जिकर किया करते है। सर्दीयो के दिन हुआ करते थे रोहतक के निकट भलोट गॉव मे दंगल था जहॉ पर श्यामलाल की कुस्ती जगरूप सिंह राठी अर्जुन अवार्डी के साथ हुई थी । इस  कश्मकश कुस्ती मे विजय श्री श्यामलाल के हाथ लगी तो लोगो ने उपर उठाकर श्यामलाल को अखाडे का चक्कर लगवाया था । बाद मे श्री श्यामलाल जी ने अपना अखाडा खोल लिया और अपनी सेवाये कुस्ती के विकास मे देने लगे । श्री श्यामलाल जी के अखाडे से अनेक  बच्चो ने निकलकर सरकारी नौकरीयो को प्राप्त किया है। 

            भगवान की दया से श्यामलाल जी के पास मे दो बेटी और तीन बेटे है। श्यामलाल जी के छः पोतो मे से संजु और जित्तु ने पहलवानी की अब संजु हरियाणा पुलिस मे अपनी सेवाये देता है। दूसरी और जित्तू पहलवान आपने दादा कि विराशत को आगे बढा रहा है। जीतू भी अपने दादा की तर्ज पर शानदार कुस्ती लडने के लिये जाना जाता है। नेशनल मे भी कई बार मेडल जीत्तु जीत चुका है।  
सत्ताईस फरवरी 2010 को  कुस्ती के शानदार गुरू श्री श्यामलाल जी का स्वर्गवास हो गया था । लेकिन श्यामलाल जी आज भी लोगो के दिलो मे जिन्दा है। श्यामलाल जी की विचारधारा आज भी लोगो के दिलो मे जिन्दा है। उनकी विरासत को उनका पोता जीतू पहलवान  बखुबी सम्भाल रहा है। कुस्ती से जीवन के आखिरी क्षणो तक गुरू जी श्यामलाल का अटूट लगाव रहा ।  गॉव घिटोरनी मे हर वर्ष  गुरू श्यामलाल जी की याद मे दंगल का आयोजन किया जाता है।
 
Note- यह लेख गुरू श्यामलाल के पोते संजू पहलवान से हुई बात चीत पर आधारित है। 
रविन्द्र शामली 
कुस्ती जगत 

Tuesday, July 28, 2020

खेल भी जीवन मे जरूरी : संजय ढाका



पहलवान संजय ढाका का जन्म रोहतक जिले के गॉव सुडाना मे 12-02-1978 मे हुआ था । संजय ढाका के पिता का नाम श्री सूरजभान व मॉ का नाम दयाकौर था। संजय ढाका के पिता श्री सूरज भान एक किसान थे। खेती करना ही जीवन यापन का मुख्य श्रोत था । सुडाना गॉव के कैप्टन चान्दरूप की उस समय ख्याती चारो ओर फैल रही थी । संजय ढाका का परिवार  कैप्टन चॉन्दरूप के परिवार का ही एक हिस्सा था  जो आगे चलकर संजय के लिये वरदान साबित हुआ । कैप्टन सहाब ने देश के लिये अनेको पहलवान तैयार किये थे उन्हे कुस्ती सम्राट के नाम से जाना जाता था । कैप्टन सहाब का दिल्ली आजादपुर मे अखाडा था जो पहलवानो को तैयार करने का ठिकाना माना जाता था । 
वह एक एसा दौर था जब गॉव सुडाना से लेकर आस पास के गॉवो मे किसी न किसी दिन दंगल हुआ करते थे दंगल मे केप्टन चॉन्द रूप के शिष्य पहलवान अकसर अपना लोहा मनवाया करेते , संजय ढाका भी अपने पिता श्री सूरजभान के साथ मे कुस्ती देखने के लिये जाया करते । यही से बालक संजय ढाका के मन मे खेल के अकुर अपनी जडे मजबूत करने लगे थे ।
 बात गर्मी के उन दिनो की है जब बच्चो की छुट्टी पड चुकी थी कैप्टन सहाब गॉव सुडाना मे आये हुये थे ।  गॉव सुडाना मे कैप्टन चान्दरूप अपने घर आये हुये थे श्री सूरजभान कैप्टन सहाब श्री चान्दरूप को अपने साथ घर ले गया जहॉ पर बालक संजय के उपर कुस्ती सम्राट चान्दरूप की नजर पडी कैप्टन  सहाब बालक संजय को अपने साथ दिल्ली लेजाने के लिये कहने लगे तब दया कौर व श्री सूरजभान ने कैप्टन चान्दरूप की हॉ मे हॉ मिलाई और संजय कुस्ती सम्राट चॉन्दरूप जी के साथ दिल्ली आ गया।   
कैप्टन सहाब के बेटे श्री रणबीर सिंह ढाका साई मे कोच नियुक्त हुये थे । रणबीर सिंह को इन्दौर मे भेजा गया तो कैप्टन सहाब ने संजय को रणबीर के साथ इन्दौर भेज दिया  था । केप्टन सहाब ने संजय ढाका की जिम्मेदारी अपने बेटे रणबीर सिंह ढाका के कन्धो पर टेक दी थी । समय के साथ साथ श्री रणबीर सिंह ढाका ने अपनी जिम्मेदारी बखुबी निभाई समय बीतता जा रहा था संजय बडा हो रहा था । समय के साथ रणबीर सिंह ढाका का तबादला सोनिपत के C.R.Z SCHOOL (साई सेंटर) सोनीपत मे हो गया । श्री रणबीर सिंह ढाका के साथ मे संजय ढाका भी सोनिपत आ गया  और फिर कभी पीछे मुडकर नही देखा ।  साल 2001 मे संजय पहलवान ने भारत केसरी का खिताब अपने नाम किया , यही नही हरियाणा केसरी की उपाधी भी अपने नाम की अब नौकरी की बात करे तो श्री संजय ढाका ने पंजाब पुलिस मे नौकरी की बाद मे पंजाब पुलिस की नौकरी छोडकर बी एस एफ मे भर्ती  हो गये । साल 2005 मे सुजाता के साथ संजय ढाका की सादी हो गई । वर्तमान मे श्री संजय ढाका बी0 एस0 एफ0 मे कुस्ती कोच के पद पर कार्यरत है। संजय ढाका  के पास दो बच्चे है। एक बेटा जो कक्षा नौ मे पढता है। और एक बेटी है जो कक्षा छः मे पढती है। 











इण्टर नेशनल स्तर पर उपलब्धियां
1994 (यू0 एस0 ए0 ) मे वर्ल्ड रेशलिगं चैम्पियनशिप मे हिस्सा लिया ।
1999 (स्वीडन) मे वर्ल्ड पुलिस फायर गेम्स मे हिस्सा लिया ।
नेशनल स्तर पर उपलब्धियां
जुनियर नेशनल 1996 सिलवर
जुनियर नेशनल 1997 ब्रोन्ज
सीनियर नेशनल 1996 ब्रोन्ज
सीनियर नेशनल 1997 ब्रोन्ज
फेडरेशन कप 2000 ब्रोन्ज
फेडरेशन कप 2003 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स स्तर पर उपलब्धियां
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 1997 गोल्ड
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 1998 गोल्ड
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2002 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2005 सिलवर
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2006 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2009 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2010 ब्रोन्ज
आल इण्डिया पुलिस गेम्स 2012 ब्रोन्ज



















श्री संजय ढाका कहते है कि गुरू जी कैप्टन चान्दरूप जी का आर्शिवाद हमेशा मिलता रहा है। मेरी पहलवानी की यदि बात करे तो गुरू जी कैप्टन चॉन्दरूप के बेटे रणबीर सिंह ढाका का और ओमप्रकाश दहिया का योगदान मेरी पहलवानी मे रहा है। सोनिपत के C.R.Z SCHOOL (साई सेंटर)  मे  श्री ओमप्रकाश दहिया जी मुझे मिले थे ।  फिर क्या था लगातार मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता रहा ।  गुरू और शिष्य की परम्परा हमारे देश मे सदियो पुरानी है। लेकिन आज के दौर मे यह परम्परा अपने आप मे खोती जा रही है। जो चिन्ता का विषय है। संजय ढाका कहते है कि हमारे दौर मे गुरूओ के सामने उनकी बात को काटने की हिम्मत नही होती थी । केवल उनकी बात को सुनकर  आज्ञा का पालन करना प्राथमिकता मे होता था । 
श्री ओमप्रकाश दहिया जी कहते थे कि जिस प्रकार जीने के लिये दो वक्त की रोटी और हवा पानी जरूरी है। उसी प्रकार मजबूत और सभ्य समाज के लिये खेल जरूरी है।इन कुस्ती के महान गुरूवो ने मुझे सिखाया ,  अपने पास रखा और काबिल बनाया , मै आज जो भी हू गुरू केप्टन चॉन्दरूप के बेटे कुस्ती कोच श्री रणबीर सिंह ढाका जी और कुस्ती कोच श्री ओमप्रकाश दहिया जी की वजह से हू । मेरे जीवन का एक हिस्सा कुस्ती के इन शानदार गुरूओ के साथ बीता है जो मेरे लिये सौभाग्य की बात है। सब कुछ एसा लगता है। जैसे कल की बात हो , लेकिन बीता हुआ समय वापिश लौटकर नही आता इसलिये अपने समय का सदउपयोग करना चाहिये । क्योकि समय अमूल्य है समय की कोई कीमत नही होती ।   



Thursday, June 18, 2020

स्वास्थ्य के लिये व्यायाम जरूरी : पुनीत इस्सर

श्री पुनीत इस्सर किसी पहचान के मोहताज नही है। फिटनेश की बात करे तो आज भी श्री पुनीत इस्सर युवाओ के लिये किसी प्रेरणा श्रोत से कम नही है। बी0 आर0 चोपडा के महाभारत मे दुर्योधन का किरदार निभाकर  श्री पुनीत इस्सर ने बडी उपल्ब्धि पाई थी।
रविन्द्र शामली (कुस्ती जगत)
सेना मे भर्ती होना था बचपन का सपना 
मेरे परिवार के कई लोग भारतीय सेना मे कार्यरत थे , मै भी सोचा करता था कि सेना मे भर्ती होकर देश की सेवा करनी है। मैने एन0डी0ए0 का टेस्ट दिया , उसे पास भी कर लिया , फिर इण्टरव्यू देकर घर आ गया । अभी जोईनिगं मे करीब छः से सात महीने का समय था । इसी बीच मैने सोचा की एक्टिगं का कोर्स कर लेता हू । मै एक्टिगं का कोर्स करने लगा फिर मेरा  एक्टिग करने मे ही मन लगने लगा तो अभिनय से जुड गया । 
जब 24 साल का था तब सोच लिया था उम्र के मामले मे आगे नही बढुगां
चौबीस साल की उम्र से ही मैने मार्शल आर्ट , कुगं फू  और कसरत करना सुरू कर दिया था । जिसे मैने कभी नही छोडा आज भी मै चौबीस साल का ही अनुभव करता हू । मै मानता हू कि उम्र तो सिंर्फ नम्बर गेम की तरह है। जैसा सोचोगे वैसा ही महसूस करोगे और दिखोगे । 
हिंदुस्तान मे एक गलत प्रथा है कि दण्ड  बैठक जवानी मे पेलनी चाहिये 
मै जहॉ भी जाता हू अपने चहाने वालो को एक ही बात कहता हू , कि जो सोच हम बनाये हुये है कि जवानी मे जिम जाना है। दण्ड बैठक लगानी है लेकिन जैसे ही 35 - 40 साल के पार हुये तो छोड देते है। यह गलत है। मै तो मानता हू सरासर गलत है। क्योकि जब गाडी नई होती है तो उसे सर्विश की ज्यादा जरूरत नही होती लेकिन जैसे ही गाडी पुरानी होती है तो उसे सर्विश की ज्यादा जरूरत होती है। हमारा शरीर भी गाडी के ही समान है। इसलिये 35-40 साल के बाद शरीर को कसरत करने की आदत डालिये । स्वस्थ रहने के लिये व्यायाम बहुत जरूरी है सौ बिमारी की एक दवा है कसरत ।
मेरे पिताजी श्री सुदेश इस्सर फिल्म डायरेक्टर थे जिनसे बहुत कुछ सीखा 
मेरे पिताजी ने एक फिल्म बनाई थी प्रेम जिसमे राज बब्बर और अनीता राज को ब्रेक दिया गया था । इसी फिल्म मे जगजीत सिंह को म्यूजिक डायरेक्टर का ब्रेक मिला था । उस फिल्म मे एक गीत था  " होटो से छू लो तुम मेरे गीत अमर कर दो " यह मेरे पिताजी की फिल्म का गीत था । मा कसम बदला लूगॉ , आखरी मुकाबला , भाई का दुश्मन भाई , ज्वाला , काली बस्ती , फरेबी , सौदा  जैसी कई सारी फिल्मो का निर्देशन मेरे पिताजी ने किया । पिताजी से समय समय पर मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता रहा। 
मेरी पहली फिल्म थी कुली 
एक्टिगं का कोर्स करने के बाद वही पर बतौर प्रोफेसर लम्बे समय तक मैने पढाया भी , इसके बाद मुझे कुली फिल्म मिली थी। कुली फिल्म मे अमिताभ बच्चन का चोटिल होना एक हादसा था । मेरे और अमिताभ बच्चन के बीच एक फाईट शीन फिल्माया जा रहा था , जिसमे अमित जी चोटिल हो गये थे यह एक हादसा था जिसमे मेरी कोई गलती नही थी । स्वयं अमित जी ने भी कई बार अपने साक्षात्कारो मे भी कहा था कि पुनीत की कोई गलती नही थी। लेकिन इस घटना का मेरे कैरियर पर बुरा प्रभाव पडा , कई साल तक मेरे पास काम न के बराबर था ।जबकि मै खुद अमित जी का फैन था । 
 मै जो वास्त्व मे था वह धुल गया था 
मै वास्तव मे स्पीच डिक्शन का प्रोफेसर था । मार्शल आर्ट मे गोल्ड मेडलिस्ट था । काबिल एक्टर था , लेकिन वो सब धुल गया और सामने ये आया कि बन्दा 6 फिट 3 ईच का है। अच्छी बोडी है। मार्शल आर्ट करता है। यह तो फाईटर है। रियल मे मुझे कुछ लोगो ने विलन बना दिया । इस इमेज से  मेरे लिये बहार निकलना बहुत मुश्किल काम था । मुझे जिस तरह के रोल चाहिये थे वो नही मिल रहे थें । 
फिल्मो मे मन नही लग रहा था
कुली मे हुये हादसे के बाद मैने उस समय पुराना मन्दिर फिल्म की थी जो सौ सप्ताह चली थी , लेकिन बी ग्रेड थी इस तरह की फिल्मो से ख्याती नही मिल सकती । शक्ति सामन्त की पालेखान की मैने जैकी श्राफ के साथ उसमे मेरा अच्छा रोल था लेकिन वो नही चली । मै किसी को दोष नही देता , सायद मै भविषय के लिये ओर मजबूत हो रहा था । 
बी0 आर0 चोपडा सहाब के महाभारत का मिलना 
मुझे एक दिन पता चला कि चोपडा सहाब टेलिविजन सीरीज बना रहे है। महाभारत के नाम से , मुझे लगा कि ये सही रहेगा क्यो ना चोपडा सहाब से मिला जाये । मै चोपडा सहाब के पास गया । चोपडा सहाब ने मुझे देखकर कहा कि बहुत अच्छी बॉडी है। जाओ तुम्हे भीम बना दिया । मैने विनम्रता के साथ कहा कि सर मैने महाभारत पढा है। आप मुझे दुर्योधन का रोल दे दो । चोपडा सहाब बोले नही तुम तो फाईटर हो भीम का रोल करो । मैने मैथली शरण गुप्त जी का जयध्रत वध जो मुझे मुजबानी याद था वो सुनाया चोपडा जी को तब जाकर राही मासूम सहाब , पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी और चोपडा सहाब के कान खडे हुये और मुझे दुर्योधन का रोल मिला  ।
महाभारत के लिये जी जान से की थी तैयारी 
मेरे अपने शोध के दौरान पढ़े गए ग्रंथ मुख्यतः वेद व्यास की महाभारत , भास की उरुभंगश् दुर्योधन के दृष्टिकोण से लिखित , रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी कर्ण के दृष्टिकोण से लिखित और शिवाजी सावंत की श्मृत्युंजयश् को पढ़ा। हालांकिए यह चरित्र महाभारत की महिला नायिका द्रौपदी के चीरहरण के लिए विख्यात है। इन तैयारियो के बाद तब बी0 आर0 चोपडा के महाभारत मे दुर्योधन के किरदार को जिया था । 
संवाद अदायगी के दौरान किसी पात्र को जीना ही कलाकारी 
संवादो को याद करना और बोलना बडी बात नही होती , बडी बात होती है उस पात्र को जीना । संवाद स्पष्ट सुनाई देने चाहिये । हर कलाकार का अपना एक फन होता है। उस फन के माध्यम से लोगो के रोगंटे खडे करना कलाकारी होती है। संवाद अदायगी के दौरान हाथो का इस्तेमाल , ऑखो का इस्तेमाल कलाकारी को धार दे जाता है।  कई लोग कहते है कि हठ और गुस्सा आप किरदार के बहार भी करते है आम जीवन मे या नही ? 
 मै उत्तर देना चहाता हू । नही .....नही..... नही..... मै एक एसा  कलाकार हू  जो किसी भी किरदार को बडी आतमीयता से जीता है। 
कसरत के लिये समय निकालने मे कभी समस्या नही हुई 
कई लोग कहते है कि आप कसरत के लिये समय कैसे निकाल लेते है। मै कहता हू कि जब हम काम करते है तो सॉस भी तो लेते है। रोजाना भोजन भी तो करते है। फिर कसरत क्यो नही कर सकते , जैसे जीने के लिये सॉस लेने की जरूरत है। भोजन करने की जरूरत है। पानी पीने की जरूरत है। वैसे ही जीने के लिये कसरत जरूरी है। मेरे लिये तो कसरत जीवन का हिस्सा है। आप सब पढने वालो को भी कहता हू कि आप भी कसरत को जीवन का हिस्सा बनाओ । 
60 की उम्र मे घटा दिया था 22 किलो वजन  
जब मैने महाभारत किया तो मेरा उस समय 96 किलो वजन था टोटल मसलस , बाद मे 122 - 124 किलो के आस पास हो गया था ।  मुझे रावण की रामायण जो स्टेज प्रोगराम था मे रावण का रोल करना था। दूसरे स्टेज शो मे दुर्योधन का रोल करना था तब मुझे लगा कि मेरा वजन ज्यादा हैं । तब  मैने कडी मेहनत की और 23 किलो वजन कम किया । एक बार फिर यही कहना चाहुगॉ कि यदि स्वस्थ रहना है तो अपने आपको  को व्ययाम से दूर मत होने दो । मै इस उम्र मे भी रोजाना 3 से 4 घंटे व्ययाम करता हू। 
भगवान का शुक्र है आज भी लोग याद करते है
चोपडा सहाब ने महाभारत को छोटे परदे के लिये बनाया जरूर था लेकिन उनकी  तैयारियॉ बडे परदे की ही थी । उस समय ज्यादा तकनीक हमारे पास नही होती थी  लेकिन फिर भी जोरदार सफलता महाभारत ने पाई और महाभारत के किरदार अमर हो गये । एसे धारावाहिक कभी कभी बन पाते है।

Monday, June 15, 2020

घुंघट से बॉडीबिल्डिंग तक - प्रिया सिंह


स्वस्थ शरीर के लिये व्ययाम का विशेष महत्व रहा है। व्ययाम करने से शरीर मजबूत आकर्षक और सुडोल दिखाई देता है। प्रतिरोध व्यायाम का उपयोग करके शरीर मांसलता को नियंत्रित एवं विकसित करना शरीर सौष्ठव कहलाता है। अर्थात बॉडीबिल्डिंग कहलाता है। बॉडीबिल्डिंग की बात करे तो इस खेल मे पुरूषो की अधिकता रही है। वर्तमान मे भारतीय महिलाये भी इस खेल मे अपना लोहा मनवा रही है। आयरन लेडी के नाम से विख्यात प्रिया सिंह (बॉडीबिल्डिंग खिलाडी) जो राजिस्थान के बिकानेर से निकलकर पूरे राजिस्थान का नाम रोशन कर रही है। जानते है, प्रिया सिहं से उनके संघर्षो की कहानी ।
रविन्द्र शामली (कुस्ती जगत)

बचपन मे नही सोचा था कि बॉडीबिल्डर  बन जाऊंगी
प्रिया सिंह कहती है कि बचपन मे उन्होने कभी नही सोचा था कि  बॉडीबिल्डर बनूगी एक आम लडकी की भॉति स्कूल जाना और घर आकर घर का काम करना दिनचर्या मे शामिल रहता था । ज्यादातर समय स्कूली पढाई  मे ही बीत जाता था , डर रहता था कि कही नम्बर कम ना आ जाये । इसलिये मै पढाई पर ज्यादा ही ध्यान देती थी।
बॉडीबिल्डिंग की ओर पहला कदम 
बात उन दिनो कि है , मै पढाई के बाद अपने को फिट रखने के लिये जिम जाने लगी थी । हालाकि जिम जाने से पहले मै जिम के बारे मे कुछ ज्यादा नही जानती थी । जिम गई तो जिम जीवन का हिस्सा बन गया ।  धीरे धीरे जिम जाना मेरी दिन चर्या मे शामिल हो गया था  । कुछ दिनो के बाद मैने जिम  ट्रेनर की नौकरी करली  उस समय मुझे मात्र 10000 रू0 महीना मिलते थे । मै खुश थी क्योकि अब जिम जाने का खर्च भी नही देना होता था और 10000 रू0 मिलने भी लगे थे ।
जब लिया बॉडीबिल्डिंग करने का  फैसला 
मै जिम के अन्दर बहुत ही कडी मेहनत किया करती थी । कई सारे लोग मेरी मेहनत को देखते हुये मुझे बॉडीबिल्डिंग करने के लिये प्रेरित किया करते थे । लेकिन मै इन बातो को अनसुना करती रही  कुछ दिनो के बाद मुझे दिल्ली मे एक बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता देखने जाने का मौका मिला प्रतियोगिता मे महिलाओ और पुरूषो बॉडीबिल्डर्स ने  हिस्सा लिया था । स्टेज पर महिला बॉडीबिल्डर्स को भी खूब तालिया और मान सम्मान मिल रहा था । मुझे लगा कि मै यह सब कर सकती हू । स्टेज पर उस समय  बॉडीबिल्डर्स को देख मैने बॉडीबिल्डिंग करने का  फैसला कर लिया था ।
आर्थिक समस्या से पार पाना आसान नही था । 
मैने बॉडीबिल्डिंग करने का फैसला तो कर लिया था लेकिन मै तो सिर्फ 10000 रू0 कमाती थी । मैने सुना था कि खिलाडी की डाईट पर 35 से 40 हजार का खर्च आ जाता है। मैने अपनी समस्या ऑर्गेनाइजर को बताई , तब कई हाथ मदद के लिये मेरी ओर बढे कोच हेमन्त टोगंरिया की मदद और आगे बढने की उनकी  प्रेरणा से कभी पीछे मुडकर नही देखा ।
घुंघट से निकल बिकनी  पहनना मेरे लिये बहुत मुश्किल था  
मै बीकानेर पली बडी हुई , हमारे यहा पर औरतो का परदे मे रहना पसंद किया जाता था । लोग पुराने ख्यालात के साथ ही जीना चहाते थे दूसरी और मै राजिस्थान के लिये  बॉडीबिल्डिंग करना चहाती थी । मेडल जीतना चहाती थी। मै सोचती थी कि देश प्रदेश के लिये कुछ करू जिसे लोग याद करे । यही से मेरा असली संघर्ष शुरू हुआ था ।
जब पहली बार स्टेज पर उतरी 
मै जब पहली बार बॉडीबिल्डिंग करने के लिये स्टेज पर उतरी तो बहुत देंर तक तालिया बजी थी । इतनी तालिया बजी थी जिसकी मुझे उम्मीद भी नही थी। जब लोगो को  पता चला कि मै राजिस्थान से हू तब कई सारे लोग आश्चर्य से मेरे पास आते ,  सैल्फी लेते और कहते अच्छा जी आप राजिस्थान से हो , यह सब इसलिये हो रहा था  क्योकि राजिस्थान से कोई भी महिला बॉडीबिल्डर नही आती थी । क्योकि हमारे यहॉ की पृष्ठभूमि एसी है जहॉ महिलाओ को घूघंट की आड से बहार नही निकलने दिया जाता था ।
मेडल जीतने के बाद हौसला बढता गया 
जब मैने पहली बार बॉडीबिल्डिंग मे मेडल जीता तब मेरी खुश का ठिकाना नही था । मीडिया का मुझे बहुत साथ मिला था । जिसका सकारात्मक असर यह हुआ कि  मै लगातार साल 2018 मे इसके बाद साल 2019 और 2020 मे राजिस्थान की ओर से खेलते हुये मिस राजिस्थान बनी थी। संग्राम क्लासिक प्रतियोगिता मे 4 पोजिशन रही थी । आल इण्डिया स्तर पर मै टोप 20 महिला बॉडी बिल्डरो  मे स्थान बनाने मे कामयाब रही हू। मुझे खुशी है कि मै एक खिलाडी हू ।  
 जब आलोचको को भी देना पडा था जबाब
एक समय एसा भी था जब कई रूढी वादी लोग मुझे कहते थे कि तुम हमारी और प्रदेश की इज्जत खराब कर रही हो । परदे मे रहा करो ,  तब मैने इन लोगो को कहा था कि मै प्रदेश की और से बॉडीबिल्डिंग मे हिस्सा लेती हू । अब सूट सिलवार मे तो मसलस नही दिखये जा सकते , देश की दूसरी महिला खिलाडी है , वे भी कास्टयूम पहनती है। हालाकि बाद मे लोगो का रवैया बदला और कहा गया कि प्रिया सिंह राजिस्थान की शान है। अपने यहा के अखबारो मे भी मैने पढा तब जाकर  लगा कि चलो कुछ तो सोच बदली है।
लोग दूसरे खेल मे जाने की देते थे सलाह 
कई बार लोग मुझे  दूसरे खेल मे हाथ आजमाने की सलाह देते थे , लेकिन मै फैसला कर चुकी थी की अब बॉडीबिल्डिंग ही करनी है।
सफलता का मूल मन्त्र 
एक्सरसाइज , डाइट और आराम इन तीन चीजों को प्रिया सिंह  किसी भी खेल के लिये सफलता का मूल मन्त्र मानती है। इनमे से किसी एक में भी अगर कमी हो तो असर पूरे शरीर पर पड़ता है । बॉडी वेट के प्रतिकिलो पर दो से ढाई ग्राम प्रोटीन और आठ घंटे की नींद अच्छे शरीर की बेसिक जरूरत बताती  है।
लगातार की गयी मेहनत रंग लाती है। 
प्रिया सिंह कहती है कि किसी भी खेल मे लगातार की गयी मेहनत अपना रंग दिखाती है। अपने बारे मे प्रिया सिंह कहती है कि मै कॉम्पिटिशन से कई महीने पहले  6 - 6 घंटे वर्कआउट करती हू । जब कॉम्पिटिशन नही होता तो 1 से 2 घंटे मे भी काम चल जाता है। हर महीने डाईट पर 30000 से 35000 तक का खर्च आ जाता है।

भविष्य की योजना
भविष्य की योजना के बारे मे प्रिया सिंह कहती है कि अब एक ही सपना बचा हुआ है , कि मै दूसरे देशो मे जाकर देश के लिये बॉडीबिल्डिंग मे मेडल जीतकर लाऊ ।  

मान सम्मान 
1- राजिस्थान की पहली महिला बॉडीबिल्डिंग खिलाडी होने का गौरव प्राप्त है।
2-राजिस्थान की महिला फिटनेश आईकन होने का गौरव प्राप्त है।
3- राजिस्थान गौरव अवार्ड
4- राजधानी गौरव अवार्ड
5- नारी शक्ति अवार्ड
6- पिकं रत्न अवार्ड
7- नेशनल अर्थ केयर अवार्ड

Thursday, May 21, 2020

दहेज भ्रष्टाचार की जड - प्रवीण कुमार

अर्जुन अवार्डी , एशिया चैम्पियन , ओलम्पियन श्री प्रवीण कुमार ( बी0आर0 चोपडा महाभारत के भीम) का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू


रविन्द्र शामली - शिक्षा के मामले मे हम लगातार आगे बढ रहे है। बीते हुये कल और आज मे आपको क्या बदलाव दिखाई देता है ?
प्रवीण कुमार - मुझे तो अपने बाबा, दादा ,चाचा ,ताये अच्छे लगते है आज के पढे लिखो से जो ज्यादा पढे लिखे तो नही थे लेकिन उनका जमीर जिन्दा था । आजके ज्यादातर पढे लिखो को दहेज चाहिये , वो भी बहुत सारा आज के इन  पढे लिखे दहेज के लोभियो को धिक्कार है। 

रविन्द्र शामली - आप भ्रष्टाचार की जड किसे मानते है ?
प्रवीण कुमार - दहेज भ्रष्टाचार की जड है। जब कभी टीवी पर दहेज से जुडी गम्भीर घटनाये देखता हू तो सोचता हू कि मै एसे समाज का हिस्सा क्यो हू ।

रविन्द्र शामली - समाज मे बढते अपराधो का क्या कारण है ?
प्रवीण कुमार - संस्कार की कमी l

रविन्द्र शामली - आप अपने आपको बेहतर खिलाडी मानते है या अभिनेता ?
प्रवीण कुमार - मै खिलाडी था , खिलाडी हू  और अपने आपको सदा खिलाडी ही मानता रहूगा । 

रविन्द्र शामली - समाज सेवा और राजनिति की बात करे तो ये एक ही है या आप इनमे अन्तर देखते है ?
प्रवीण कुमार - समाज सेवा तो कोई भी कर सकता है। राजनिति का तमगा जरूरी नही , यदि नेताओ मे समाज सेवा की भावना  भरी होती तो सडको पर वर्तमान मे यह दुखद मंजर ना दिखाई देता । इन लोगो की  यारी भी माडी है और दुश्मनी भी । 

रविन्द्र शामली -  हम जिस सभ्य समाज का दम भरते है वहॉ पर बेटा और बेटी मे आज भी भेदभाव किया जाता है क्या कारण है? 
प्रवीण कुमार - यह बहुत ही जटिल विषय है और  इसके कई कारण है। कम शब्दो मे कहु तो यह सब मानसिकता का खेल है और छोटी सोच का परिणाम है।  

रविन्द्र शामली - आपने खेल और अभिनय दोनो जगह अपना लोहा मनवाया ,इनमे कौन सा आसान है ? 
प्रवीण कुमार - सहज तो दुनिया मे कुछ  भी नही है। वर्तमान मे मजदूर और मजबूर के द्वारा दो वक्त की रोटी का इन्तजाम करना भी सहज नही रह गया है। खेल और अभिनय की बात करे तो  अभिनय मे रिटेक लिये जा सकते है। लेकिन खेल मे एसा नही होता है। इसलिय खेल के सामने अभिनय कही  नही  ठहरता । 


रविन्द्र शामली - फिल्मी दुनिया की चकाचौन्ध और वास्तविकता मे कितना अन्तर है ? 
प्रवीण कुमार - उतना ही अन्तर है। जैसे जमीन से चॉद बहुत चमकदार दिखाई देता है लेकिन चॉद पर जाओ तो वहॉ कंकर पत्थर के अलावा कुछ हाथ नही आता । 

रविन्द्र शामली - भीम का रोल करने के बाद जीवन मे क्या बदलाव आये ?
प्रवीण कुमार -  महाभारत के बाद मै ज्यादा अध्यात्मिक हो गया था । लोगो का इतना प्यार मिला कि कभी सोचा नही था। जब खेलो मे था तब भी और जब महाभारत किया तब फिर वही प्यार अपने प्रति मुझे दिखाई दिया। 

रविन्द्र शामली - महाभारत के दौरान बी आर चोपडा ने क्या आपको काई सुझाव दिया था  ? जो कारगर साबित हुआ हो और आज भी याद हो। 
प्रवीण कुमार - मुझे याद है चोपडा सहाब ने मुझे ही नही हम सभी कलाकारो को कहा था कि कोई भी किसी कलाकार की नकल मत करना जिसके अन्दर से जैसी कलाकारी निकले वैसी ही कलाकारी को परदे पर साकार करे । उनकी यही बात वरदान साबित हुई ।

रविन्द्र शामली - महाभारत का कोई एसा सीन जो आपको झकझोर देता हो ? 
प्रवीण कुमार - द्रोपदी चीर हरण का सीन जब सूट किया गया और जब उसे देखा गया केमरे पर की सब कुझ ठीक से हो गया है या नही , तो तब मुझे बडा दुख हुआ था कि किसी समय किस तरह से एक नारी को बेईज्जत किया गया था । लेकिन फिर मेरे अन्दर से आवाज निकलकर सामने आई कि आज भी यही सब हो रहा है। कोई ना कोई घटना निकलकर सामने आ जाती है। कानून का डण्डा चलता है तो फॉसी तक हो जाती है। लेकिन फिर एसी घटना घटजाती है , इसलिये हर किसी को अपने बच्चो को संस्कार का पाठ पढाने की जरूरत है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब संस्कार का पाठ पढाने वालो मे खुद ही संस्कार ना हो , तो वे पाठ किसे पढायेगे । 


रविन्द्र शामली - पंजाब आपकी जन्म भूमि है लेकिन आपको दिल्ली और बम्बई मे रहना पडा , याद तो आती होगी पंजाब की ? 
प्रवीण कुमार - बहुत याद आती थी पंजाब की , दिल्ली बम्बई मे तो मेरा शरीर रहा आत्मा तो मेरी पंजाब ही रह जाती थी। 

रविन्द्र शामली - अपने चहाने वालो के लिये क्या संदेश देना चाहोगे ? 
प्रवीण कुमार - मै विशेष रूप से युवाओ को कहना चहाता हू कि चरित्रवान बनो l एसे कार्य ना करो की आपके परिवार की इज्जत का चीर हरण हो जाये । जो कमाते हो उसमे से थोडा  बचाया भी करो  भविष्य मे आपके काम आयेगा । वरना जब आपको जरूरत पडेगी उस समय ना तो समय आपके पास होगा और ना फूटी कोडी  

Monday, May 18, 2020

मुझे महाभारत से पहचान मिली :- विष्णु पाटील

बी0 आर0 चोपडा के महाभारत मे परदे के पीछे काम कर चुके वर्तमान मे  बॉलीवुड  हिंदी फिल्मों के ड्रेस डिजाइनर श्री विष्णु पाटील से रविन्द्र शामली की हुई बातचीत के मुख्य अंश.

रविन्द्र शामली - आपकी वर्तमान मे FASHION SHOP किस नाम से है ?
 विष्णु पाटील-वर्तमान मे मेरी FASHION SHOP VAISHNAVI FASHION HOUSE और  VIVAM DRESSWALA के  नाम से है।
रविन्द्र शामली - बी0 आर0 चोपड़ा के महाभारत मैं आपको काम किस प्रकार मिला था ? 
विष्णु पाटील- महाभारत के सभी पात्रों की ड्रेस उस समय के नामचीन मगनलाल ड्रेसवाला ने तैयार की थी मैं बहादुर शाह जफर के सेट पर काम कर चुका था जिसमें महाभारत के असिस्टेंट डायरेक्टर श्री गूफी पेंटल साहब शानदार अभिनय कर चुके थे शायद इन लोगों ने मेरा बहादुर शाह जफर के सेट पर काम के प्रति समर्पण देखा और मुझे महाभारत जैसे विशाल धारावाहिक में काम करने के लिए अनुबंधित किया था यहीं से में सुप्रसिद्ध मगनलाल ड्रेसवाला से जुड़ा और महाभारत से भी l
रविन्द्र शामली- उस जमाने में जब आप लोगों ने मिलकर के महाभारत के अभिनेताओं की ड्रेस को तैयार किया था तो कितनी चुनौतियां आपके सामने थी ?
विष्णु पाटील - चुनौतियां तो बहुत थी क्योंकि मैं भी उस समय नया था मुझे ज्यादा अनुभव नहीं था लेकिन मैं अपने काम के प्रति सदा समर्पित रहता था शुरू मे जो ड्रेस हमने महाभारत के शुरुआती कलाकारों के लिए तैयार की थी वह ज्यादा अच्छी नहीं थी धीरे.धीरे हमने उनमें बदलाव किया और जब कौरव और पांडव बडे हुए तब हम कई सारे बदलाव कर चुके थे l उस समय का एक किस्सा आपको बताता हू । रंगशाला का दृश्य शूट किया जाना था जहां पर कौरवों और पांडवों का परिचय होता है और कर्ण की एंट्री वहीं से होती है l सभी कलाकार बडे हो चुके होते है। अब जो ड्रेस बन करके आई थी वह हमें खुद जम नही रही थी उस दिन रवि चोपड़ा साहब को महाभारत की शूटिंग कैंसिल करनी पड़ी थी l लेकिन हमने चुनौतियों से पार पाया और चुनौतियों को स्वीकार किया l
रविन्द्र शामली - उस जमाने में एक कलाकार की ड्रेस पर कितना खर्चा आया करता था ?
विष्णु पाटील - 2 से 3 किलो तक मुकुट हुआ करता था और यदि खर्च की बात करें तो उस जमाने में महाभारत के एक कलाकार की ड्रेस के ऊपर करीब 10000 से 12000 तक का खर्च बड़ी आसानी से आ जाता था l
रविन्द्र शामली - एक कलाकार के लिए कितनी ड्रेस तैयार की गई थी ?
विष्णु पाटील - एक कलाकार के लिए हमने तीन ड्रेस तैयार की थी जिन को तीन भागों में बांटा भी गया था l नॉर्मल , दरबारी और वारियर एक ड्रेस का इस्तेमाल दरबार या राजभवन में होता था , एक ड्रेस का प्रयोग लड़ाई के दिनों में और एक नॉर्मल ड्रेस होती थी जिसको जरूरत के हिसाब से प्रयोग कर लिया जाता था l
रविन्द्र शामली- महिलाओं के लिए ड्रेस का विभाजन किया गया था या नहीं ?
विष्णु पाटील- नहीं हर महिला कलाकार के लिए हमने 6 ड्रेस तैयार की थी जिनको आसानी से चेंज किया जा सके और गर्मी की वजह से बदला जा सके तथा जब ड्रेस धुलवाने के लिए गई हो तो किसी प्रकार की कोई समस्या सामने ना आए l




रविन्द्र शामली - आप लोगों को एक कलाकार को तैयार करने में करीब कितना समय लग जाता था ?
विष्णु पाटील- महाभारत की शूटिंग से पहले जब हम लोग कलाकारों को तैयार करते थे तो एक कलाकार को तैयार करने में करीब 3 घंटे का समय लगता था जिन लोगों को दाढ़ी मूछ नहीं लगाई जाती थी l वह जल्द तैयार हो जातेे थे l
रविन्द्र शामली- आप चोपड़ा साहब की महाभारत की शूटिंग के दौरान शुरुआत से लेकर आखिर तक अपना योगदान देते रहे तो इस दौरान क्या कभी रवि चोपडा सहाब से मन मुटाव हुआ । ?
विष्णु पाटील- नहीं हम सब बहुत प्यार से कार्य करते थे रवि चोपड़ा जी बहुत ही गुणवान व्यक्ति थे मैं आपको एक किस्सा बताता हूं मुंबई में फिल्म सिटी में हम शूटिंग करने के बाद में जयपुर में बड़े शॉट्स लेने के लिए गए थे l उस समय मैंने पहली बार हवाई यात्रा की थी l मेरा एक पार्टनर था प्रभाकर पवार वह मुझसे पहले निकल गया था मौका ऐसा आया की प्रभाकर पवार जयपुर में जहां शूटिंग होनी थी वहां पर दूसरी तैयारी करा रहा था उस दिन सारा का सारा कार्य मुझे ही अकेले देखना पड़ा दोपहर के बाद लंच में कलाकारों ने अपनी कॉस्टयूम उतार दी क्योंकि वहां गर्मी बहुत ज्यादा होती थी l जब शूटिंग का समय शुरू हुआ तो मैं सभी कलाकारों को तैयार नहीं कर पाया जिसको लेकर रवि चोपड़ा जी भड़क गए और बोले कि यह क्या हो रहा है l जब उन्हें पता चला कि आज विष्णु पाटील अकेला है तो एकदम से बोल पडे ठीक है , ठीक है और चले गये l हम सबने बड़ा आनंद लिया है महाभारत की शूटिंग के दौरान सभी ने बड़े प्यार से और एक दूसरे की सहायता करते हुए अपना योगदान दिया है l
रविन्द्र शामली - महाभारत के कलाकारों की जो ड्रेस तैयार की गई थी उनके रंग आप लोगों ने ही पसंद की थी या रवि चोपड़ा साहब ने या किसी और ने ?
विष्णु पाटील - नहीं किस कलाकार की ड्रेस का रंग कैसा होगा यह सब पंडित नरेंद्र शर्मा जी तय करते थे l पंडित नरेंद्र शर्मा ही हमें बताते थे कि किस कलाकार के लिए किस किस रंग को वेशभूषा में प्रयोग करना है l जिस प्रकार से हमें पंडित नरेंद्र शर्मा जी गाइडलाइन करते थे उसी बात को ध्यान में रखते हुए हम लोग कलाकार के लिए ड्रेस को तैयार किया करते थे l
रविन्द्र शामली- शूटिंग के दौरान घर से आने और जाने में क्या कभी आपको किसी समस्या से दो.चार होना पड़ा है ?
विष्णु पाटील - हां पूछिए मत , उस जमाने में मेरे पास गाड़ी नहीं होती थी मैं मुंबई वर्ली में रहता था शाम को जब हम शूटिंग पूरी करके फिल्म सिटी से लौटते थे तो मैं ज्यादातर भीष्म का किरदार निभा रहे श्री मुकेश खन्ना जी की गाड़ी में ही उनके साथ जाया करता था शूटिंग के बाद में जब तक मैं अपना सारा कार्य पूरा ना कर लू तब तक मुकेश खन्ना जी मेरे लिए वेट करते रहते थे और मेरा कार्य पूरा होने के बाद में मुझे अपने साथ लेकर के जाते थे ऐसा प्यार था हम लोगों का आपस में l
रविन्द्र शामली - महाभारत बाद में भी बनाई गई , लेकिन जो मुकाम बी0आर0 चोपड़ा साहब की महाभारत को मिला दूसरे महाभारत को वह मुकाम नहीं मिला l आप क्या कहना चाहेंगे ?
विष्णु पाटील- जब एकता कपूर महाभारत बना रही थी तो वह मेरे पास आई थी और उन्होंने हमसे कहा था कि हम महाभारत बना रहे हैं हमारे कलाकारों की ड्रेस तैयार करो जो चोपड़ा साहब के महाभारत के कलाकारों की ड्रेस में मैच ना करती हो l हमने ऐसा किया , लेकिन हमें लगता था कि कोई भी दूसरा व्यक्ति अब दूसरे महाभारत का निर्माण तो कर ही नहीं सकता और यही हुआ l क्योंकि मासूम राही साहब जैसे संवाद तो कोई लिख ही सकता था l
रविन्द्र शामली- आपने बी आर फिल्मस कम्पनी बाद मे क्यो छोडदी थी ? 
विष्णु पाटील- मैंने इस कंपनी को छोड़ दिया था क्योंकि कंपनी रवि चोपडा जी के बच्चो के हाथ मे चली गई थी उनके बच्चों का बर्ताव हमारे प्रति इतना अच्छा नहीं था जितना होना चाहिए था , फिर मैंने अपना अलग कार्य करना शुरू कर दिया था l बी आर फिल्मस मे बाबुल मेरी आखिरी फिल्म थी ।
 
रविन्द्र शामली - महाभारत में आपने कितने कितने घंटे काम किया ?
विष्णु पाटील- उस जमाने में पूरा पूरा दिन महाभारत की शूटिंग हुआ करती थी स अनेक लोग शूटिंग देखने के लिए आया करते थे नीतीश जी के लोग पैर छू छू करके जाया करते थे l मेरा कार्य तो सुबह 5 बजे से शुरू हो जाता था l मैं महाभारत की सेट पर 5 बजे पहुंच जाता 6 बजे तक रवि चोपड़ा साहब आ जाते थे और फिर लगातार शूटिंग होती थी हम लोगों ने 20 घंटे 22 घंटे लगातार कार्य किया है l
रविन्द्र शामली- आप अपना गुरु किसे मानते हैं ?
विष्णु पाटील- मेरे गुरु थे रवि चोपड़ा जी मैं आज जो भी कुछ हूं वह सब रवि चोपड़ा जी की देन है उन्हीं के पास में मैंने रह करके बहुत कुछ सीखा और उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है l रवि चोपड़ा जी मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं थे l
रविन्द्र शामली- क्या शूटिंग के दौरान कभी किसी को चोट लगी ?
विष्णु पाटील - नहीं अनेकों बार जैसे घोड़े भाग जाते थे या कोई और ऐसी घटना हो जाती थी लेकिन लंबे समय तक जिस प्रकार से महाभारत की शूटिंग चली कुछ कुदरत की ऐसी दृष्टि रही है कि कभी भी किसी को शूटिंग के दौरान इस प्रकार से कोई चोट नहीं लगी कि जिसकी वजह से शूटिंग को रोकना पड़े l
रविन्द्र शामली- महाभारत की शूटिंग के दौरान का कोई यादगार पल जो आज भी आपको याद आता हो ?
विष्णु पाटील- पुनीत इस्सर और प्रवीण कुमार की फाइट जिसे देख कर के लगता ही नहीं था कि यह शूटिंग हो रही है विशालकाय परवीन पाजी और पुनीत इस्सर को शूटिंग के वक्त लोग देखकर के दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते थे l
रविन्द्र शामली- क्या कोई ऐसा भी धारावाहिक है जिसमें आपने पर्दे के पीछे महाभारत की तरह काम किया हो लेकिन वह पर्दे पर ना आ पाया हो , बीच में बंद हो गया हो ?
विष्णु पाटील- हां जी महाभारत में जो कृपाचार्य बने थे धर्मेश तिवारी जी उन्होंने एक प्रोजेक्ट तिरुपति बालाजी के नाम से शुरू किया था l यह बहुत ही शानदार प्रोजेक्ट था इसके लिए मुझे 5 साल के लिए अनुबंधित किया गया था l काम भी शुरू हो गया था लेकिन बाद में आपसी मनमुटाव और कहीं तरह की दूसरी समस्याओं के कारण वह प्रोजेक्ट बंद हो गया था , यदि यह प्रोजेक्ट बंद ना होता तो बहुत चलने वाला था l
रविन्द्र शामली- क्या आज भी महाभारत के कलाकरो से रिस्ते कायम है ?
विष्णु पाटील- हा जी अर्जुन फिरोज खान , गजेन्द्र चौहान , गुॅफी सहाब , प्रवीण कुमार , पंकज धीर , पुनीत इस्सर , विनोद कपूर , मुकेश खन्ना जी, नितिश भारद्वाज सभी से बात होती है और मिलते रहते है , सुटिगं के आखरी दिन तय हो गया था कि सभी बाद मे भी एक दूसरे के सम्पर्क मे रहेगे ।
रविन्द्र शामली- आखिर में आप पाठको को क्या संदेश देना चाहोगे ?
विष्णु पाटील- मैं तो यही कहना चाहूंगा की अहंकार को मत पालिए वर्तमान में जो कोरोना की बीमारी आई हुई है उससे बचने के लिए जहां तक हो सके अपने घर में रहो यदि नहीं मानोगे तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा l