Wednesday, December 4, 2019

कमाण्डो-3 से जुडे लोग समाज के माथे पर कलंक-नवीन मोर


रविन्द्र शामली - क्या आप फिल्मे देखते है ?
नवीन मोर - नही 

रविन्द्र शामली - फिल्म कमाण्डो 3 मे जो दिखाया गया उसे  क्या कहोगे ?
नवीन मोर - यह पहलवानो को बदनाम करने की शाजिश है। दुर्भाग्यपूर्ण है। 

रविन्द्र शामली - पहलवानो के पास  पैसा और पावर दोनो है। चहाते तो सिनेमा घरो की ईट से ईठ बजा देते   लेकिन एसा नही किया , क्या कहोगे ?
नवीन मोर - पहलवान बहुत सभ्य और समझदार होते है। इसलिये जो भी करते है कानून के दायरे मे रहकर करते है। 

रविन्द्र शामली - सैन्सर बोर्ड को कितना दोषी मानते है ?
नवीन मोर - बराबर का दोषी है। सैन्सर बोर्ड को पहले ही एसे सीन काटने चाहिये थे। 

रविन्द्र शामली - एक तरफ पहलवान देश का नाम रोशन कर रहे है। दूसरी तरफ फिल्म के द्वारा पहलवानो को बदनाम किया जा रहा है। क्यो , क्या कहोगे ?
नवीन मोर - शायद ये इस फिल्म से जुडे लोगो की छोटी सोच का परिणाम है। जिन्हे पहलवानी का मतलब ही नही पता है।  

रविन्द्र शामली - कानूनी लडाई के लिये कोई क्यो सामने नही आ रहा है ?
नवीन मोर - नही चारो ओर विरोध फिल्म का हो रहा है। पहलवान विरोध कर रहे है। हमारे गुरू हनुमान अखाडे के द्रोणाचार्य महासिंहराव सामने आये हैं। उम्मीद है जो भी होगा अच्छा ही होगा । 

रविन्द्र शामली - फिल्म की स्टार कास्ट को किस नजर से देखते है। 
नवीन मोर - कागजी हीरो  कागजी लोग है ये क्या जाने इज्जत कैसे कमाई जाती है। 

रविन्द्र शामली - असली बिमारी की जड क्या है ? 
नवीन मोर - पैसा   


रविन्द्र शामली- आप भी पहलवान है। पहलवान वास्तव मे कैसे होते है ? 
नवीन मोर - देखिये पहलवान शर्मीले होते है। दूसरे की बहन बेटी को अपनी बहन बेटी मानते है। मान सम्मान करते है। ऑख उठाकर तक किसी को नही देखते । बडो के बताये रास्ते पर चलते है। तब जाकर कही देश का नाम रोशन करते है। मुझे गर्व है कि मै पहलवान हू । देश के लिये खेला हू । 

रविन्द्र शामली -पाठको को क्या संदेश दोगे ?
नवीन मोर - इस फिल्म के साथ साथ इस एक्टर और निर्माता  की दूसरी फिल्म को ना देखे इन लोगो की ऑखे खोलने का सही उपाय है। 

साक्षातकार कर्ता 
रविन्द्र शामली 

Wednesday, October 23, 2019

पहलवान संन्दीप पोसवाल पर विशेष


सन्दीप पोसवाल पहलवान का जन्म 15-07-1995 को उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर के निकट गॉव रानी नंगला मे हुआ था । सन्दीप पहलवान ने बचपन मे यह नही नही सोचा था  कि पहलवान बनुगॉ सन्दीप पोसवाल के शुरूवाती दौर की बात करे तो सन्दीप बचपन से ही शर्मीले स्वभाव के थे । साथ के बच्चो के साथ मे सन्दीप भी रोजाना सुबह को दौड लगाने जाया करता था । एक दिन का जिकर है। सन्दीप जहॉ पर दौड लगाने जाया करता था वही पर एक खेत की जुताई हो रही थी । खेत मे ही लडकपन्न मे सन्दीप पोसवाल अपने साथी दोस्त के साथ कुस्ती लडा लेकिन उस समय कुस्ती की एबीसीडी सन्दीप को नही आती थी ।  इस खेल मे धीरे धीरे सन्दीप का एसा मन लगा कि अब दौड लगाने के बताय सन्दीप रोजाना साथी बच्चो के साथ खेत मे कुस्ती लडने लगा । सन्दीप ने एक दिन अपनी मॉ श्रीमति महिपाली को बताया की मै पहलवान बनना चहाता हू । सन्दीप की मॉ ने सन्दीप के पिताजी बिजेन्द्र सिंह को कहा कि यह देखो सन्दीप कहता है कि पहलवान बनुगॉ सारे कपडे मिट्टी मे रगड कर लाता है। अब तो सन्दीप का भाई और बहन भी सन्दीप को पहलवान कहने लगे थे । सन्दीप के पिता बिजेन्द्र सिंह ने सन्दीप की मेहनत व लग्न को देखकर निकट के गॉव जन्धेडी मे खलीफा लख्मीचन्द  के पास छोड दिया । सन्दीप पोसवाल अब कुस्ती के रास्ते पर चल पडा था । बाद मे सन्दीप पोसवाल ने मेरठ और बम्भेटा मे भी अभ्यास किया । पहलवानी के साथ सन्दीप पोसवाल ने पढाई भी जारी रखी वर्तमान मे सन्दीप बीजीएमसी कर रहा है। 
सन्दीप की की उपलबि्ियो की बात करे तो सन्दीप पोसवाल  आल इण्डिया यूनिवर्सिटी चैम्पियन  7 बार 125 किलो मे रह चुके है। यहि नही यूपी रूस्तम और सितारा इन्दौर के खिताब भी संन्दीप पोसवाल के नाम है। सन्दीप पोसवाल शाकाहारी पहलवान है। जो घी दूध बदाम फल जूस जैसे अहार के बल पर अपनी पहलवानी को नई दिशा देने मे लगे हुये है।
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत

Tuesday, October 22, 2019

चुनौतियो से लडना मानव का कर्म :- अर्जुन पहलवान



रविन्द्र शामली - आप अब तक कितने दंगल करा चुके अर्जुन पहलवान जी ?

अर्जुन पहलवान - छोटो मोटे दंगलो की गिनती तो याद नही है। बडे दंगलो की बात करे तो यह 32 वॉ दंगल है।

रविन्द्र शामली -सबसे बडा इनाम इस दंगल मे कितना रखा गया है ?

अर्जुन पहलवान - सबसे बडा इनाम पहले हमने चार लाख रू0 रखा था फिर अमित प्रमुख जी बोले के भाई अर्जुन एक लाख रू0 मेरी तरफ से ,  आखिरी कुस्ती पॉच लाख रू0 के इनाम पर होगी ,  फिर आखिरी कुस्ती का इनाम  पॉच लाख कर दिया गया । 

रविन्द्र शामली - कम शब्दो मे कहे तो दंगल क्या है ?

अर्जुन पहलवान - सच कहे तो दंगल हमारी संस्कृति का हिस्सा है। जिसके माध्यम से युवा मजबूत होते है और यही से मजबूत समाज का निर्माण होता है। समाज मजबूत होगा तो देश भी मजबूत होगा । 

रविन्द्र शामली - इस सफल आयोजन के लिये किन- किन चुनौतियो का सामना करना पडा ?

अर्जुन पहलवान -कोई भी काम हो चुनौतिया हर कार्य मे आती है। चुनौतियो से लडना मानव का कर्म भी है। और धर्म भी है। मै चुनौतियो से लडा और नतिजा आपके सामने है। 

रविन्द्र शामली - फिर भी सबसे बडी चुनोतिया कौन सी रही  ?

अर्जुन पहलवान - यह दंगल उन कार्यो मे से एक था जो सर्व समाज के सहयोग से होते है। मै कई महीने तक सहयोग के लिये  लोगो से मिला कुछ अच्छे लोग मिले कुछ बुरे मिले । कई खट्टे मीठे अनुभव हुये । इस चुनौती को पार किया । मेरे सामने  दूसरी चुनौती थी बहार से आने वालो को पूरा सम्मान देने की जिसमे मुझे सौ प्रतिशत सफलता मिली । 

रविन्द्र शामली - आपकी सबसे बडी ताकत क्या है ? 

अर्जुन पहलवान -बाबा जी फूलशन्दे जी का आशिर्वाद है। मॉ बाप का आशिर्वाद है। मेरे भाई भतीजे बच्चे मेरी आज्ञा का पालन करते है बस यही मेरी ताकत है। 

रविन्द्र शामली - आप सब भाईयो के नाम महाभारत के पात्रो पर रखे गये है। लोग पूछते है  क्यो  ? 

अर्जुन पहलवान - कहा जाता है कि हमारे गॉव मे कभी पॉचो पाण्डव आये थे और यहॉ पर रूके गॉव का नाम पचैण्डा तभी पडा था । पिताजी भी पहलवान रहे है अपने समय के , वे एतिहासिक बातो को आगे बढाने मे विश्वास रखते है। इन्हीं बातो से प्रभावित होकर पिताजी ने हम पॉचो भाईयो के नाम पाण्डवो के नाम पर रख दिये थे । 

रविन्द्र शामली - आपके अखाडे पचैण्डा कला मे कौन - कौन सी सुविधा उबलब्ध है ?

अर्जुन पहलवान -दौड के लिये ग्राउन्ड है,  मैट है,  जिम है ,  मैट हॉल तैयार हो रहा है। 

रविन्द्र शामली - आपके बारे मे एक बात कही जाती है कि अर्जुन पहलवान बात को मुह पर कहने वालो मे से है। जबकि आज के दौर मे ये  विचार धाराये बदल रही है। इस विषय पर आपकी क्या राय है ? 

अर्जुन पहलवान - विचारधाराये बदलने का सबसे बडा कारण है। आज के दौर मे लोग अपना नफा नुकशान ज्यादा देखते है। लेकिन मै इन बातो से इत्तेफाक़ नही रखता हू । मै किसी के प्रति कोई द्वेष नही रखता हू । मुझे   जिसे जो कहना होता है उसे उसके मुह पर ही कहने मे विश्वास रखता हू ।  

रविन्द्र शामली - पाठको के लिये क्या संदेश देना चाहोगे ?

अर्जुन पहलवान - यही कहना चाहूगॉ कि अच्छा काम करोगे तो सम्मान मिलेगा ,  बुरा काम करोगे तो गालिया । यही दो चीजे साथ जाती है बाकी कुछ नही साथ जाता इसलिये अच्छे काम करो । अपने बच्चो को सदाचार की बात सिखाया करो , अपने मॉ बाप की सेवा किया करो यही सबसे बडा तीर्थ है। 
                                                                                   समाप्त
साक्षातकार कर्ता 
रविन्द्र शामली 
कुस्ती जगत  

Wednesday, October 16, 2019

पत्रकारिता मेरे खून मे है:-नरेन्द्र चिकारा


नरेन्द्र सिंह चिकारा जिला शामली का एक एसा पत्रकार है जिसकी  कर्मठता को देखकर दूसरे लोग भी बहुत कुछ सीख सकते है। पत्रकारिता को समर्पित एसा जज्बा कम ही देखने को मिलता है। कोई भी क्षेत्रिय खबर नरेन्द्र सिंह चिकारा से बच कर निकल जाये यह सम्भव नही है।  नरेन्द्र सिंह चिकारा ने जिला शामली के पत्रकारो मे अपनी अलग साफ स्वछ छवी बनाई है। यह छवी उनके कार्य और उनके पत्रकारिता मे दिये गये योगदान का परिणाम है।  नरेन्द्र सिंह चिकारा का  रूतबा इसी बात से बखुबी नापा जा सकता है कि  चिकारा जी के द्वारा भेजी गई खबरे ज्यो की त्यो  अखबार द्वारा छापदी जाती है। कभी कोई कटिगं नही की जाती वर्तमान मे चिकारा जी जनवाणी अखबार मे अपनी सेवाये देते है। नरेन्द्र सिंह चिकारा  के योगदान को देखते हुये कई अखबार  चहाते है कि नरेन्द्र सिंह चिकारा उनके अखबार मे काम करे । लेकिन नरेन्द्र सिंह अखबार बदलने मे नही बल्कि जहॉ पर है वही पर काम करने को बेहतर मानते है। पत्रकारिता नरेन्द्र सिंह की मजबूरी नही बल्कि शौख है। नरेन्द्र सिंह कहते है कि पत्रकारिता तो मेरे खून मे है,  यह मेरा शौख है,  मेरा जनून है इसलिये मै इसे नही छोड पाता हू । गडे मुर्दो को उखाडकर सच्चाई सामने लाने की महारत नरेन्द्र सिंह चिकारा को बखुबी हासिल है।  नरेन्द्र सिंह वो पत्रकार है जो वास्त्विक व सच्चे विषयो से जनवाणी अखबार के माध्यम से समाज को सच का आईना दिखाता है। नरेन्द्र सिंह के विरोधी हर बार उनकी कलम के सामने घुटने टेकने को मजबूर हो जाते है। नरेन्द्र सिंह कहते है कि कलम ही मेरी की ताकत है,  कलम ही मेरा हथियार है।   समाज को एसे ही निष्पक्ष पत्रकारो की जरूरत है। 
रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत

Monday, September 16, 2019

मै सरकार की नीतियो का शिकर :- सचिन (पैरा ओलम्पियन)


उत्तर प्रदेश मे खेल और खिलाडी लगातार दम तोडते जा रहे है। जब किसी अच्छे खिलाडी की अवहेलना होती है तो खेल कमजोर होता ही है। कई गलत नीतियो के कारण खिलाडियो का मनोबल टूट जाता है। जिससे नये आने वाले खिलाडी भी सिनियर खिलाडी की दुर्दशा को देखकर अपना रास्ता बदल लेते है। या खेल को छोड देते है। उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के निकट रोहटा मे 8-01-1984 को जन्मे सचिन कुमार को खेल से बचपन से ही काफी प्यार था । बचपन मे खेलते - खेलते पता चला कि देश मे पैरा खेल भी होते है। तो सचिन कुमार ने पैरा पावर लिफटिंग मे  किस्मत को आजमाया । सचिन कुमार की लगातार लम्बे समय से की गई मेहनत रंग लाई , और देखते ही देखते सचिन कुमार के कदम आगे बढने लगे । सचिन कुमार  की मेहनत का ही कमाल था कि सचिन कुमार ने पैरा  पावर लिफ्टिंग नेशनल मे 10 गोल्ड प्राप्त कर डाले । देश के लिये पैरा ओलम्पिक मे प्रतिनिधित्व भी किया । तीन बार एशियन गेम्स (पैरा) मे देश का प्रतिनिधित्व किया । कोमनवेल्थ गेम्स मे  ब्रोन्ज मेडल प्राप्त किया , 11 इंटरनेशनल मेडल प्राप्त  किये  , देश के कई बडे नेताओ ने भी सचिन कुमार को अपने पास बुलाकर सचिन की खूब तारीफ  की  , यही नही प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी सचिन को बुलाकर मुलाकात कर चुके है। इतना सब होने के बावजूद सचिन कुमार को आज तक नौकरी नही मिली । नेताओ को सचिन यह समझाने मे सदा नाकामयाब रहे कि पेट नौकरी से भरता है , ना कि मुलाकातो और फोटो खिचवाने से । सचिन कुमार को आश्वासन लगातार मिलते गये । लेकिन नौकरी आज तक ना मिली । आखिर मे तंग आकर सचिन कुमार मेरठ मे 09 सितम्बर 2019 को  धरने पर बैठ गये , तब जाकर प्रशासन के थोडे से कान खडे हुये । जिसके बाद सचिन को खेल मन्त्री से मिलवाने की बात कही गयी । तब सचिन कुमार की ओर से 15 सितम्बर 2019 को  धरना स्थगित किया गया । जल्दी ही सचिन कुमार को खेलमन्त्री से मिलवाया जायेगा । सचिन कुमार को जिस दिन नौकरी मिलेगी वो नौकरी किसी मेडल से कम ना होगी । देखना होगा यह नौकरी रूपी मेडल सचिन कुमार को कब प्राप्त होता है। न्याय की लडाई मे आप सब सचिन कुमार का साथ दे ।

रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत 

Monday, July 29, 2019

कर्म ही मेरी पूजा : चौधरी सुरेन्द्र सिंह


कस्बा ऊन को तहसील बने हुये  काफी दिन बीत गये थे । अनेंको अधिकारी आये और चले गये । किसी को कोई याद नही रहा । समय अपने रास्ते पर चलते हुये भला कहॉ किसी के लिये रूकता है। एक दिन वो समय आया जिसका सायद तहसील ऊन इन्तजार कर रही थी । उस दिन  तहसील ऊन की किसमत चमक उठी क्योकि इस तहसील को एक कर्मठ , इमानदार , निडर अधिकारी उपजिलाधिकारी के रूप मे चौधरी सुरेन्द्र सिंह मिले अपने शानदार कर्तव्य का निर्वाहन करते हुये चौधरी सुरेन्द्र सिंह ने अनेको रूके पडे कार्यों को पूरा किया । ऊन क्षेत्र मे चौधरी सुरेन्द्र सिंह ने बेमिशाल कार्य किये तथा विकास को नई दिशा दी , उपजिलाधिकारी के कार्यो की बदौलत आज क्षेत्र का एक - एक बच्चा सहाब को जानता है। वे  क्षेत्र धन्य है। जिन्हे एसे देवता रूपी कर्मशील अधिकारी मिलते है। एसे कर्मठ अधिकारी को क्षेत्र मे यदि लम्बा समय कार्य करने को मिल जाये तो क्षेत्र स्वर्ग बन जाये । चौधरी सुरेन्द्र सिंह जैसे दिगगज अधिकारियों की वजह से ही समाज मे लोगो का कानून पर भरोसा टिका हुआ है। चौधरी सुरेन्द्र सिंह सही को सही , गलत को गलत , बताने का दम रखते है। क्षेत्र मे निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिये लोग  चौधरी सुरेन्द्र सिंह को सच मुच का इनसान भी कहते है। अतः कहा जा सकता है कि चौधरी सुरेन्द्र सिंह जी ऊन क्षेत्र के लिये किसी संजीवनी से कम नही है। चौधरी सुरेन्द्र सिंह कहते है कि कर्म ही मेरी पूजा है। इस कुर्सी पर बैठने से पहले जो संवैधानिक कसम खाई थी उसे निस्वार्थ भाव से निभाया है। और आगे भी निभायेगे । 

रविन्द्र शामली
कुस्ती जगत 

Tuesday, April 30, 2019

पहलवान उदय चन्द पर विशेष




महान पहलवान उदय चन्द (अर्जुन अवार्डी ) का जन्म हरियाणा के हिसार के पास एक छोटे से गॉव जाण्डली मे 25 जून 1935 को हुआ था । बचपन से ही उदय चन्द कुस्ती के शौकीन थे । अपने भाई हरिराम के साथ उदय चन्द कुस्ती का  अभ्यास किया करते थे । भारतीय  सेना मे भर्ती होने के बाद उदय चन्द के सपने आसमान छूने लगे थे । 

उदयचन्द का संघर्ष
उन्होंने योकोहामा में 1961 में हुई विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में  कांस्य पदक जीता था। एक बार उदय चन्द विश्व चैंपियन महेमद.अली सनातनकर के खिलाफ अपने मुकाबले के दौरान विशेष रूप से बदकिस्मत रहे थे क्योंकि 1.1 ड्रॉ में मुकाबला समाप्त हो गया। भlरत सरकार ने उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा 1 9 61 में कुश्ती में प्रथम अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया था। श्री उदय चन्द जी ने तीन ओलिम्पक मे भाग लिया रोम 1 9 60 , टोक्यो 1 9 64 , मैक्सिको सिटी 1 9 68 और मैक्सिको सिटी में क्रमशः 6 वां स्थान पर रहे। श्री उदय चन्द जी ने एशियाई खेलों में दो बार भाग लिया 1 9 62 के एशियाई खेलों जकार्ता में 70 किलो ग्रेको.रोमन में दो रजत पदक जीते और 1 9 66 एशियाई खेलों बैंकाक में 70 किलो फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीता। इसके अलावा उन्होंने चार अलग.अलग विश्व कुश्ती चैंपियनशिप यानी योकोहामा 1 9 61, मैनचेस्टर 1 9 65, दिल्ली 1 9 67 और एडमोंटन 1970 में भाग लिया। उन्होंने स्कॉटलैंड के एडिनबर्गए 1 9 70 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक के साथ अपने शानदार कैरियर को चार चॉद लगा दिये और खेलो से सन्यास ले लिया वह 1 9 58 से 1 9 70 तक भारत में निर्विवाद राष्ट्रीय चैंपियन बने रहे। 

कोच के रूप मे उदय चन्द की सेवाये 
बाद का जीवन भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय  हिसार में एक कोच के रूप में शामिल होकर 1 9 70 से 1 99 6 तक अपनी सेवाएं दीं। उनके समय के दौरान कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवानों तैयार हुये और विश्वविद्यालय टीम को कई अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय चैंपियनशिप में जीत।दिलाई 

धुम्रपान उदयचन्द की कमजोरी 
श्री उदय चन्द जी बीडी हुक्का पिया करते थे कभी कभी तम्बाकु का भी सेवन करते थे । श्री उदय चन्द खुद मानते है की ये मेरी सबसे बडी कमजोरी थी जिसका मुझे तमाम उम्र मलाल रहेगा यदि मै तम्बाकु बीडी सिगरट का सेवन न करता तो करीब 15 मेडल और अधिक जीत सकता था और विश्व चैम्पियन होता । 


अपने भाई के साथ 
विश्व चैम्पियनशिप मे जाना 
उदय चन्द जी अपने भाई हरिराम के साथ विश्व चैम्पियनशिप मे हिस्सा लेने साथ गये थे भारत के इतिहास मे ऐसा पहली बार था कि एक मॉ के दो बेटे विश्व चैम्पियनशिप मे गये हो आज समय की धरा मे बहते बहते हो सकता है लोग उदय चन्द को भूल गये हो परन्तु भारत   का कुस्ती इतिहास उन्हे  कभी नही भुला सकता

कुछ लोग उदयचन्द को कहते है घमण्डी 
हालाकि कई लोग उदयचन्द को घमण्डी व बडबोला भी कहते है। लेकिन उदय चन्द इन बातो की परवाह नही करते अच्छा पहलवान होने के बावजूद उदयचन्द को काफी मेहनत करनी पडी 

जब उदय चन्द पर भरी पडी 
राजनीति
उदय चन्द बताते है कि मुझे ओलम्पिक मे 67 कीलो मे भाग लेना था जबकी मुझे 74 कीलो मे भेजा गया और मेरी जगह 67 किलो मे गुरू हनुमान के शिष्य ज्ञान प्रकाश पहलवान को भेजा गया जबकि मै ज्ञान प्रकाश को आसानी से हराया करता बाद मे मुझे पता चला कि गुरूहनुमान ने ज्ञान प्रकाश को कम वजन मे उतारने के लिये भारतीय ओलम्पिक संघ के अश्विनी कुमार से सिफारिश कराई थी उदयचन्द कहते है कि मुझे यदि मेरे वजन 67 कीलो मे हिस्सा लेने दिया जाता तो मै निश्चित ही ओलम्पिक से पदक जीत जाता क्योकि जिस अमेरिकी पहलवान से ज्ञान प्रकाश बहुत कम अन्तर से हारा उसे स्वर्ण पदक मिला था और मै ज्ञान प्रकाश को आसानी से हरा लिया करता था । 

पहला ओलम्पिक और उदयचन्द 
पहलवान उदय चन्द के कैरियर की सुरूवात ही उस समय हुई थी जिस समय खेलो की हालत दयनिय थी जीतने पर भी कोई नही बूझता था । देश मे खेल संघो के अध्यक्ष जरूर उदयोगपति होते थे । लेकिन खिलाडी जरूर एक एक पैसे के मोहताज हुआ करते थे । पहलवान उदयचन्द कुस्ती जगत का वो कोहीनूर है जो देश की तरफ से 1960 मे कुस्ती के खेल मे हिस्सा लेने के लिये रोम के अन्दर ओलम्पिक मे खेलने गया । उदयचन्द से पहले कोई भी भारतीय पहलवान कभी भी ओलम्पिक मे खेलने नही गया था । पहलवान जी वहॉ की चमक दमक देखकर हैरत मे पड गये । वहॉ पर सब कुछ अलग था । भारतीय अधिकारी वहॉ की ए बी सी डी नही जानते थे । जब पहलवान उदयचन्द जी अखाडे रूपी मैट पर कुस्ती लडने के लिये गये तो रेफरी ने कहा की जूते पहन कर आओ तब उदय चन्द को पता चला था की यहॉ पर जूते पहनकर कुस्ती लडी जाती हैं । पहलवान जी जूते पहन कर दोबारा मैट पर गये और कुस्ती लडी लेकिन परिणाम अनुरूप ना आये । क्या एसी हालत मे पदक जीता जा सकता है। 

तीन बार मा0 चन्दकी राम से हुई कुस्तीय नही निकला परिणाम 
पहलवान उदयचन्द की तीन वार कुस्तीया मास्टर चन्दगीराम जी के साथ हुई कभी परिणाम नही निकल सका और कुस्ती बराबरी पर रही  

जब उदयचन्द ने बचाई देश की लाज 

एक समय की बात है दिल्ली मे कुस्तीया चल रह थी रूस्तमे पाकिस्तान पहलवान मौलाबक्स की कुस्ती भारत के नामचीन पहलवान श्री मेहरदीन के साथ हुई कुस्ती बराबरी पर रही किसी ने मौला बक्स को ये कह दिया कि कुस्ती मिलकर हुई है। इस बात पर पाकिस्तानी पहलवान मौलाबक्स भडक उठा और उसने भारतीय पहलवानो को चुनौती दे डाली किसी भी भारतीय पहलवान ने मौलाबक्स की चुनौति स्वीकार नही की तब गुरू हनुमान और मुरलीधर डालमिया ने उदयचन्द से मौलाबक्स के साथ कुस्ती लडने की गुहार लगाई तब उदय चन्द ने ये कुस्ती लडी और तीनवे मिन्ट मे मुलतानी दाव लगाकर उदयचन्द ने मौलाबक्स को चित किया 


कई  उपलब्धिया प्रथम बार उदय चन्द के नाम है दर्ज 

उदयचन्द अपने समय के एसे खिलाडी रहे है। जिनके नाम कुस्ती जगत के अनेक रिकोर्ड प्रथम बार उनही के नाम दर्ज है।
प्रथम: खिलाडी जो ओलंपिक में गए
प्रथम: अर्जुन अवार्ड विनर
प्रथम: विश्व चैम्पियनशिप से पहले पदक विजेता
प्रथम: खिलाडी जो ओलंपिक में तीन बार गए
प्रथम: खिलाडी जो भाई के साथ विश्व चैम्पियनशिप में गए
प्रथम: 1700 से ज्यादा शिष्य पहलवान खिलाडी सरकारी नौकरीयो पर गए (हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय)

जब हरियाणा के मुख्यमन्त्री ने उदय चन्द से मिलने को किया इन्कार 

21-august-2017 को लोग अपना सरकारी दफतरो में काम नही होने के चलते मुख्यमन्त्री महोदय के दरबार मे अपनी शिकायत लेकर पहुचे थे । मुख्यमन्त्री के दरबार मे करीब 500 शिकायतकर्ता आये थे इनमे एक हमारे देश के महान पहलवान 87 वर्षीय चौधरी उदयचन्द भी पहुचे थे , उदयचन्द कुस्ती के खेल के पहले ओलम्पियन है। , पहले अर्जुन अवार्डी है। , तथा विश्वचैम्पियन शिप से पहले पदक जीतकर लाने वाले पहलवान है। पहलवान उदयचन्द भी आम लोगो के साथ मे गर्मी के दौरन लाईन मे लगे नजर आये थे , सीएम के अधिकारीयो द्वारा सभी शिकायतकर्ताओ को एक एक स्टीकर दे दिया गया था । मुख्यमन्त्री के सामने सुरेश कुमार (दिव्यागं) शिक्षक ने गुहार लगाई थी की मेरी पत्नी भी अध्यापिका है। और हमारी एक बेटी है। जो दिव्याग है। अतः हमारी न्युक्ति रोहतक के पास करवादो लेकिन मुख्य मन्त्री महोदय ने नियमो का हवाला देते हुये ऐसा करने से मना करदिया था , कुछ लोग अपने आपको पक्का करने की मॉग लेकर पहुचे मुख्यमन्त्री महोदय ने कहा की एसा नही हो सकता शिकायत कर्ता बोले की हमारे बाद के लोग कैसे पक्का करदिये गए इस पर मुख्यमन्त्री महोदय बोले की कोर्ट चले जाओ । यह सब देख रही एक महीला शिकायतकर्ता झल्लाकर बोली थी , जब कोई समाधान ही नही हो रहा तो बन्द करो ये दरबार इस पर मुख्यमन्त्री बोले थे की आप मुझे अपनी शिकायत दो अपना दर्द नही 
उदय चन्द ने यह सब अपनी नजरो से देखा ........... नामचीन पहलवान चौधरी उदयचन्द को मुख्यमन्त्री महोदय ने समय नही दिया लाईन मे लगे उदयचन्द के साथ लोग सेल्फी ले ले कर जा रहे थे लेकिन मुख्यम्न्त्री महोदय ने पहलवान उदयचन्द को समय ना देना ही बेहतर समझा , क्यो बेहतर समझा यह तो मुख्यमन्त्री महोदय ही जानते होगे उदयचन्द पहलवान की खुबी है कि वे कभी भी बडे से बडे नेता और खेल अधिकारियों के सामने ना कभी झुके, ना डरे , ना चमचागिरी की -----------  
उदयचन्द के दिल मे है कई बाते 
उदयचन्द कहते है कि  कुस्ती के पैरोकार और अधिकारी  उदयचन्द  पहलवान को भूल चुके है ना कभी  मुझे  पदम श्री के लायक समझा गया ना ही द्रोणाचार्य के मै  सुरू से लेकर आखिर तक उपेक्षा का शिकार  होता रहा 

जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब मुझे कुछ आस जगी थी लेकिन नतिजा वही एक डाक के तीन पात चौथा लगे ना पाचवे की आस वाला ही साबित हुआ । 
साक्षातकार  कर्ता 
रविन्द्र शामली 
कुस्ती जगत 

Sunday, April 14, 2019

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत पर विशेष

  

लेखक -चौधरी मानवेन्द्र सिंह तोमर ,

संलग्न कर्ता- 
रविन्द्र शामली 
कुस्ती जगत ,


चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर के कस्बा सिसौली में 6 अक्टूबर 1935 में एक किसान परिवार में हुआ। गांव के ही एक जूनियर हाईस्कूल में कक्षा सात तक पढ़ाई की। पिता का नाम चौहल सिंह टिकैत और माता का नाम श्रीमती मुख्त्यारी देवी था। चौधरी चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे। पिता की मृत्यु के समय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत मात्र आठ साल के थे। आठ वर्ष की आयु में इन्हें बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। सर्वखाप मंत्री चौधरी कबूल सिंह के सहयोग से चौधरी टिकैत ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया। चौधरी टिकैत ने वर्ष 1950, 1956, 1963, 2006, 2010 में बड़ी सर्वखाप पंचायतों में पूर्ण रूप से भागीदारी रखते हुए दहेज प्रथा, मृत्युभोज, दिखावा, नशाखारी, भ्रूण हत्या आदि जैसी सामाजिक कुरीतियों, बुराइयों पर नियंत्रण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1986 में बने भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष वर्ष 1986 में किसान, बिजली, सिंचाई, फसलों के मूल्य आदि को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलित थे। तब एक किसान संगठन की आवश्यकता महसूस की गई। तब 17 अक्टूबर 1986 को सिसौली में एक महापंचायत हुई, जिसमें सभी जाति-धर्म व सभी खापों के चौधरियों, किसानों व किसान प्रतिनिधियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और सर्वसम्मति से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया गया। पंद्रह साल के संघर्ष के परिणाम स्वरूप किसानों का कर्जा पूर्ण रूप से भारत सरकार द्वारा माफ किया गया तथा किसानों को उर्वरक सब्सिडी भाकियू की मांग के आधार पर सीधे देने की घोषणा की गई। साथ ही पिछली वार्ताओं के कारण आज कृषि ऋण का ब्याज 12 प्रतिशत से घटकर चार प्रतिशत तक पहुंचा है। भारतीय किसान यूनियन द्वारा 2006 में प्रधानमंत्री को विश्व व्यापार संगठन में कृषि पर करार रोकने के लिए 25 लाख किसानों के हस्ताक्षर सौंपे गए, जिस कारण यह करार नहीं हो पाया। वर्ष 2004 से आज तक भाकियू के विरोध के कारण सीड्स बिल संसद में पास नहीं हो पाया।

किसानों की समस्याओं पर मुखर

वर्ष 2001 से 2010 तक जंतर-मंतर नई दिल्ली में किसानों की समस्याओं जैसे विश्व व्यापार संगठन, बीज विधेयक 2004, जैव परिवर्तित बीज, किसानों के कर्ज माफी, फैसलों का उचित लाभकारी मूल्य आदि को लेकर प्रत्येक वर्ष विशाल किसान पंचायत का सफल आयोजन किया। अस्वस्थता के दौरान भी चौ. टिकैत फरवरी 2011 में प्रेस के माध्यम से ऐलान किया कि देश के प्रधानमंत्री किसानों की समस्याओं पर गंभीर नहीं हैं। अगर प्रधानमंत्री किसान प्रतिनिधिमंडल से वार्ता नहीं करते तो दिल्ली को चारों तरफ से बंद किया जायेगा। इससे घबराकर प्रधानमंत्री ने 8 मार्च 2011 को ही किसान प्रतिनिधि मंडल को बुलाकर वार्ता की। अस्वस्थता के चलते चौ. टिकैत इस वार्ता में नहीं जा सके। भारत के प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह ने फोन कर चौ. टिकैत के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हुए किसान समस्याओं को गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया। चौ. टिकैत ने ठीक 7 बजकर 08 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही हर तरफ शोक की लहर व्याप्त हो गई। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भाकियू के गठन के बाद से ही संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। 24 साल तक वही इस संगठन के सर्वेसर्वा रहे।


कामयाबी के पीछे पत्नी का हाथ 
बाबा के नाम से मशहूर किसान मसीहा चौधरी टिकैत की कामयाबी के पीछे उनकी स्वर्गीय पत्नी बलजोरी का हाथ था। बलजोरी देवी अधिक शिक्षित नहीं थी, लेकिन उन्हें टिकैत के बालियान खाप का मुखिया होने का अहसास था। बलजोरी देवीे चौधरी टिकैत के प्रत्येक कार्य का विशेष ध्यान रखती थीं। खेत से लौटने के बाद बलजोरी देवी टिकैत के हुक्का-पानी व खाना आदि का विशेष ध्यान रखती थीं। 1987 में भाकियू के गठन के बाद बलजोरी देवी ने कंधे से कंधा मिलाकर हर कार्य में टिकैत का साथ दिया। भाकियू को विशेष पहचान देने वाले करमूखेड़ी आंदोलन में बलजोरी देवी ने अपने साथ सैकड़ों मातृशक्ति को लेकर धरने पर उनका नेतृत्व किया। समय-समय पर बलजोरी देवी टिकैत को सलाह भी देती थीं, जिसे टिकैत अमल में भी लाते थे। चौधरी टिकैत ने बलजोरी देवी की सक्रियता के चलते उन्हें महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया था। जिस के चलते उन्होंने धरने प्रदर्शनों में बढ़ चढकर हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। लखनऊ पंचायत में हुए लाठीचार्ज में बलजोरी देवी गंभीर रुप से घायल हो गयी थीं। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बलजोरी देवी ने टिकैत को घर-बार व खेत खलिहानों की चिंता से पूरी तरह मुक्त कर रखा था। टिकैत की माता के देहांत के बाद बलजोरी देवी के जिम्मे पूरे घर की देखभाल थी। बीमारी के चलते अंतिम समय में बलजोरी देवी काफी समय तक बिस्तर पर रहीं, लेकिन तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चौधरी टिकैत को प्रोत्साहित करती रहीं। इसके अलावा महिला विंग की कार्यकत्रियों में भी जोश भरती रही।

किसान ज्योति बुझी
किसानों के मसीहा और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की रविवार को प्रात: सांसें थमते ही सिसौली में किसान ज्योति भी बुझ गयी। इसे संयोग या यूं कहें कि किसान पुत्र की अंतिम विदाई को यह किसान ज्योति भी सहन नहीं कर सकी। सिसौली में बने किसान भवन परिसर स्थित किसान ज्योति करीब पांच दशकों से जल रही थी। एक छोटे से कमरे में स्थित इस पीतल के बड़े से कटोरे में जली ज्योति को हवा और बारिश से बचाने के लिए चारों ओर शीशे लगे हुए हैं। यह किसान ज्योति बाबा के घर से किसान भवन परिसर में वर्ष 1988 में स्थापित कर दी गयी थी। इससे पहले यह किसान ज्योति भाकियू सुप्रीमो के घर जलती थी। बाबा टिकैत ही इसे जलाते थे। अब बाबा की तरह यह किसान ज्योति भी इतिहास बन गयी है। इस ज्योति को जलाने की प्रेरणा उन्हें हरिद्वार स्थित शांतिकुंज की अखंड ज्योति से मिली थी। बाद में वहीं किसान ज्योति सिसौली स्थिति किसान भवन में किसानों के शक्ति का केन्द्रीय स्थल बना। किसानों के मन में बाबा टिकैत की तरह ही किसान ज्योति के लिए श्रद्धा और आदर का भाव था। बाबा और ज्योति एक रूप थे। 15 मई 2011 को बाबा के प्रयाण के साथ ही किसान ज्योति भी बुझ गई।

मौन हो गया धरतीपुत्रों का रहनुमा
खेड़ीकरमू की घटना के बाद प्रदेश व देश की सरकार को टिकैत की ताकत का अहसास हो गया था। भोपा का नईमा प्रकरण हो या समय-समय पर हुए गन्ना आंदोलन। हमेशा सरकारों ने टिकैत के आगे सिर नवाया। टिकैत एक ऐसा नाम रहा जो किसानों के स्वाभिमान को लेकर कभी नहीं झुका और उनके आंदोलन इतिहास बन गए। चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनके नेतृत्व में हुए किसानों के आंदोलन इतिहास बन गए हैं। किसान आंदोलनों में बाबा टिकैत ने कभी अपनी जान की परवाह नहीं की। किसान उत्पीड़न पर वह हमेशा सरकार और प्रशासन के सामने दीवार बनकर खड़े रहे। खेड़ीकरमू में दो किसानों की हत्या के बाद उग्र आंदोलन के चलते किसानों ने जब एक पीएसी जवान को मार डाला तो प्रशासन और सरकार किसानों की ताकत को समझ गई। मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से लेकर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तक ने टिकैत के आगे शीश नवाया है। मुख्यमंत्री रहते वीर बहादुर सिसौली आए थे। बीते वर्ष किसान व किसान नेताओं के उत्पीड़न के खिलाफ विदुरकुटी (दारानगरगंज) में स्वाभिमान बचाओ रैली हुई थी। जिसमें रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह समेत किसान मसीहा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने शिरकत की थी। रैली के मंच से सूबे में किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ बाबा टिकैत ने प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को युद्ध के लिए ललकारा था। यही नहीं उन्होंने मायावती के खिलाफ तल्ख टिप्पणी भी की थी। जिससे सूबे की राजनीति में हड़कंप मच गया था। इस टिप्पणी के आरोप में भाकियू सुप्रीमो स्वर्गीय टिकैत के खिलाफ बिजनौर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की तैयारी की गई थी। इसके लिए बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों की पुलिस तमाम रास्तों की नाकेबंदी करती रही, पुलिस के कप्तानों समेत बड़े अधिकारी सड़कों पर दौड़ लगाते रहे, लेकिन बाबा प्रशासन की सभी नाकेबंदी को तोड़कर सुरक्षित सिसौली पहुंच गये। प्रशासन ने सिसौली गांव की घेराबंदी की, तो किसानों ने जमकर विरोध किया। लेकिन भाकियू अध्यक्ष न सरकार से डरे और न झुके। आखिरकार प्रदेश सरकार को ही लचीला रुख अपनाना पड़ा। भाकियू अध्यक्ष के मन में हमेशा किसानों का दर्द छलकता रहा। तीन दिन पहले उन्होंने अपनी लड़खड़ाती आवाज में कहा था कि मेरे शरीर की हड्डियां अगर जवाब न देती तो सरकार को हिला देता।

मेरठ की आग से भड़के थे शोले
बाबा टिकैत के इंकलाबी इतिहास में मेरठ का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। देश ही नहीं पूरी दुनिया में मेरठ और भाकियू एक साथ सुर्खियों में रहे थे। कह सकते हैं मेरठ के आंदोलन की राह पर चलकर ही टिकैत ने दिल्ली के हुक्मरानों की नाक में नकेल डाली थी। 27 जनवरी 1988 से लेकर 19 फरवरी 1988 तक के वो 25 दिन शायद ही कोई मेरठ वासी भूल पाया हो। किसानों की समस्याओं को लेकर कमिश्नरी के समीप सीडीए ग्राउंड में भाकियू राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में उनकी फौज धूल उड़ाती हुई आ गयी। देखते-देखते कमिश्नर के आसपास ही नहीं सीडीए का मैदान भाकियू के आन्दोलन में तब्दील हो गया। लाखों की संख्या में आये इन किसानों के आन्दोलन की आग के शोले लखनऊ में भड़के। उनके आन्दोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन कमिश्नर वीके दीवान ने मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह से बात करके 20 कंपनी पीएसी, 11 कंपनी सीआरपीएफ लगाई। आन्दोलनकारियों को रोकने के लिए मेरठ-मुजफ्फरनगर मार्ग पर लगातार फ्लैग मार्च भी कराया। इस आन्दोलन के दौरान ठंड अधिक होने के कारण सात किसानों की ठंड से मौत भी हुई पर किसानों ने धैर्य नहीं छोड़ा और हक के लिए लड़ाई लड़ते रहे। सैकड़ों भट्ठियां यहां चढ़ी। सैकड़ों गांव से इतनी खाद्यान्न सामग्री यहां आती थी कि आसपास गांव के लोग ही नहीं शहरी भी यहां खाना खाते थे। वीररस के सुप्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार काव्य पाठ करके आन्दोलनकारियों में जुनून पैदा करते थे तो करनाल की भूरो, शांति व किशनी यहां भजन सुनाती थी। उस वक्त फोर्स नहीं किसानों ने स्वयं ही यातायात व्यवस्था का संचालन किया। किसी की हिम्मत इस आन्दोलन दौरान धरनास्थल की ओर वाहन ले जाने की नहीं होती थी।यह एक ऐसा मंजर था जो न किसी ने देखा था और न शायद देखने को मिले। शहर के लोगों के लिए हैरत में डालने वाले क्षण थे। क्या ऐसा किसान आंदोलन होता है, क्या ऐसे अपनी मांगें मनवायी जाती हैं, क्या ऐसे सरकार को झुकाया जाता है, ऐसे तमाम सवाल लोगों की जबान पर थे। टिकैत की एक झलक और उनकी ठेठ भाषा भी बहुत लुभाती थी। आंदोलन के 24 दिन बाद प्रदेश सरकार की ओर से मंत्री सईदुल हसन व हुकुम सिंह ने किसानों के बीच आकर उनसे वार्ता की। इस तरह यहां धरना तो समाप्त हो गया पर टिकैत ने प्रदेश सरकार के खिलाफ असहयोग आन्दोलन चलाने की घोषणा कर दी। इसी दौरान उन्होंने किसानों से अपील की थी कि वह बिजली के बिल न दें। किसी भी सरकारी अधिकारी को गांव में न घुसने दें। इसका असर हर गांव में हुआ। मेरठ के इस ऐतिहासिक आंदोलन के बाद किसान इतने मजबूत हो गए कि विभिन्न महकमों के अफसर गांवों में जाने से कतराने लगे। इस आंदोलन से ही टिकैत किसानों के मसीहा बने और देश दुनिया में नाम बुलंद हुआ। मेरठ के लोगों के जहन में आज भी आंदोलन की याद ताजा है। बहरहाल, टिकैत के दुनिया से चले जाने से सब गमजदा हैं। यही आंदोलन था जिसके बाद टिकैत ने 25 अक्टूबर 1988 को नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर आन्दोलन का बिगुल फूंका।

किसान आंदोलन
चौधरी चरण सिंह के बाद अगर किसी ने किसानों की असल समस्या समझी और उसके लिए आगे आकर संवेदनहीन तंत्र से जूझकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ी तो वे चौधरी टिकैत ही थे। उनके जाने के बाद किसानों को अपने हक के लिए आंदोलन का रास्ता दिखाने वाला दूर-दूर तक कोई निस्वार्थी नेता नजर नहीं आता है। उनके जाने से किसान आंदोलन को गहरा झटका लगा है। विडंबना है कि सरकार तेल कंपनियों का घाटा पाटने के लिए तेल के दाम तो नौ महीनों में नौ बार बढ़ा देती है, लेकिन कथित विकास कायरें की भेंट चढ़ती किसानों की कृषियोग्य भूमि और किसानों के उपज की वाजिब कीमत देने-दिलाने की चिंता की पहल कहीं से नहीं हो रही है। ऐसे ही मुद्दे और सवाल टिकैत के आंदोलन की नींव बनते रहे। 1987 में बिजली की बढ़ी दरों के खिलाफ खेड़ीकरमू पावर हाउस पर टिकैत के किए गए आंदोलन ने उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर पुख्ता की और इस आंदोलन का ही असर था कि सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा। तत्कालनी मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को सिसौली आकर किसानों की पंचायत को संबोधित कर उनकी मांगें माननी पड़ी। ये था टिकैत की गर्जना का असर। इसके बाद तो टिकैत की आवाज जब-जब गूंजी, सरकारें कांप गईं। देखते ही देखते वे किसान से भगवान बन गए और उनका पैतृक गांव सिसौली किसानों का तीर्थस्थल। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद टिकैत ने सफलतापूर्वक किसान आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और 17 अक्तूबर 1986 को गैर राजनीतिक संगठन भारतीय किसान यूनियन की स्थापना कर किसानों की जुझारू वृत्ति को धार दी। उनके खाते में 1990 में जनता दल सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, लखनऊ पंचायत का आयोजन एवं सात सूत्री मांग को लागू करने के लिए आंदोलन, गाजियाबाद के किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए प्रदर्शन, चिनहट काथुआटा के किसानों की अधिग्रहीत भूमि के पर्याप्त मुआवजे के लिए आंदोलन जैसी असाधारण सफलताएं शामिल हैं। उन्होंने कई बार विश्र्व व्यापार संगठन और सरकार की कृषि नीति में किसानों के साथ नाइंसाफी के विरोध का भी बिगुल फूंका। दुखद है कि आज के किसान की कद्र देश की शक्ति और सामर्थ्य का अहसास कराने वाले जय जवान-जय किसान के नारे में कैद होकर रह गई है, इसकी मुक्ति का संग्राम छेड़ने वाले टिकैत अब नहीं रहे।

गिरफ्तार व रिहा
15 जुलाई 1990 लखनऊ पचायत में जाते हुए पहली बार चौ. टिकैत बरेली में गिरफ्तार किए गए।
•31 दिसंबर 1991 लखनऊ पंचायत में जाते हुए मेरठ में गिरफ्तार हुए।
•22 जून 1992 लखनऊ पंचायत में जाते फैजाबाद में गिरफ्तार किए गए।
•31 जुलाई 1992 गाजियाबाद पंचायतमें जाते हुए मोदीनगर में गिरफ्तार हुए।
•23 सितंबर 1992 रामकोला पंचायत में जाते हुए रामकोला में गिरफ्तार हुए।
•7 अकटूबर 1992 सिकंदराबाद पंचायत में जाते हुए अलीगढ़ में गिरफ्तार किए गए।
•14 दिसम्बर 1997 मुजफ्फरनगर में रेल रोको आंदोलन करते हुए गिरफ्तार किए गए।
•12 फरवरी 2000 लखनऊ पंचायत में जाते हुए मुरादाबाद में गिरफ्तार हुए।
•13 मार्च 2000 लखनऊ पंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार किए गए।
•12 जनवरी 2001 हरिद्वार मुद्दे पर आंदोलन के दौरान बुलंदशहर में गिरफ्तार किए गए।
•19 फरवरी 2001 कृषि उतपाद के आयात के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में गिरफ्तार।
•19 मार्च 2001 कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर करने की मांग को लेकर किसान घाट पर गिरफ्तार।
•16 सितंबर 2002 लखनऊ किसान महापंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार।
•6 अक्टूबर 2002 लखनऊ विधान सभा के सामने गिरफ्तार।
•13 दिसंबर 2002 पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) में किसान पंचायत में गिरफ्तार व रिहा।
•15 दिसंबर 2002 बस्ती जाते समय रामपुर में गिरफ्तार।
•2 सितंबर 2004 मुंबई आजाद मैदान में एक लाख किसानों के साथ गिरफ्तार।
•20 नवंबर 2007 बागपत में आपराधिक मामले में टिकैत को समर्पण करने के बाद जेल भेजा।
•3 सितंबर 2009 को जंतर-मंतर पर किसानों के साथ गिरफ्तार।

भाकियू की संघर्ष गाथा
•27 जनवरी 1987 से 30 जनवरी 1987 तक करमूखेड़ी (मुजफ्फरनगर) बिजलीघर पर 4 दिवसीय धरना।
•27 दिसंबर 1987 से 19 फरवरी 1988 तक कमिश्नरी मेरठ पर 35 सूत्रीय मांगों को लेकर 44 दिवसीय धरना।
•6 मार्च 1988 से 23 जून 1988 तक रजबपुर (मुरादाबाद) में 110 दिवसीय धरना एवं रेल रोको अभियान।
•25 अक्टूबर 1988 से 31 अक्टूबर 1988 तक नई दिल्ली वोट क्लब पर 7 दिवसीय धरना।
•3 अगस्त 1989 से 10 सितंबर 1989 तक गंग नहर के किनारे कस्बे भोपा में नईमा काण्ड पर 39 दिवसीय धरना।
•2 अक्टूबर 1989 को देश के कई किसान संगठनों के साथ दिल्ली के वोट क्लब पर धरना।
•14 जुलाई 1990 से 22 जुलाई 1990 तक लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में 9 दिवसीय धरना।
•2 अक्टूबर 1991 को नई दिल्ली में खाद की सब्सिडी एवं अन्य समस्याओं को लेकर धरना। 31 दिसंबर 1991 से 17 जनवरी 1992 तक लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में किसानों की मांगों (मुख्यत बिजली एवं खाद के बढ़े मूल्य) को लेकर 18 दिवसीय धरना।
•3 मार्च 1993 से 4 मार्च 1993 तक नई दिल्ली में डन्कल प्रस्ताव एवं बीज सत्याग्रह को लेकर 2 दिवसीय धरना।
•2 जून 1992 से 3 जुलाई 1992 तक लखनऊ में किसानों की 7 सूत्रीय मांगों (मुख्यत दस हजार रुपये का कर्जा माफी) को लेकर धरना।
•2 जून 1992 से 17 अगस्त 1992 तक गाजियाबाद में किसानों की भूमि अधिकरण व अन्य मुद्दों को लेकर 77 दिवसीय धरना।
•4 फरवरी 1993 से 6 फरवरी 1993 तक चौ. टिकैत की लखनऊ बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर, मऊ, बलिया और गोरखपुर सहित अनेक जनपदों में किसान पंचायतें।
13 किसानों की भूमिअधिग्रहण व गिरफ्तार किसानों की रिहाई की मांगों को लेकर 4 दिवसीय धरना।
•26 सितंबर 1993 से 4 अक्टूबर 1993 तक समस्त उत्तर प्रदेश में किसानों की 7 सूत्रीय मांगों (मुख्यत रामकोला के किसानों पर गोली काण्ड, गन्ने का भुगतान तथा 10 हजार रुपये के कर्जे माफी जैसे मुद्दे को लेकर नौ दिवसीय धरना)।
•17 सितंबर 1993 से 19 सितंबर 1993 तक नई दिल्ली में किसानों की मांगों को लेकर (डन्कल प्रस्ताव एवं बीज सत्याग्रह सहित) 3 दिवसीय धरना।
•16 अगस्त 1995 को उप्र के मुख्यमंत्री सुश्री मायावती से लखनऊ में चौ. टिकैत की वार्ता।
•17 सितंबर 1995 को उप्र की राजधानी लखनऊ में किसान महापंचायत।
•7 मार्च 1996 को किसान घाट पर देश बचाओ किसान बचाओ महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें उत्तर भारत के राज्यों के लगभग दो लाख किसानों ने हिस्सा लिया। 17 फरवरी 1999 को उप्र की प्रत्येक तहसील पर किसान प्रदर्शन की घोषणा।
•9 मार्च 1999 को भाकियू में अन्दरुनी विवादों व किसानों का पूर्ण सहयोग न मिलने पर टिकैत द्वारा यूनियन को भंग करने की घोषणा। मुख्यालय सिसौली में किसानों की यूनियन को पुन: संगठित करने के दबाव के कारण पुन : संगठित करने की घोषणा की गई।
•13 अक्टूबर 1999 को बाराबंकी में किसान महापंचायत में सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ असहयोग आंदोलन जारी रखने की घोषणा।
•29 अक्टूबर 1999 को विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ एवं कृषि उपज का लाभकारी समर्थन मूल्य देने की मांग को लेकर नई दिल्ली जंतर मंतर पर एक दिवसीय धरना।
•13 फरवरी 2000 को लखनऊ के बेगम हजरत पार्क में किसान महापंचायत।
•17 मार्च 2000 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन के भारत आने पर उनके नाम विश्व व्यापार संगठन के कारण भारत के किसानों को होने वाले नुकसान के संबंध में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक ज्ञापन दिया।
•25 मार्च 2000 को उप्र के मुख्यमंत्री रामप्रसाद गुप्त से चौ. टिकैत की वार्ता।
•5 सितंबर 2000 को दक्षिणी एशिया के किसानों का एक सम्मेलन नई दिल्ली में संपन्न हुआ जिसमें विश्व व्यापार संगठन द्वारा किसानों के शोषण, विकासशील देशों की कृषि की व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश का मुकाबला करने के लिये 10 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया।
•26 सितंबर 2000 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति को विश्व व्यापार संगठन से कृषि को बाहर करने के संबंध में एक ज्ञापन दिया।
29 दिसंबर 2000 को किसान विरोधी केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में किसान घाट से संसद घेराव आंदोलन।
•3 नवंबर 2001 को उप्र के गन्ना उत्पादक किसानों की बरबादी एवं कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखने के लिये संसद मार्ग नई दिल्ली में प्रदर्शन किया।
•8 नवंबर 2002 को उप्र की चीनी मिल चलाने के लिए मंसूरपुर रेलवे ट्रेक एक दिन के लिए बंद किया और अगले दिन से पशुओं के साथ जेल भरो आंदोलन की घोषणा।
•8 अप्रैल 2008 को उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ लखनऊ में किसान महापंचायत।
•चौ. टिकैत बिजनौर की एक रैली में मायावती पर टिप्पणी को लेकर हुए हंगामे के बाद 2 अप्रैल 2008 को अदालत में पेश हुए। इसको लेकर कई दिनों तक सिसौली का सुरक्षा बलों ने घेराव भी किया।
•27 अक्तूबर 2009 को बरेली एसीजेएम कोर्ट में पेश होकर 23 मार्च 1992 को बरेली जंक्शन पर ट्रेन में की गई तोड़फोड़ के मामले में जमानत करानी पड़ी।
•मार्च 2010 में दिल्ली जंतर-मंतर पर गिरफ्तारी और बाद में रिहा।पर आंदोलन के दौरान बुलंदशहर में गिरफ्तार किए गए।
•19 फरवरी 2001 कृषि उतपाद के आयात के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में गिरफ्तार।
• 19 मार्च 2001 कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर करने की मांग को लेकर किसान घाट पर गिरफ्तार।
•16 सितंबर 2002 लखनऊ किसान महापंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार।
•16 अक्टूबर 2002 लखनऊ विधान सभा के सामने गिरफ्तार। 13 दिसंबर 2002 पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) में किसान पंचायत में गिरफ्तार व रिहा।
•15 दिसंबर 2002 बस्ती जाते समय रामपुर में गिरफ्तार।
•2 सितंबर 2004 मुंबई आजाद मैदान में एक लाख किसानों के साथ गिरफ्तार।
•20 नवंबर 2007 बागपत में आपराधिक मामले में टिकैत को समर्पण करने के बाद जेल भेजा।
•3 सितंबर 2009 को जंतर-मंतर पर किसानों के साथ गिरफ्तार

बड़ी सफलता
इन आंदोलनों में मिली बड़ी सफलता खेड़ी करमू आंदोलन किसानों द्वारा बिजली की दरों में वृद्धि को लेकर आंदोलन के दबाव में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा उत्तर प्रदेश के सांसदों की बैठक में बिजली दर 30 रुपये से पुन: 20.50 रुपये किए जाने की घोषणा की। नइमा कांड भोपा गंगनहर पर नइमा कांड को लेकर चलाए गए आंदोलन में सरकार के प्रतिनिधि चौधरी नरेंद्र सिंह ऊर्जा मंत्री एवं भाकियू प्रतिनिधियों के बीच दस सितंबर 1989 को लिखित समझौता हुआ, जिसमें किसानों को ग्यारह महीने के बिजली के बिल माफ किए गए तथा किसानों के क्षतिग्रस्त टै्रक्टर नए दिए गए। नइमा के परिजनों को आर्थिक सहायता चैक भी सौंपा गया। सिसौली किसान पंचायत 11 दिसंबर 1990 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर एवं उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सिसौली किसान पंचायत में किसानों के 21 माह के बिजली के बिल माफ करने की घोषणा की। 9 अगस्त 1986 भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा एवं उत्तर प्रदेश के गवर्नर रमेश भंडारी ने विद्युत दरों में दस रुपये की कटौती, पेनल्टी की छूट एवं कृषि यंत्रों पर ऋण लेने में स्टांप में कटौती व चोगामा नहर परियोजना को स्वीकृत करने की घोषणा की। 12 सितंबर 2007 भारत के प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह से उनके आवास पर बैठक हुई। रात में ही गेहूं के समर्थन मूल्य में 400 रुपये कुंतल की बढ़ोतरी की घोषणा करते हुए गेहूं का मूल्य 1050 रुपये घोषित किया गया।



एक अप्रैल 2008 की रात
30 मार्च को बिजनौर में रैली के दौरान सूबे की मुखिया मायावती के खिलाफ टिप्पणी कर बाबा टिकैत भाकियू की राजधानी सिसौली पहुंच चुके थे। गहमा-गहमी में 31 मार्च का पूरा दिन बीत गया। एक अप्रैल को बाबा की गिरफ्तारी के फरमान के बाबत सुनते ही हर युवा-बुजुर्ग आक्रोशित हो गया। रात के वक्त सिसौली तक पहुंचने वाले हर रास्ते पर भाकियू के सिपेहसालार तैनात थे। बाबा टिकैत जिंदाबाद के नारों से सिसौली गूंज रहा था। गांव की हर गली में बुग्गियां उल्टी पड़ी थीं, टै्रक्टर-ट्राली सड़कों के मुहाने पर खड़ी थीं। सिसौलीवासियों ने छतों पर ईट-रोड़े और बोतलें चढ़ा रखी थीं। लोग चौबारों पर चढ़कर गांव की हद पर नजर रखे थे। जैसे ही गांव की सीमा पर कोई लाइट दिखाई देती तुरंत संपर्क शुरू हो जाता। वाकई, बाबा के पसीने की जगह खून बहाने का जज्बा लिए तिलिस्म रचा गया था। जैसे-जैसे रात आगे बढ़ी बाबा भी अपने रंग में आते गए। चौधरी टिकैत भोर में ही पशुओं के पास चले गए। हाथ फिराते रहे। एकाएक मीडिया ने घेर लिया और सीएम के प्रति टिप्पणी के बाबत पूछने लगे। बाबा ने बेबाकी से अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि रावण था, चौंसठ विद्याओं का ज्ञाता था। सीता का हरण करके ले गया। बुद्धि फिरगी थी। मैं तो मानस हूं। अर, मायावती तो म्हारी बेट्टी जैसी। अर जो कुछ गलत-सलत लिकड़ गया मुंह सै तो माफी मांगू। कौण-से का भाई? किसान भवन में आने वाले हर उस शख्स से जिससे बाबा अनजान थे, यही पूछते कि कौण-से का भाई? आगंतुक से उनके इस सवाल का मतलब सीधा-सा है कि यह पता चल सके कि वह किस गांव का है या किस परिवार से ताल्लुक रखता है? तम्हीं कह लो, मैं बैठरा बाबा को देखते ही भीड़ का उत्साह कई गुना बढ़ा होता था। बाबा के अभिवादन में भीड़ जब शोर मचाती तो बाबा पुचकार मिश्रित फटकार में कहते कि तम्हीं कह लो, मैं बैठरा।



दर्ज हुए मुकदमे
मुख्यमंत्री मायावती भी टिकैत पर अंतिम समय में मेहरबान हो गई थीं। उनके विरुद्ध विभिन्न जनपदों में चल रहे 13 मुकदमों को वापस लेने के लिए प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेहबहादुर सिंह व प्रमुख सचिव न्याय अमर सिंह की ओर से टिकैत को पत्र भेजे गए। हालांकि भाकियू अध्यक्ष की ओर से इन पत्रों का कोई जबाव नहीं दिया गया। भाकियू अध्यक्ष स्वर्गीय टिकैत के खिलाफ पूरे आन्दोलन के दौरान 77 मुकदमे दर्ज हुए। 13 मुकदमों को छोड़कर सभी निस्तारित हो चुके हैं। बिजनौर में एक सभा दौरान उन्होंने बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती पर टिप्पणी की तो उनके विरुद्ध दलित एक्ट में मुकदमा दर्ज हुआ। दो अप्रैल 2008 को वह इस मामले में बिजनौर कोर्ट में भी पेश हुए। 27 जनवरी 2003 को मुजफ्फरनगर में टिकैत पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। काकड़ा गांव में इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें एसडीएम डीपी श्रीवास्तव को गंभीर चोट आयी और डीएम बाल-बाल बचे। एक फरवरी को मायावती सरकार के विरोध मुजफ्फरनगर में जनसभा हुई जिसमें पुलिस-प्रशासन की सभा स्थल पर जाने की हिम्मत तक नहीं। इस मामले में तीन मुकदमे दर्ज हुए। इस तरह उनके विरुद्ध 13 मुकदमे विचाराधीन हैं, जिन्हें वापस लेने की कवायद सरकार ने की है।

दो स्थानों पर विसर्जित हुई थी अस्थियां
भारतीय किसान यूनियन के दिवंगत राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की अस्थियां 18 मई 2011, बुधवार को पूरे विधिविधान और कर्मकांड के साथ गंगा में दो स्थानों ब्रंाकुंड और किसान घाट पर विसर्जित कर दी गईं। दिवंगत महेन्द्र सिंह टिकैत की अस्थि कलश यात्रा उनके पैतृक गांव सिसौली से चलकर उप्र के मुजफ्फरनगर, छमार, पुरकाजी आदि जगहों से होते हुए हरिद्वार पहुंची। यात्रा में पांच सौ से अधिक गाडि़यों का काफिला साथ चल रहा था। इसके अलावा बड़ी संख्या में उनके समर्थक किसान सुबह से ही हरिद्वार पहुंचकर हरकी पैड़ी पर डेरा डाले हुए थे। अस्थि कलश यात्रा के सबसे आगे चल वाहन पर दिवंगत टिकैत के चार अ स्थि कलशों को रखा गया था, जिसके दर्शन करने के लिए सड़कों पर मौजूद किसानों का रेला जगह-जगह पर श्रृद्धांजलि दे रहा था।
समाप्त